राजा हरि सिंह भारत के इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखते है,कैसे?

राजा हरि सिंह भारत के इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखते है,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

जन्मदिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राजा हरि सिंह महान शिक्षाविद् होने के साथ प्रगतिशील विचारक, एक समाज सुधारक के तौर पर भी जाने जाते थे। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 23 सितंबर को राजा हरि सिंह का जन्म हुआ था। उन्हें एक कुशल शासक बनने का मौका तो मिला, लेकिन कई मायनों में देखा जाए तो वह सिर्फ नाम के राजा रह गए थे।

बताया जाता है कि राजा हरि सिंह के जम्मू और कश्मीर रियासत के शासक बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है। वह साल 1925 में जम्मू-कश्मीर की गद्दी पर बैठे थे। उन्होंने शुरूआती सालों में विविध समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा देने के प्रयास किए। राजा हरि सिंह ने शासक बनते ही कई क्रांतिकारी फैसले लिए थे, इतिहासकारों की मानें तो उन्होंने अपने पहले संबोधन में कहा था कि वह एक हिंदू हैं, लेकिन एक शासक के तौर पर न्याय ही उनका धर्म है।

बता दें कि जम्मू और कश्मीर हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध और सिखों सहित संस्कृतियों की समृद्ध विरासत वाला एक रियासत थी। वहीं राजा हरि सिंह ने भी इन समुदायों में सांप्रदायिक सद्भाव और विकास को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान करते हुए सभी त्योहारों व उत्सवों में अपनी भागीदारी भी दिखाई। इसी वजह से उन्हें जम्मू-कश्मीर की रियासत का अंतिम लेकिन कुशल शासक कहा जाता है।

1930 और 1940 के दशक के दौरान देश की आजादी की लड़ाई में कई रियासतों को राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। क्योंकि उस दौरान तक स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के लिए एक आंदोलन ने गति पकड़ ली थी। वहीं जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में इन मांगों के लिए एक प्रमुख आवाज बनकर उभरी। राजनीतिक गलियारों में एक आवाज गूंजने लगी। यह मांग थी कश्मीर कश्मीरियों के लिए। बता दें कि यह मांग कश्मीरी पंडितों द्वारा उठाई गई थी।

भारत में शामिल होने का फैसला

साल 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन हुए। इस दौरान राजा हरि सिंह को भी एक महत्वपूर्ण फैसला लेना पड़ा। पाकिस्तान के कश्मीर पर कब्जा करने की चाहत भारत से सैन्य सहायता के अनुरोध के सामने राजा हरि सिंह को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ा। इस विलय पत्र पर हस्ताक्षर होने से जम्मू और कश्मीर को आधिकारिक तौर पर भारत के डोमिनियन में एकीकृत किया गया।

दरअसल, जब पाकिस्तान ने कब्जे की नियत से जम्मू-कश्मीर पर हमला किया तो राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। वहीं उन्होंने मदद के लिए अपने प्रतिनिधि शेख अब्दुल्ला को भारत भेजा। फिर राजा हरि सिंह श्रीनगर से जम्मू पहुंचे और राज्य के ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किए। इस तरह शर्तों के मुताबिक भारतीय सैनिकों को राज्य में हवाई मार्ग से भेजा गया और कश्मीरियों के साथ लड़ाई लड़ी गई।

साल 1925 में जम्मू और कश्मीर रियासत के राज सिंहासन पर बैठने के बाद राजा हरि सिंह का शासन ऑफिशियल तौर पर साल 1949 में समाप्त हो गया। जम्मू और कश्मीर रियासत के सिंहासन छोड़ने के बाद राजा हरि सिंह मुंबई में बस गए और परोपकार व सामाजिक कार्य करने लगे।

मुंबई में 26 अप्रैल 1961 को राजा हरि सिंह का निधन हो गया। राजा हरि सिंह के निधन के साथ ही जम्मू-कश्मीर के इतिहास में एक युग का अंत हो गया।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!