कुख्यात कैदखाना, जहां हिटलर ने 60लाख यहूदियों को उतारा मौत के घाट,कैसे?

कुख्यात कैदखाना, जहां हिटलर ने 60लाख यहूदियों को उतारा मौत के घाट,कैसे?

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होलोकॉस्ट दिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

27 जनवरी को इस्राइल होलोकास्ट मेमोरियल-डे मना रहा है। होलोकॉस्ट समूचे यहूदी लोगों को जड़ से खत्म कर देने का सोचा-समझा और योजनाबद्ध प्रयास था। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने होलोकास्ट के नाम पर लाखों लोगों को नजरबंदी कैंप में रखा। उनमें से लगभग 11 लाख लोगों को गैस चैम्बर में डालकर मार डाला। दूसरे हजारों लोग नजरबंदी कैंप में ठंड और भुखमरी से मर गए।

1939 में जर्मनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने अंतिम हल (फाइनल सोल्यूशन) को अमल में लाना शुरू किया। उसके सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे। उनसे काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए, जिनमें सबसे कुख्यात था ऑश्वित्ज।

पोलैंड का ऑश्वित्ज हिटलर की हैवानियत का सबसे बड़ा सेंटर था। यह नाजी हुकूमत का सबसे बड़ा नजरबंदी शिविर था। नाजी खुफिया एजेंसी एसएस यहां पर यूरोप के सभी देशों से यहूदियों को पकड़कर ले आती थी। जहां पहुंचते ही उनमें से कई लोगों को गैस चेंबर में डालकर मार दिया जाता था। वहीं कई ऐसे भी थे जिन्हें काम करने के लिए जिंदा रखा जाता था। उनकी पहचान मिटाकर उनके हाथ पर एक नंबर अंकित कर दिया जाता था जिससे उनकी पहचान होती थी।

इस दौरान उन्हें मरने तक यातनाएं दी जाती थी। उनके सिर के बाल उतार लिए जाते थे। कपड़ों की जगह चीथड़े पहना दिए जाते थे। इसके बाद उन्हें बस जिंदा रहने के लिए जरूरी खाना दिया जाता था। इतना ही नहीं उन्हें तब तक यातना दी जाती थी जब तक वे निष्क्रिय नहीं हो जाते थे।

जो ज्यादा कमजोर हो जाते थे, जिनसे काम नहीं लिया जा सकता था। उन्हें बारी-बारी से गैस चैम्बर में ले जाकर मार दिया जाता था। युद्ध के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें 15 लाख बच्चे थे।

नाजी नेतृत्व का कहना था कि दुनिया से यहूदियों को मिटाना जर्मन लोगों और पूरी इंसानियत के लिए फायदेमंद होगा। हालांकि असल में यहूदियों की ओर से उन्हें कोई खतरा नहीं था। इसके लिए उन्होंने उम्र, लिंग, आस्था या काम की परवाह नहीं की।

क्या काम करते थे हिटलर के कैदी

यहां आने के बाद कैदियों के बाह में एक नंबर गोद दिया जाता था। उस दिन के बाद से कोई भी अपना नाम नहीं ले सकता था। कैदियों की पहचान सिर्फ नंबरों से होती थी। यहां हिटलर के कैदी, बाहर से आने वाले दूसरे यहूदी नजरबंदियों के लिए इमारतें बनाते थे।

कब खत्म हुआ यह सिलसिला
1945 में दूसरे विश्व युद्ध के खात्मे के समय जब सोवियत संघ की सेनाओं ने ऑश्वित्ज पर कब्जा किया, तब जाकर ये सिलसिला खत्म हुआ। उस समय भी इस कैंप में सात हजार कैदी थे। हालांकि सोवियत सेना के हमले के पहले ही हार का अंदेशा देख नरसंहार से जुड़े कई सबूतों को नाजियों ने मिटा दिया था।

कौन थे नाजी, यहूदियों से क्यों करते थे नफरत

नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (NSDAP) को नाज़ी कहा जाता था। नाजी पार्टी जर्मनी में एक राजनीतिक पार्टी थी जो 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थापित हुई थी। यह पार्टी 1920 के दशक में बहुत लोकप्रिय हुई, क्योंकि उस समय जर्मनी प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद पतन से जूझ रहा था। जर्मनी युद्ध हार गया था और विजेताओं को बहुत सारे पैसे देने के लिए मजबूर किया गया था और अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर में थी।

