गुरु पूर्णिमा के बहाने याद आये गुरूजी

गुरु पूर्णिमा के बहाने याद आये गुरूजी

कर्मयोगी गुरु स्व. घनश्याम शुक्ल जी को सादर नमन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लगभग साढ़े तीन साल हुए। गुरुजी को धरा छोड़े। एक दिन के लिए भी विस्मृत नहीं हुए । हर संघर्ष में याद आते हैं । साथ खड़े होते हैं । सबकुछ आसान होता चला जाता है ।

हर इंसान के लिए करुणा ! इतनी कि कोई अंत नहीं । सबको लगता है सबसे अधिक मेरे प्रति !

व्यक्तित्व के इतने बहुरंगी आयाम मुझे कहीं नहीं दिखे । किसी में नहीं । इनसे बड़ा नायक कोई नहीं दिखा । लोककथाओं में, परंपराओं में बहुतेरे नायकों से प्रभावित हुआ । ग्रामीण समाज में रहकर उनकी चुनौतियों और विडंबनाओं से लड़ता हुआ नायक एक ही दिखा । सभी मोर्चों पर !

पिता पुरोहित ! माता धर्म की मूर्ति ! दोनों का अधिकतर समय पूजा पाठ में !ईश्वर की भक्ति में ! पुत्र दोनों के साथ रहते ईश्वर के दूसरे रूप देख रहा था । राम का अन्याय के खिलाफ लड़ना, दुर्गा का असुरों का संहार करना, कृष्ण का मित्र भाव, बुद्ध का गृह त्याग, शिव की उदारता ! बचपन में ही सवाल शुरू हो गए थे …राम की दिन रात पूजा करनेवाले शबरी को अछूत क्यों मानते हैं !

कृष्ण की आरती उतारनेवाले सुदामा को क्यों भूल जाते हैं ! बहुत सारे …अनगिनत सवाल …. सवालों के जवाब किसी के पास नहीं । नन्हें घनश्याम अपना जवाब ढूंढ लेते हैं । प्रेम..करुणा…दया..क्षमा..अन्याय का विरोध..समाज के लिए निर्वाण…मेरा कुछ भी मेरा नहीं !
पूरा जीवन इन्हीं मूल्यों के साथ ठिठोली करते हुए बीता।

कभी गांधी..कभी जेपी…कभी लोहिया..कभी अंबेडकर ..कभी मदर टेरेसा…कभी बुद्ध ! कभी राम तो कभी परशुराम ! आप सोच रहे होंगे परशुराम कैसे ? गुरुजी को अपनों की गलतियों पर क्रोध बहुत आता था । प्रकट भी करते थे । तब लगता दो चार लाठी लग जाती अच्छा होता । ये सही नहीं है । अब लगता है वो वरदान था ! परशुराम का क्रोध वरदान ही तो होता था !

मेरे जैसे सैकड़ों लोगों के व्यक्तित्व निर्माण में गुरुजी की प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष भूमिका रही है । उन्हें याद करते हुए प्रार्थना करता हूं कि हमेशा की तरह हर क्षण हमारा मार्गदर्शन करते रहें ।

आगामी दिसंबर में उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर गुरुजी की स्मृति में एक स्मरण ग्रन्थ प्रकाशित करने का निश्चय हुआ है । आपके आलेख या साहित्य की किसी भी विधा में आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी ।

आभार- संजय सिंह

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