बिहार में क्यों फेल हुए एग्जिट पोल?
ये विश्लेषण का औजार नहीं बल्कि मनोरंजन का साधन बन चुके हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जवाब स्पष्ट है कि एग्जिट पोल अब एक उद्योग है और उद्योग में जोखिम लेने की जगह कम होती है। सबको उसी लय में बोलना सुविधाजनक लगता है, जिसमें बहुमत की आवाज सुनाई देती है।
मतदाता का मन कागजों, ग्राफों और टीवी स्टूडियो की चर्चाओं से नहीं पढ़ा जा सकता। लगभग दो दर्जन एजेंसियों ने अपने-अपने अनुमानों की बौछार कर दी थी लेकिन नतीजों ने इनकी तथाकथित वैज्ञानिकता का मुखौटा एक झटके में उतारकर फैंक दिया। मतदान के बाद तमाम टीवी चैनलों पर जोर-शोर से दावे किए जा रहे थे कि इस बार तस्वीर साफ है, रुझान स्थिर हैं और रणनीति मजबूत है परन्तु असलियत यह थी कि वैज्ञानिक ‘सैम्पलिंग’ के नाम पर केवल अनुमान बेचे जा रहे थे और इन अनुमानों का आधार जमीन से ज्यादा स्टूडियो-केन्द्रित ‘कॉलिनियरिटी’ था।
बिहार के 2025 के जनादेश ने एक बार फिर यह साबित किया है कि एग्जिट पोल्स मतदाता को पढ़ने का नहीं, मतदाता को प्रभावित करने का उपकरण बन चुके हैं। किसी भी लोकतंत्र में यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है। जब टीवी चैनल और एजेंसियां मिलकर मतदाता के मन की थाह लेने के बजाय उसकी धारणाओं को दिशा देने में लग जाएं, तब उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगने स्वाभाविक है।
यह समय है कि भारत में एग्जिट पोल्स के लिए स्वतंत्र विधिक नियंत्रण, स्पष्ट पद्धति प्रकटीकरण, सैम्पलिंग मानक, पारदर्शिता नियम और जवाबदेही लागू की जाए। जब तक यह उद्योग ‘अनुमानों की दुकान’ बना रहेगा, तब तक उसका हर अनुमान एक जोखिम होगा और उसकी हर भविष्यवाणी लोकतंत्र को भ्रमित करने का माध्यम।
हालांकि बिहार ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया कि यहां का मतदाता किसी भी ‘पोल’ से बड़ा है। ‘पोल ऑफ पोल्स’ विफल हुआ लेकिन जनता का पोल एकदम सही बैठा। यही बिहार की राजनीतिक चेतना की असली शक्ति है और यही लोकतंत्र की वह जीवंत धड़कन है, जिसे कोई सर्वे, कोई ग्राफ और कोई चैनल स्टूडियो कभी समझ नहीं पाएगा।
यह विफलता केवल बिहार तक सीमित नहीं है। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और यहां तक कि लोकसभा चुनावों तक में एग्जिट पोल्स बार-बार चित्त होते आए हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में तो लगभग हर एजेंसी ने एनडीए को 350-400 सीटों का आकाश छूता अनुमान दिया था
जबकि भाजपा 240 सीटों पर रुक गई थी और एनडीए 292 पर। महाराष्ट्र में एग्जिट पोल्स ने 150-170 सीटों की ‘महायुति’ दिखा दी पर वास्तविक नतीजे 234 सीटों के विशाल बहुमत में तब्दील हो गए। झारखंड में अनुमान एनडीए का, नतीजा इंडिया ब्लॉक का; बंगाल में अनुमान त्रिशंकु का, नतीजा टीएमसी की सुनामी का, तो क्या यह कहना गलत है कि एग्जिट पोल अब विश्लेषण का औजार नहीं बल्कि मनोरंजन का साधन बन चुके हैं?
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