गुरुदेव बच्चों को माता पिता द्वारा अपने ज्ञान के दायरे में बांधने के धुर विरोधी रहे क्योंकि बच्चों के दौर के आयाम अलग हो सकते हैं: गणेश दत्त पाठक

गुरुदेव बच्चों को माता पिता द्वारा अपने ज्ञान के दायरे में बांधने के धुर विरोधी रहे क्योंकि बच्चों के दौर के आयाम अलग हो सकते हैं: गणेश दत्त पाठक

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नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की जयंती पर पाठक आईएएस संस्थान में परिचर्चा का आयोजन

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर का मानना था कि समय परिवर्तनशील है। परिस्थितियां भी परिवर्तनशील है। ज्ञान का कलेवर और परिवेश भी परिवर्तनशील है। इसलिए किसी बच्चे को अपने ज्ञान के दायरे में रखने का कोशिश मत कीजिए। क्योंकि बच्चे के दौर के आयाम अलग हो सकते हैं । उपलब्ध अवसरों के आयाम अलग हो सकते हैं। परंतु गुरुदेव कुछ बातों को शाश्वत मानते थे।

जैसे जितने आप विनम्र होंगे आप महानता के उतने ही करीब होंगे। जितने आप रचनात्मक और मौलिक होंगे, उतने ही सृजनात्मकता के करीब होंगे। गुरुदेव का यह स्पष्ट मत था कि बंधन चाहे वो संस्कारों का हो या परंपराओं का, बंधन सदैव हमारे लिए बेहतर उद्देश्यों के लिए ही लक्षित रहते हैं। मिट्टी के बंधन से मुक्ति पेड़ की आजादी कभी नहीं हो सकती।

ये बातें शनिवार को सिवान के अयोध्यापुरी स्थित पाठक आईएएस संस्थान पर गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की जयंती पर आयोजित परिचर्चा में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् गणेश दत्त पाठक ने कही। इस परिचर्चा में संस्था में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों मोहन यादव, रागिनी कुमारी, नेहा कुमारी, मीरा कुमारी, अद्वैत सिन्हा, आयुष आदि ने भी सहभागिता निभाई।

इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाने वाले गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के दो गीत दो राष्ट्रों के राष्ट्रगान बने, जिसमें एक जन गण मन भारत का और एक अमार सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्र गान बना। गुरुदेव की लेखनी जितनी महान थी उनके विचार भी उतने ही महान थे। गुरुदेव कहा करते थे कि हमें कभी ईश्वर से यह प्रार्थना नहीं करना चाहिए कि हमारे पास संकट नहीं आए। बल्कि ईश्वर से हमें यह प्रार्थना करना चाहिए कि हर संकट का निडरतापूर्वक सामना करने का साहस आए।

श्री पाठक ने इस अवसर पर कहा कि गुरुदेव सदैव इस बात को कहा करते थे कि जब मैंने स्वप्न देखा तो लगा जिंदगी आनंद है। जब नींद से जगा तो लगा कि जिंदगी सेवा है। जब सेवा की तो पाया कि सेवा ही आनंद है। गुरुदेव मानते थे कि दुनिया में हमारे जीने की सार्थकता तभी है जब हम दुनिया से प्रेम करते हैं।

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