सपने पूरा करने के लिए बेटी को घर से बाहर जाने की दें इजाजत,क्यों?

सपने पूरा करने के लिए बेटी को घर से बाहर जाने की दें इजाजत,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वास्तव में होता क्या है कि हम सोचते हैं कि बच्चों के व्यस्क होने के बाद भी बच्चे हमारी ही जिम्मेदारी हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह सही नहीं होता है। बच्चों के बड़े होने पर हमें उनसे अपने संबंधों और उनकी जिंदगी में अपनी भूमिका को नए नजरिए से देखना होगा। हम अपनी बेटी को करियर या उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेजते समय बेटी पर अपना विश्वास जता सकते हैं। अपनी बेटी क्यूटी को बाहर भेजने वाली जया कहती हैं, मैं तो यही चाहती हूं कि बेटी जहां भी रहे खुश रहे, पर नाजों से पली बेटी के लिए नए माहौल में खुद को ढाल लेना इतना आसान भी नहीं होगा। बस, यही डर लगा रहता है कि वह अकेले कई सारी चीजों को कैसे मैनेज करेगी, क्या खाएगी, कैसे रहेगी?

पहला कदम हो आपका

अगर आप चाहती हैं कि आपकी बढ़ती बेटी आपको अपना बेस्ट फ्रेंड बना ले और हर बात आपसे खुलकर कहे साथ ही आपसे सलाह मांगे तो आपको ही पहला कदम उसकी तरफ बढ़ाना होगा। आप उसे विश्वास दिलाएं कि जीवन में वह चाहे जहां रहे, लेकिन उसके लिए आपका प्यार बरकरार रहेगा। एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम कर रहीं कनिका भी कहती हैं, जब बेटी को हरदम सहयोग का अहसास होगा तो आपका आपसी रिश्ता और मजबूत होता जाएगा। वह सब बातें शेयर करेगी तो चिंताएं भी कम होंगी। हमें हमेशा उसकी पूरी बात सुननी चाहिए और जजमेंटल होने से बचना चाहिए। बच्चे यह जान जाएं कि अगर उन्हेंं किसी तरह की परेशानी आती है या फिर वे अपनी कोई बात आपसे शेयर करना चाहते हैं तो आप उनके लिए हमेशा उपलब्ध हैं।

गिरकर उठना सीखें

चिंता कीजिए, लेकिन बच्चों को थोड़ी सी ठोकर भी खाने दीजिए ताकि वे गिरकर उठना सीखें। इससे उनमें जिंदगी में कुछ फिर से करने का जज्बा आएगा। जिंदगी की कई जटिल समस्याओं से बाहर निकलने के लिए उन्हेंं भी जूझने दीजिए। इससे उन्हेंं जिंदगी में कठिन परिस्थितियों से बाहर निकलने का तरीका समझ आ पाएगा। आप मां के रूप में बेटी को बराबर का दर्जा दे सकती हैं। एंटरप्रेन्योर परी शुक्ला की बेटी यूके में जाब करती है। शुरू में उन्होंने भी काफी चिंता की। फिर चीजों को हौसले से संभाला। वह कहती हैं, आत्मनिर्भरता के रास्ते में कोई ठोकर लगे तो बच्चे को उससे उबरना ही होगा। आत्मनिर्भरता के लिए बच्चे जो फैसले लें, उन फैसलों का हमें स्वागत करना चाहिए। इससे उनसे जुडऩे और खुलकर बात करने का मौका मिलता है। हालांकि आप उनसे अपनी चिंताओं के बारे में भी बात कर सकती हैं।

चिंतित तो होती ही है

त्वचा रोग विशेषज्ञ डा. श्रीशा सिंह ने बताया कि जीवन में पहली बार बेटी अलग रहने जाती है तो काफी चिंता होती तो है, क्योंकि घर पर बहुत सी चीजें हमारे नियंत्रण में थीं, लेकिन अब तो कई बातें हमारे काबू में ही नहीं हैं। एक तो चिंता यह होती है कि बच्चा क्या खाना खाएगा? कितनी सफाई से रहेगा? कक्षा या दफ्तर में जाने के लिए समय से उठ पाएगा या नहीं? उसकी इन सब बातों का ध्यान हम यहां रखते थे। मेरी बेटी अमेरिका गई है तो मुझे चिंता रहती है कि वह अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज जैसे पासपोर्ट आदि संभालकर रखेगी या नहीं? कारण, इसके खोने पर बहुत ही लंबी प्रक्रिया की जरूरत पड़ती है। वहां पढ़ाई भी अलग तरीके से होती है उसे कितना समझ पाएगी, इसकी भी चिंता रहती है। फिर बच्चे, खासकर बेटियां घर को काफी याद करती हैं।

उन्हेंं अकेलापन महसूस होता है। उन्हेंं घर का खाना नहीं मिलता है, आसपास कोई मदद करने वाला नहीं होता। उस समय बच्चों को यह विश्वास दिलाना होता है कि तुम सब मैनेज कर सकते हो। जब बच्चे दूर हैं और उनकी तबियत खराब हो जाती है तब भी पैरेंट्स को काफी तनाव हो जाता है। मेरी बेटी को हास्टल में कोरोना संक्रमण हो गया था। वह 14 दिन क्वारंटाइन रही। उस समय वह दिन में मुझसे चार-पांच बार बात करती थी। हमें उसके शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य का काफी ध्यान रखना पड़ रहा था।

हालांकि अगर उसे कोई आपातकालीन मदद की जरूरत पड़ जाती तो उसे अपनी समस्या खुद हल ही करनी पड़ती। इन बातों का तनाव तो हर समय रहता है, लेकिन समय के साथ-साथ हम यह सीख जाते हैं कि इस तनाव के साथ कैसे जीना है और कैसे अपने कामों में रुकावट नहीं लानी है, लेकिन चिंता हमेशा बनी रहती है। हमें अपनी बेटी पर काफी भरोसा था तब ही उसे बाहर भेजा। इससे वह सीखेगी कि उसे जिंदगी कैसी जीनी है? उसके लिए जिंदगी में किन चीजों का ज्यादा महत्व है और वह जीवन में अपनी महत्वपूर्ण चीजों को कैसे समझकर उन पर फोकस करे। हम जब अपनी मर्जी चलाते हैं तो बच्चा सीखता नहीं है, लेकिन जब वह खुद से जिंदगी के मैदान में कूदते हैं तो परिस्थितियां उन्हेंं जीवन के सबक सिखाती हैं।

सर्वश्रेष्ठ बनने की शिक्षा दी

होममेकर मनीषा जैन ने कहा कि मेरी बेटी निहारिका आगे की पढ़ाई करने मुंबई गई तो मुझे उसके खाने-पीने की सबसे ज्यादा चिंता रही। तबियत खराब होने पर कौन उसकी मदद करेगा, यह चिंता हमेशा रहती। पढ़ाई तो बच्चे कर ही लेते हैं। हम रोज निहारिका से बात करते। शुरू में डर लगा था कैसे रहेगी, लेकिन उस पर बहुत विश्वास था हमें। हम उसे कहते कि अपने आपको बेस्ट बनाकर चले। हम रोज शाम को उसे वीडियो काल करते थे और उसका हाल लेते थे।

यूं संभालें खुद को

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