जर्मनी के अधिकतर लोग गरीबी में जीवन यापन कर रहे थे। उस समय लोग बदलाव की आशा के कारण नाजी पार्टी की तरफ अग्रसर हुए। नाजी नस्लवादी थे उनका मानना था कि जर्मन पूरी दुनिया में सबसे श्रेष्ठ थे। ये यहूदियों के घोर विरोधी थे जिसका असर इनकी सभी नीतियों और कार्यों पर पड़ा।

उस समय जर्मनी की सत्ता और धनाढ्य वर्ग में यहूदियों का वर्चस्व था। नाजी इसे जर्मन लोगों के हित के विरुद्ध मानते थे। वे यह भी मानते थे कि जर्मनी दूसरों की तुलना में एक बेहतर देश था और उनके लोगों की श्रेष्ठता का मतलब था कि वे दूसरे लोगों पर हावी हो सकते हैं। इसी सोच ने जर्मनी को दूसरे देशों पर हमला करने और शासन करने के लिए प्रेरित किया।

ऐनी फ्रैंक: डायरी से दुनिया के सामने आई होलोकॉस्ट की कत्लो-गारद की कहानी

ऐनेलिज मेरी (ऐनी फ्रैंक) का जन्म 12 जून 1929 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में हुआ था। साल 1933 में जब नाजी जर्मनी में सत्ता में आए तब चार साल की उम्र में एनी को परिवार के साथ जर्मनी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। वे लोग नीदरलैंड के एम्सटर्डम पहुंचे। लेकिन 1940 में वहां नाजियों का कब्जा शुरू होने के साथ ही वे फंस गए।

वहां भी जब यहूदी लोगों पर अत्याचार बढ़ने लगा, तब जुलाई 1942 में इस परिवार ने ऐनी के पिता के दफ्तर की इमारत में स्थित गुप्त कमरों में शरण ली और वहीं रहने लगा। करीब दो साल बाद उनके साथ एक साथी ने विश्वासघात किया और एनी का पूरा परिवार गिरफ्तार हो गया। अन्य यहूदियों की तरह उन्हें भी यातना शिविरों में भेज दिया गया। गिरफ्तारी के सात महीने बाद ऐनी की टाइफायड की वजह से हबर्जन-बेल्शन कंसनट्रेशन शिविर में मौत हो गई। एक हफ्ते पहले ही ऐनी की बहन ने भी दम तोड़ दिया था।

‘द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल’ में प्रकाशित हुई एनी फ्रैंक की कहानी
परिवार में सिर्फ ऐनी के पिता जीवित बचे, जो युद्ध खत्म होने के बाद एम्सटर्डम लौटे। उन्हें वहां ऐनी की एक डायरी  मिल गई, जिसे उसने छुप-छुपकर बिताई गई जिंदगी के दौरान लिखा था। काफी प्रयासों के बाद पिता ने यह डायरी 1947 में प्रकाशित करवाई। इस डायरी का डच से अनुवाद हुआ और 1952 में यह ‘द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल’ शीर्षक से अंग्रेजी में प्रकाशित की गई।

एनी की डायरी बनी दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब

यह डायरी ऐनी को उसके 13वें जन्मदिन पर मिली थी। इसमें उसने 12 जून 1942 से एक अगस्त 1944 के बीच का अपने जीवन का घटनाक्रम बयां किया था। इस डायरी का कम से कम 67 भाषाओं में अनुवाद हुआ और यह दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली किताब बन गई।

यह डायरी कई नाटकों और फिल्मों की बुनियाद बनी। ऐनी फ्रैंक को उसकी लेखनी की गुणवत्ता और होलोकॉस्ट की सबसे मशहूर और चर्चित पीड़ितों में से एक के रूप में जाना जाता है। वह उन 10 लाख यहूदी बच्चों में से थीं, जिन्हें होलोकॉस्ट में अपने बचपन, परिवार और जिंदगी से हाथ धोना पड़ा।

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