इजरायली दूत ने इजराइल और हमास को लेकर कांग्रेसी नेता को क्या कहा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कांग्रेस सांदस शशि थरूर ने हमास को लेकर एक बयान दिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि “हमास को आतंकवादी संगठन नहीं करार दे सकते” हैं। थरूर के इस बयान के बाद से ही कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने है।

वहीं, शशि थरूर के इस बयान पर भारत में इजराइल के पूर्व राजदूत डेनियल कार्मन ने भी सवाल खड़ा कर दिया है। कॉर्मन ने एक टेलीविजन चैनल के साथ शशि थरूर के साक्षात्कार की एक क्लिप साझा करते हुए ट्वीट किया और लिखा कि “सच में, शशि थरूर, क्या आप नहीं कर सकते? मेरे लोगों के खिलाफ दशकों के आतंक के बाद, फिलिस्तीनी प्राधिकरण को चुनौती देने के बाद, विशेष रूप से इस सप्ताह एक हजार से अधिक मनुष्यों की बर्बर हत्या के बाद, क्या आप हमास को आतंकवादी नहीं कह सकते? सच कहूं तो, मैं हूं स्तब्ध हूं।”

शशि थरूर ने दी अपने बयान पर सफाई

कॉर्मन के इस ट्वीट का जवाब देते हुए शशि थरूर ने भी सफाई दी। थरूर ने कहा कि मैंने बस इतना कहा कि भारत ने ऐसा कोई पदनाम (आतंकी समूह हमास) जारी नहीं किया है, हालांकि दूसरों ने जारी किया है। निःसंदेह हमास ने आतंकवादी कृत्य किए है, जिसकी मैंने कड़ी निंदा की है। मेरे शब्दों को विकृत करने की कोशिश करने वाली कच्ची सुर्खियों से गुमराह न हों, डेनियल कार्मन, मैं इस कठिन समय में आपके और इजराइल के अन्य दोस्तों के लिए दुख महसूस करता हूं और आपकी निरंतर सुरक्षा के लिए आशा और प्रार्थना करता हूं।

बता दें कि कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने हमास पर अपने बयान पर सफाई दी क्योंकि इससे सोशल मीडिया पर विवाद पैदा हो गया जिससे यह धारणा बन गई कि थरूर हमास को ‘आतंकवादी’ समूह कहने से कतरा रहे हैं। जैसा कि भारत में इज़राइल के पूर्व राजदूत डैनियल कार्मन ने बयान की आलोचना की और थरूर से सवाल किया, कांग्रेस सांसद ने स्पष्ट किया कि उन्होंने केवल भारत की आधिकारिक स्थिति बताई है कि भारत ने कभी भी हमास को आतंकवादी संगठन के रूप में नामित नहीं किया है।

थरूर ने टेलीविजन इंटरव्यू में कहा, आतंकवादी संगठन का लेबल बहुत सावधान रहने वाला है कि इस मामले में दूसरे देश के निर्देशों का पालन न करें। अमेरिका हमास को आतंकवादी संगठन मानता है और इजराइल भी। भारत ने ऐसा कोई वर्गीकरण नहीं किया है और मैं भारतीय स्थिति पर कायम रहूंगा।

पीएम मोदी का बयान था आधा अधूरा- थरूर

शशि थरूर ने कहा कि इजराइल पर हमास के हमले की निंदा की जानी चाहिए लेकिन दांव पर लगे बड़े मुद्दे को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। थरूर ने कहा कि इजराइल के साथ एकजुटता व्यक्त करने वाला पीएम का बयान अधूरा था क्योंकि इसमें ‘इन सबके पीछे के कारण’ का कोई जिक्र नहीं था।

थरूर ने कहा, “जबकि हमने प्रधानमंत्री के इजराइल के लिए खड़े होने और इस बड़े दुख और इस भयावहता के समय में एकजुटता दिखाने को समझा…, उसी समय हमें लगा कि उनका बयान अधूरा था।”

