20 साल से चल रही बेनतीजा जंग, तारीखें गवाह बनती रहीं; नहीं थमा सिलसिला.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद अमेरिका की अगुआई में नाटो सेनाओं ने तालिबान को अफगानिस्तान से मिटाने के लिए जंग शुरू की थी। हमले के पहले महीने में ही अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ दिया था, लेकिन आतंकियों का सफाया करना अमेरिका के लिए संभव नहीं हो पाया। तालिबान को वहां सत्ता से दूर रखने के लिए चल रही जंग को 20 साल बीत चुके हैं। आज फिर अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण हो गया है। ज्यादातर इलाके आतंकियों के कब्जे में हैं।

वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले ने रखी मौजूदा लड़ाई की नींव

11 सितंबर, 2001 को आतंकी संगठन अल कायदा ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को आत्मघाती हमले में तबाह कर दिया था। आतंकियों ने चार विमानों का अपहरण कर लिया था। इनमें से दो विमानों से ट्विन टावर्स के नाम से प्रसिद्ध वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की दो बहुमंजिला इमारतों को निशाना बनाया गया था। एक विमान से पेंटागन पर हमला किया गया और एक अन्य विमान पेंसिल्वेनिया के खेतों में क्रैश हो गया।

हमले का मुख्य साजिशकर्ता अल कायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन था और तालिबान ने उसे शरण दी थी। तालिबान ने अलकायदा के आतंकियों को सौंपने से इन्कार किया, तो अमेरिका ने सैन्य हमले का रास्ता चुना। अमेरिका ने तालिबान को मिटाने और अफगानिस्तान में लोकतंत्र स्थापित करने के लक्ष्य के साथ लड़ाई शुरू की। अक्टूबर, 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और महीनेभर में तालिबान को सत्ता से उखाड़ दिया। नाटो सेना भी अमेरिका के साथ इस लड़ाई का हिस्सा बन गई। 2004 में अफगानिस्तान में नई सरकार सत्ता में आई।

पाकिस्तान ने निभाई है स्याह भूमिका

पाकिस्तान इस बात से इन्कार करता रहता है कि तालिबान के पनपने में उसका हाथ है, जबकि ऐसे आतंकियों को पनाह देने के कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। माना जाता है कि तालिबान से शुरुआती तौर पर जुड़ने वाले अफगानी पाकिस्तान के मदरसों में ही पढ़े थे। पाकिस्तान उन तीन देशों में से है, जिन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को स्वीकृति दी थी। पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने तालिबान की सत्ता को स्वीकारा था। इस संगठन से राजनयिक संबंध तोड़ने वाले देशों में पाकिस्तान आखिरी था। धीरे-धीरे पाकिस्तान के लिए भी तालिबान खतरा बन गया।

तारीखें गवाह बनती रहीं, नहीं थमा सिलसिला

11 सितंबर, 2001: ओसामा बिन लादेन की अगुआई वाले आतंकी संगठन अल कायदा ने अमेरिका में वल्र्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हमला किया। इसमें करीब 3,000 लोग मारे गए।

7 अक्टूबर: अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान में तालिबान के इलाकों पर हवाई हमले किए गए। आतंकियों का एयर डिफेंस तबाह हो गया।

13 नवंबर: बड़ी संख्या में तालिबान आतंकी मारे गए और बाकी भाग गए। काबुल पर तालिबान से लड़ रहे रक्षा बलों का कब्जा हो गया।

26 जनवरी, 2004: अफगानिस्तान में नया संविधान अस्तित्व में आया। अक्टूबर, 2004 में राष्ट्रपति के चुनाव हुए।

7 दिसंबर: हामिद करजई ने नए राष्ट्रपति के तौर पर पद संभाला। उन्होंने दो बार पांच-पांच साल तक सत्ता संभाली।

17 फरवरी, 2009: अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या बढ़ाने का एलान किया। इनकी अधिकतम संख्या एक लाख 40 हजार तक रही।

28 दिसंबर, 2014: नाटो सेनाओं ने मिशन खत्म कर दिया। अमेरिकी सैनिकों की संख्या भी कम कर दी गई। वहां रुके सैनिकों का उद्देश्य अफगान सैनिकों को प्रशिक्षित करना और उनकी सहायता करना था।

2015 तालिबान ने ताबड़तोड़ हमले शुरू किए। काबुल में संसद भवन को निशाना बनाया गया। इस्लामिक स्टेट के आतंकी भी अफगानिस्तान में सक्रिय हो गए।

25 जनवरी, 2019: अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने बताया कि 2014 में उनके सत्ता में आने के बाद से तालिबान से लड़ाई में 45 हजार से ज्यादा अफगान सैनिक मारे गए हैं। यह संख्या के पहले के अनुमानों से बहुत ज्यादा है।

2 मई, 2011: अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन मारा गया। वह पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपा था, जहां अमेरिकी नेवी सील ने उसे मार गिराया।

23 अप्रैल, 2013: अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, तालिबान के संस्थापक मुल्ला मुहम्मद उमर की पाकिस्तान के कराची में स्वास्थ्य कारणों से मौत हो गई।

29 फरवरी, 2020: अमेरिका ने अफगानिस्तान में शांति के लिए तालिबान से समझौता किया। कहा गया कि यदि आतंकी इसका पालन करेंगे तो अमेरिका 14 महीने में सभी सैनिक हटा लेगा।

11 सितंबर, 2021: वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के ठीक 20 साल बाद इस तारीख तक अमेरिका ने अफगानिस्तान से सभी सैनिकों को वापस बुलाने की बात कही है।

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