ईवीएम से क्यों नहीं होता राष्‍ट्रपति चुनाव,कहां आती है समस्‍या?

ईवीएम से क्यों नहीं होता राष्‍ट्रपति चुनाव,कहां आती है समस्‍या?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (Electronic Voting Machines, EVM) का इस्‍तेमाल भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के सदस्योंकभी आपने इस बात पर विचार किया कि साल 2004 के बाद से चार लोकसभा चुनावों और 127 विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ई और राज्य विधान परिषदों के सदस्यों के चुनाव के लिए क्यों नहीं किया जाता है?

इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम (Electronic Voting Machines, EVM) एक ऐसी तकनीक पर आधारित हैं जहां वे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं जैसे प्रत्यक्ष चुनावों में मतों के एग्रीगेटर के रूप में काम करती हैं। मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के सामने वाले बटन को दबाते हैं और जो सबसे अधिक वोट हासिल करता है उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

असल में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया प्रत्यक्ष चुनावों से बिल्‍कुल अलग है। राष्ट्रपति का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के मु‍ताबिक एकल वोट वैल्‍यू के माध्यम से होता है। हर निर्वाचक उतनी ही वरीयताएं अंकित कर सकता है, जितने उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। ये वरीयताएं निर्वाचक (elector) की ओर से तय की जाती हैं। वरियताएं उम्मीदवारों के नाम के सामने क्रम में 1,2,3,4,5 की तरह रखकर चिह्नित की जाती हैं।

अधिकारियों का कहना है कि ईवीएम को चुनाव की इस प्रणाली के लिए नहीं बनाया गया है। ईवीएम मतों की वाहक हैं जबकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत इसको वरीयता के आधार पर मतों की गिनती करनी होगी। इसके लिए ईवीएम में अलग तकनीक का इस्‍तेमाल करना होगा यानी ऐसे चुनाव के लिए एक अलग तरह की ईवीएम की दरकार होगी। यही कारण है कि राष्‍ट्रपति चुनाव में ईवीएम यानी ईवीएम (Electronic Voting Machines, EVM) का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता है।

इनडायरेक्ट इलेक्शन: प्रेजिडेंट का चुनाव एक निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज करता है। संविधान के आर्टिकल 54 में इसका उल्लेख है। यानी जनता अपने प्रेजिडेंट का चुनाव सीधे नहीं करती, बल्कि उसके वोट से चुने गए लोग करते हैं। यह है अप्रत्यक्ष निर्वाचन।

वोट देने का अधिकार: इस चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के इलेक्टेड मेंबर और लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद वोट डालते हैं। प्रेजिडेंट की ओर से संसद में नॉमिनेटेड मेंबर वोट नहीं डाल सकते। राज्यों की विधान परिषदों के सदस्यों को भी वोटिंग का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे जनता द्वारा चुने गए सदस्य नहीं होते।

सिंगल ट्रांसफरेबल वोट: इस चुनाव में एक खास तरीके से वोटिंग होती है, जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहते हैं। यानी वोटर एक ही वोट देता है, लेकिन वह तमाम कैंडिडेट्स में से अपनी प्रायॉरिटी तय कर देता है। यानी वह बैलट पेपर पर बता देता है कि उसकी पहली पसंद कौन है और दूसरी, तीसरी कौन। यदि पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसलिए इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।

आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था: वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है। दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग होता है। यह वेटेज जिस तरह तय किया जाता है, उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं।

सत्तारूढ़ भाजपा की अगुआई वाले NDA के पास कुल 10.79 लाख वोटों के आधे से थोड़ा कम यानी 5,26,420 है। उसे वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल के सहयोग की दरकार है। पीएम नरेंद्र मोदी को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर अंतिम फैसला लेना है लेकिन इन दोनों क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग की भगवा दल को जरूरत होगी।

अभी इन दोनों पार्टियों ने कोई संकेत तो नहीं दिए लेकिन पिछले दिनों वाईएसआर और ओडिशा के सीएम, दोनों नेताओं ने दिल्ली आकर मोदी से मुलाकात की थी। दोनों ने 2017 में रामनाथ कोविंद को अपना सपोर्ट दिया था। फिलहाल NDA को करीब 13,000 वोट कम पड़ रहे हैं। BJD के पास 31 हजार से ज्यादा वोट हैं और YSRCP के पास 43,000 से ज्यादा वोट हैं। ऐसे में इनमें से किसी एक का समर्थन भी एनडीए को निर्णायक स्थिति में पहुंचा देगा। विपक्ष की तुलना में भाजपा+ की स्थिति मजबूत है।

 

 

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