थरूर ने हमास की कड़ी निंदा की

थरूर ने कहा, इजराइल में राष्ट्रीय अवकाश के दौरान हमास द्वारा किए गए अचानक हमले से पूरी स्थिति भड़क गई है। यह अत्यंत क्रूर तरीके से किया गया…यह एक आतंकी ऑपरेशन था। उन्होंने एक संगीत समारोह में भाग लेने वाले निर्दोष नागरिकों, बच्चों, बुजुर्गों, युवाओं को मार डाला। हमास ने जो किया उसके किसी भी औचित्य को स्वीकार करना लगभग असंभव था और मैं निश्चित रूप से आतंकवादी कृत्य की निंदा में शामिल हूं।

शशि थरूर ने फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू के सख्त रूख की निंदा की और कहा कि उनकी सरकार ने फिलिस्तीनियों के प्रति कोई समझौता नहीं किया है।

इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर क्या है कांग्रेस का रुख?

कांग्रेस ने रविवार को इजराइल के लोगों पर क्रूर हमलों की निंदा की और कहा कि पार्टी का हमेशा मानना है कि फिलिस्तीन के लोगों की वैध आकांक्षाएं बातचीत के जरिए पूरी होनी चाहिए।वहीं, एक दिन बाद कांग्रेस ने अपने बयान में तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया और कहा कि वह हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के भूमि, स्व-शासन और सम्मान के साथ जीने के अधिकारों का समर्थन करती है।

देश में कुछ ही महीनों में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में कांग्रेस नहीं चाहती की उनका एक भी बयान चुनावी माहौल में उनके खिलाफ जाए. यही कारण है कि फिलिस्तीन का समर्थक माने जाने वाले कांग्रेस ने इस पूरे मामले पर संतुलित बयान जारी किया है और पीएम के इजरायल के समर्थन में किए गए बयान की आलोचना नहीं की.

दरअसल कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अपने एक बयान में जहां एक तरफ इजरायल के लोगों पर हुए भीषण हमले की निंदा की है. वहीं दूसरी तरफ उन्होंने शांति बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि इस तरह की हिंसा कभी कोई समाधान नहीं देती है और इस पर रोक लगनी चाहिए.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कहते हैं कि, ‘कांग्रेस का हमेशा यह मानना रहा है कि फिलिस्तीन के लोगों की वैध आकांक्षाएं बातचीत के माध्यम से अवश्य ही पूरी की जानी चाहिए, वहीं राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी इजराइली चिंताओं का भी समाधान सुनिश्चित किया जाना चाहिए.’

भारत शुरू से ही फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन करता रहा है. साल 1947 में भारत फिलिस्तीन के बंटवारे के खिलाफ खड़ा था. साल 1970 के दशक में भारत ने पीएलओ और उसके नेता यासिर अराफात का समर्थन किया था. इसके बाद साल 1975 में भारत ने पीएलओ को मान्यता दी थी और भारत पहला ऐसा गैर-अरब देश बन गया था जिसने पीएलओ को मान्यता दी थी. साल 1988 में भारत ने ही फिलिस्तीन को एक देश के रूप में औपचारिक तौर पर मान्यता दी थी.

इतना ही नहीं साल 1996 में फिलिस्तीनी राष्ट्रीय प्राधिकरण की स्थापना के बाद भारत ने गाजा में अपना रिप्रेजेंटेटिव ऑफिस भी खोला था. हालांकि यह ऑफिस साल 2003 में ‘रामाल्लाह’ में शिफ्ट कर दिया गया. रामाल्लाह वेस्ट बैंक की इलाके में एक शहर है जो जुडी की पहाडियों से घिरा हुआ है. फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने साल 2008 में भारत दौरे के दौरान नई दिल्ली में फिलिस्तीनी दूतावास भवन का शिलान्यास किया था.

 

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