बाहुबली मो.शहाबुद्दीन तीन दशक तक चर्चित रहे.

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शहाबुद्दीन के जीवन के 18 साल जेल में बीत गए.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के करीबी रहे बाहुबली मो. शहाबुद्दीन की मौत के साथ उस यात्रा का भी अंत हो गया जो 80 के दशक में शुरू हुई थी। 1990 में 23 साल की उम्र में पहली बार सीवान के जीरादेई से विधायक बने शहाबुद्दीन राजनीति में तीन दशक तक किसी न किसी कारण चर्चा में रहे। चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का या फिर स्थानीय स्तर का शहाबुद्दीन फैक्टर सीवान में प्रभावी रहा।

बहरहाल 10 मई 1967 को सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के प्रतापपुर गांव में जन्मे मो. शहाबुद्दीन ने कॉलेज से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। बताया जाता है कि 1996 में हुसैनगंज थाने में पहली बार शहाबुद्दीन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। आगे चलकर यह सिलसिला इतना लंबा होता चला गया कि तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे शहाबुद्दीन इससे बाहर नहीं निकल सके। 1990 में 23 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। जीरादेई विधानसभा से दूसरी बार 1995 में जीत कर शहाबुद्दीन फिर से विधानसभा पहुंचे। शहाबुद्दीन चार बार सांसद और दो बार विधायक रहे। 1996 में पहली बार लोकसभा में सीवान का प्रतिनिधित्व करने वाले शहाबुद्दीन 2008 तक लगातार चार बार एमपी रहे।

19 वर्ष की उम्र में दर्ज हुआ था पहला आपराधिक मुकदमा
शहाबुद्दीन के बचपन के दिन पैतृक गांव में ही गुजरे। यहीं के स्कूलों में उनकी प्रारंभिक पढ़ाई भी हुई। इधर जब मो. शहाबुद्दीन व्यस्क हुए तो करीब 19 वर्ष की उम्र में उनके खिलाफ हुसैनगंज थाने में एफआईआर दर्ज की गई। मिली जानकारी के अनुसार उनके खिलाफ कुल 56 मुकदमे दर्ज थे। जिनमें से कई में कोर्ट की ओर से उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनायी गई थी। आखिरकार 54 वर्ष की उम्र में दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।

शहाबुद्दीन 1990 में पहली बार जीरादेई से निर्दलीय विधायक चुने गए। उसके बाद 1995 में जनता दल के टिकट पर दोबारा विधायक बने। फिर 1996, 1998, 1999 व 2004 में राजद के टिकट पर सीवान से सांसद चुने गए। हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव लगा रहा। इस बीच 13 अगस्त 2003 को पूर्व सांसद ने छोटपुर निवासी मुन्ना चौधरी मामले में कोर्ट में सरेंडर किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया।

जेल में रहने के दौरान ही उन्होंने 2004 में सांसद का चुनाव लड़ा व जीत हासिल की। फास्ट ट्रैक-1 के आदेश पर शपथ लेने के लिए दिल्ली गए। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश पर 15 दिन के अंदर उन्हें जेल जाना पड़ा। इस बीच तत्कालीन डीएम सीके अनिल ने उन्हें बेऊर जेल स्थानांतरित कर दिया। फिर कोर्ट के आदेश पर 22 फरवरी 2005 को शहाबुद्दीन जेल से बाहर आए। लेकिन तत्कालीन डीएम सीके अनिल ने सीसीए के तहत उन्हें जिला बदर कर दिया। जिसके बाद का समय दिल्ली व पटना में ही गुजरा।

डीएम सीके अनिल व एसपी रत्न संजय ने शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित आवास पर छापेमारी की। इस दौरान उनपर अलग-अलग मामले में नौ-दस मुकदमा दर्ज किया गया। जिसके बाद हुसैनगंज की तत्कालीन थानाध्यक्ष गौरी कुमारी उन्हें रिमांड पर दिल्ली से लेकर आयीं। जहां से उन्हें भागलपुर जेल भेज दिया गया। जून 2006 में जेल के अंदर बने स्पेशल कोर्ट में सुनवायी के लिए उन्हें सीवान लाया गया। जहां चर्चित तेजाब कांड में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी। उसके बाद अन्य ममामले में भी सुनवायी चलती रही।

इस दौरान तत्कालीन डीएम महेन्द्र कुमार ने उन्हें भागलपुर जेल स्थानांतरित कर दिया। जहां जमानत मिलने के बाद 2018 में करीब तीन हफ्ते के लिए जेल से बाहर आए। लेकिन फिर उन्हें कानून व्यवस्था की दुहाई देकर सीवान से तिहाड़ भेज दिया गया था।

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