क्या आडवाणी की गिरफ्तारी ने लालू प्रसाद को एक वर्ग का नेता बना दिया,कैसे?

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आडवाणी की गिरफ्तारी ने तेज कर दी राम मंदिर आन्दोलन की धार

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण में महती योगदान के लिए जब कभी उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी  की चर्चा हो, बिहार में उनके रथ को रोकने की घटना के विवरण के बिना वह पूरी नहीं हो सकती है।

लालू प्रसाद सात महीना पहले मुख्यमंत्री बने थे। यात्रा को लेकर बहुत उहापोह की स्थिति थी। योजना थी कि राजधानी एक्सप्रेस जैसे ही बिहार की सीमा में प्रवेश करे, उसे रोककर आडवाणी को वहीं उतार लिया जाए।

वीपी सिंह ने लालू को किया था फोन

इसकी जवाबदेही तत्कालीन गृह सचिव आर के सिंह (अभी केंद्रीय मंत्री) और तत्कालीन आईजी रामेश्वर उरांव ( झारखंड सरकार के मंत्री) को दी गई थी। दोनों अपनी जगह पहुंच भी गए थे। लेकिन दिल्ली से प्रधानमंत्री ( वीपी सिंह) का फोन आ गया कि फिलहाल उनको आगे बढ़ने दिया जाए। तिवारी उस समय मुख्यमंत्री निवास में ही थे।

उन्होंने बताया कि 19 अक्तूबर 90 को राजधानी एक्सप्रेस से आडवाणी धनबाद उतरे। भीड़ वहां स्वागत के लिए खड़ी थी। अफजल अमानुल्ला वहां डीसी थे। उनको कहा गया कि वे आडवाणी को गिरफ़्तार करें। उस समय के माहौल में यह संभव नहीं था। वहां से रथ यात्रा पटना के लिए चली।

रास्ते में कोशिश हुई कि कानून व्यवस्था का सवाल बना कर यात्रा को रोक दिया जाए। बाद में आडवाणी और प्रमोद महाजन को 24 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर बिहार सरकार के हेलीकाप्टर से दुमका के मसानजोर पहुंचाया गया।

वहां के सरकारी गेस्ट हाउस में उन्हें रखा गया। उस समय समस्तीपुर के डीएम आर के सिन्हा और एस पी सुनील कुमार थे। तिवारी ने कहा कि आडवाणी की गिरफ्तारी ने लालू प्रसाद को हीरो बना दिया।

बिहार में लालू प्रसाद के कथित जंगलराज का डर दिखाकर आज भी भाजपा और नीतीश कुमार सत्ता में आते रहते हैं, पर ये वही लालकृष्ण आडवाणी हैं जो लालू प्रसाद के लिए के लिए लकी चार्म साबित हुए. राम मंदिर आंदोलन के दौरान बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी की गिरफ्तारी से बिहार के मुस्लिम वोटरों को मजबूत संदेश गया कि यहां वे लालू प्रसाद के साथ मजबूत रहेंगे. इसी बड़े वोटर वर्ग को अपने पाले में करने के लिए लालू प्रसाद ने केंद्र की अपनी वीपी सिंह की सरकार के गिर जाने की संभावना होने के बावजूद आडवाणी की गिरफ्तारी का साहस दिखाया. आज भी बिहार की राजनीति में माय फैक्टर अटूट बना हुआ है. जिसकी काट न तो अबतक नीतीश ढूंढ पाए और ना ही भाजपा.

तीसरे प्रयास में हुई थी आडवाणी की गिरफ्तारी
कहा जाता है कि आडवाणी से लालू प्रसाद ने रथ यात्रा नहीं निकालने का आग्रह किया था, लेकिन आडवाणी नहीं माने. अलबत्ता दोनों ने एक-दूसरे को गिरफ्तारी की चुनौती तक दे डाली थी. उधर, आडवाणी रथ यात्रा पर निकले और इधर, लालू प्रसाद उन्हें गिरफ्तार करने की रणनीति बनाने पर. आडवाणी को पहले सासाराम में गिरफ्तार करने का प्लान था, लेकिन सीनियर प्रशासनिक अधिकारियों का अनिक्षापूर्ण व्यवहार और प्लान लीक हो जाने के कारण गिरफ्तारी नहीं सकी.

