न्यूज़ पोर्टल ‘आपका हरकारा’ के द्वारा जयशंकर प्रसाद पर ई-परिचर्चा का हुआ आयोजन.

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जयशंकर प्रसाद की जन्मजयंती पर ई-परिचर्चा का आयोजन.

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल आपका हरकारा के माध्यम से ई-परिचर्चा का.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल आपका हरकारा के माध्यम से जयशंकर प्रसाद की रचनाधर्मिता विषयक इ-परिचर्चा का आयोजन किया गया . कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सह आचार्य डॉ. कुमार वीरेंदर ने की . वहीं मुख्य वक्ता के रूप में हिंदी विभाग महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव की विशेष उपस्तिथि रही.

विषय प्रवर्तन महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में भरत मुनि संचार शोध केंद्र के केंद्र समन्वयक डॉ. साकेत रमण ने किया . डॉ. रमण ने जयशंकर प्रशाद के जीवन वृत्त से लेकर उनकी रचनाओं को श्रोताओं के समक्ष रखा. उन्होंने जयशंकर प्रसाद की रचना बढे चलो के माध्यम से कार्यक्रम में उर्जा प्रवाहित करने का कार्य किया .
डॉ. साकेत रमण ने जयशंकर प्रसाद की रचनाओं की चर्चा करते हुए कहा की इतिहास की घटनाओ को सब्दो में पिरोने की उनकी कला सामान्य लेखकों से भिन्न है और यही उन्हें तत्कालीन समय के महान रचनाकारों से श्रेणी में उच्च कोटि प्रदान करता है.

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कवि जयशंकर प्रसाद के साहित्य में विशेष योगदान एवं उनके रचनाधर्मिता पर प्रकाश डाला . डॉ. श्रीवास्तव ने कहा की जयशंकर प्रसाद जैसे साहित्य के सिपाहियों के चलते ही परतंत्र होने के बावजूद भारत यूरोपीय साहित्य को प्रभावित कर रहा था . मुख्य वक्ता ने अपने वक्तव्य में कहा की यूरोप का रोमांटिसिज्म भारतीय दर्शन का एक परिणाम है . उन्होंने कई दार्शनिकों और साहित्यकारों की रचनाओ की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा की यूरोपीय साहित्यकारों का भी मानना है की तत्कालीन समय में रोमांटिसिज्म का उद्भव भारत से ही हुआ था .

विशिष्ट वक्ता डॉ. रमेश चंचल ने कहा की जयशंकर प्रसाद की रचनाये कालजयी हैं और यही उनके वैक्तित्व को अमरत्व प्रदान करती हैं. उन्होंने कहा की प्रसाद का साहित्य के क्षेत्र में योगदान अतुल्निय है . वर्तमान समय में जयशंकर प्रसाद की कविताओं की महत्ता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा की विश्व बंधुत्व के लिए प्रसाद की रचनाएं अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं. डॉ. चंचल ने कहा की जयशंकर प्रसाद की रचनाएं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उत्थान में अहम योगदान दे रही हैं.

अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. कुमार वीरेन्द्र ने कहा कि प्रसाद ने अपने कथाओं आधार उपनिषदों और वेदों से लिए लेकिन उसे तत्कालीन स्थिति से जोड़कर पेश करना ही उनकी रचनाओं को विशेष बनाया. उन्होंने कहा की विद्यार्थीयों तथा शोधार्थियों को चन्द्रगुप्त,स्कंदगुप्त और कामायिनी जैसी रचनाओं के भूमिका अवश्य ही पढनी चाहिए जिससे की उनके भीतर लेखन कला की एक बेहतरीन समझ उत्पन्न होगी. डॉ. वीरेन्द्र ने कहा की वर्तमान समय में भी जयशंकर प्रसाद की रचनाओं का भी अत्यधिक महत्व है .

धन्यवाद ज्ञापन आपका हरकारा के संपादक नवीन तिवारी ने दिया . ई-परिचर्चा का संचालन प्रभा द्विवेदी ने किया . कार्यक्रम का प्रसारण आपका हरकारा के फेसबुक पेज के माध्यम से साम 7 बजे से किया गया था.

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