सांस्कृतिक वैभव के साथ स्वतंत्रता मिलना हमारी उपलब्धि है- डाॅ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी में हिंदी विभाग की ओर से चाणक्य परिसर स्थित राजकुमार शुक्ला सभागार में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन गुरुवार को हुआ।

समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि 1857 के विद्रोह पर 1900 तक कोई टिप्पणी नहीं मिलती है। 1907 में सावरकर की पुस्तक लंदन में प्रकाशित होने पर इस पर विमर्श प्रारंभ हुआ। हमारे देश में दो प्रकार के राष्ट्रवाद हैं बंकिम चंद्र का राष्ट्रवाद दूसरा रवीन्द्र नाथ ठाकुर का राष्ट्रवाद। लेकिन हमारे देश के केंद्र में बंकिम चंद्र का राष्ट्रवाद होना चाहिए। इसलिए देश में नए शोध नए आयाम से प्रतिमान को बदलना चाहिए। राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन एक जागरण था और सबसे बढ़कर सांस्कृतिक वैभव के साथ स्वतंत्रता का मिलना हमारी उपलब्धि है।


वही सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर नव नालंदा महाविहार नालंदा से पधारे हिंदी विभाग के आचार्य प्रो.रविंद्र नाथ श्रीवास्तव ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन से भारतीय जनमानस ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर बढ़ी,क्योंकि सृजन व्यक्ति को स्वतंत्र बनती है। भक्ति आंदोलन के बाद स्वतंत्रता आंदोलन ने जाति, धर्म, पंथ, समुदाय, भाषा और क्षेत्र की सीमा को पार किया। संस्कृति इस आंदोलन के प्रमुख तत्व थे।

वहीं इस सत्र में विशिष्ट अतिथि के तौर पर बी आर ए बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर से पधारे हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. वीरेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि विश्व को कवि परिवर्तित कर देते हैं और साहित्य ने कई क्रांतियां में प्रमुख भूमिका निभाई है।


सत्र में मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह महाविद्यालय से पधारे हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. राजेश्वर कुमार ने कहा कि संस्कृति में ही भाषा एवं साहित्य दोनों समाहित है। स्वतंत्रता आंदोलन जो स्थूल से होता हुआ सूक्ष्म की ओर जाता है, इसमें काव्य की धारा भी बदलती है उसका रूप भी बदलता है। भारतेंदु युग में देशभक्ति व राजभक्ति थी,द्विवेदी युग में स्थूलता थी तो गांधी युग में यह सूक्ष्मता को लेकर आता है। भारत में भाव एक था इसने ही स्वतंत्रता को निश्चित किया। जबकि सत्र में स्वागत वक्तव्य देते हुए विभाग के सहायक आचार्य डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा ने कहा कि पिछले दो दिनों से कई विश्वविद्यालय से पधारे उद्भट विद्वानों के उद्बोधन से हम लाभान्वित हुए हैं। विश्वविद्यालय परिवार आप सभी का स्वागत करता है।

संगोष्ठी में मंच का संचालन शोधार्थी विकास कुमार ने किया जबकि पूरे संगोष्ठी की आख्य प्रस्तुति शोधार्थी अस्मिता पटेल ने किया। सत्र का धन्यवाद ज्ञापन विभाग की सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी ने किया। विभिन्न सत्रों में शोध वाचन करने वाले सहायक आचार्य, शोधार्थी एवं परास्नातक के विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।


इससे पहले संगोष्ठी के द्वितीय दिवस के तीसरे तकनीकी सत्र में सत्र की अध्यक्षता नव नालंदा महाविहार नालंदा से पधारे हिंदी विभाग में आचार्य प्रो.रविंद्र नाथ श्रीवास्तव ने किया। साथ ही मंच पर प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, डॉ. अमित कुमार पाण्डेय, डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने अपने वक्तव्य से सभी को लाभान्वित किया। इस सत्र में मोतिहारी नगर स्थित श्रीकृष्ण सिंह महिला महाविद्यालय में हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. कुमारी रौशनी विश्वकर्मा और एल.एन. डी महाविद्यालय में सहायक आचार्य डाॅ. प्रभाकर कुमार ने अपने शोध पत्र का वाचन किया। इसके साथ ही कई शोधार्थियों ने भी अपने शोध पत्र को पढ़ा। इस सत्र का संचालन शोधार्थी राजेश पाण्डेय ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी बिना चिक बड़ाईक ने किया।


वहीं चतुर्थ तकनीकी सत्र की अध्यक्षता बी.आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर से पधारे हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. वीरेंद्रनाथ मिश्र ने किया। मंच पर बी. आर. अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की सहायक आचार्य डॉ. संध्या पाण्डेय, हिंदी विभाग में सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी, डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा उपस्थित रहे। इस सत्र का संचालन शोधार्थी श्री प्रकाश ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी प्रियंका सिंह ने किया। इस सत्र में कई शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने अपने शोध पत्र का वाचन किया।

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