फिर धनबाद में आडवाणी को गिरफ्तार करने की योजना बनी. लेकिन, वहां के डीसी अफजल अमानुल्लाह एक तो मुसलमान थे और दूसरे वे बाबरी एक्शन कमिटी के जुड़े एक मुस्लिम पक्षकार के दामाद भी थे, सो वहां भी आडवाणी की गिरफ्तारी में पेंच फंस गया. आखिरकार गोपनीय तरीके से समस्तीपुर में गिरफ्तारी संभव हुई.

माय समीकरण बनाने में सफल हुए लालू
मधेपुरा के वरिष्ठ पत्रकार तुर्वशु सचिंद्र कहते हैं कि दरअसल, 1970 और 1980 के दशक में सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाएं हुई थीं. इन घटनाओं से बिहार के मुसलमानों का राज्य और केंद्र की कांग्रेस सरकारों से मोह भंग भंग हो गया था. नाराज मुस्लिमों ने 1989 के लोकसभा चुनाव और 1990 के विधानसभा चुनाव में इस उम्मीद में जनता दल को वोट दिया की उन्हें सुरक्षा मिलेगी. इस बड़े वोट बैंक को सहेजकर रखना लालू की आगे की राजनीति के लिए लिए जरूरी भी थी और चुनौती भी.

यही कारण था कि केंद्र की सरकार को दांव पर रखकर लालू ने आडवाणी को गिरफ्तार किया. वे कहते हैं कि बीपी मंडल के कारण कोसी और कर्पूरी ठाकुर के कारण समस्तीपुर का इलाका समाजवादियों का इलाका माना जाता था. इस कारण से आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार करने का वही संदेश मुसलमानों में गया, जो लालू देना चाहते थे.

बिहार के समस्तीपुर में भी आज आडवाणी जी की ही सिर्फ चर्चा हो रही है. कारण यह कि 1990 में जब रथ लेकर आडवाणी जी समस्तीपुर आए थे, तो यहीं के सर्किट हाउस में 22 अक्टूबर 1990 की देर रात को उन्हें तत्कालीन शासन ने गिरफ्तार कर लिया था. तब उनकी गिरफ्तारी का भाजपा के कार्यकर्ताओं ने खूब विरोध किया था. जिसमें से 175 कार्यकर्ताओं को स्थानीय प्रशासन ने गिरफ्तार कर लिया था. उन्हीं कार्यकर्ताओं में शामिल रहे हरेराम चौधरी को आज भी सबकुछ याद है.

समस्तीपुर निवासी हरे राम चौधरी बताते हैं कि 22 अक्टूबर 1990 की रात में आडवाणी जी समस्तीपुर पहुंचे। लोगों ने उनकी जबरदस्त आगवानी की गई। समस्तीपुर सर्किट हाउस के कमरा नंबर 7 में उन्हें रात्रि विश्राम के लिए पहुंचाया गया। हरेराम चौधरी बताते हैं कि रात लगभग 11 बजे सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ आडवाणी जी को सर्किट हाउस पहुंचाया गया। लगभग 1 घंटे बाद सभी कार्यकर्ता रुके और उन्हें कमरे में विश्राम करने के लिए छोड़कर अपने घर चले गए।  23 अक्टूबर को पटेल मैदान में आडवाणी जी की जनसभा होने वाली थी।

समस्तीपुर निवासी हरे राम चौधरी बताते हैं कि 22 अक्टूबर 1990 की रात में आडवाणी जी समस्तीपुर पहुंचे। लोगों ने उनकी जबरदस्त आगवानी की गई। समस्तीपुर सर्किट हाउस के कमरा नंबर 7 में उन्हें रात्रि विश्राम के लिए पहुंचाया गया। हरेराम चौधरी बताते हैं कि रात लगभग 11 बजे सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ आडवाणी जी को सर्किट हाउस पहुंचाया गया। लगभग 1 घंटे बाद सभी कार्यकर्ता रुके और उन्हें कमरे में विश्राम करने के लिए छोड़कर अपने घर चले गए।  23 अक्टूबर को पटेल मैदान में आडवाणी जी की जनसभा होने वाली थी।

 

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