मनुष्य के लिए लाभकारी है हनुमान जी का जीवन प्रबंधन  

मनुष्य के लिए लाभकारी है हनुमान जी का जीवन प्रबंधन
आत्मसंतुष्टि है सुखी जीवन का सूत्र

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श्रीनारद मीडिया, जीरादेई, सीवान (बिहार):

सीवान जिले के जीरादेई   प्रखण्ड क्षेत्र के भरौली मठ परिसर में चल रहे श्री मरूतिनन्दन महायज्ञ के चौथे दिन मंगलवार को आचार्य अरविंद मिश्र ने

हनुमानजी का जीवन प्रबंधन के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि सेवा करना, साहस दिखाना, धैर्य और बुद्धि का उपयोग कैसे करना चाहिए, ये बातें हम हनुमानजी से सीख सकते हैं
उन्होंने बताया कि हनुमानजी के स्वभाव की बातों को जीवन में उतारने से हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं ।
आचार्य ने कहा कि हनुमानजी श्रीराम के परम भक्त हैं और हर पल अपने आराध्य की सेवा में रहते हैं। हनुमानजी की पूजा के साथ ही उनके स्वभाव की बातों को अपनाने से भी हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं।

उन्होंने बताया कि वाल्मीकि रामायण में हनुमानजी को पवनदेव का औरस पुत्र कहा गया है। उनका शरीर वज्र के समान है। वे तेज चलने में गरुड़ के समान हैं। बुद्धिमान और बलवान हैं।
आचार्य अरविंद ने कहा कि हनुमानजी का वज्र समान शरीर हमें संदेश देता है कि हमारा शरीर भी स्वस्थ और ताकतवर होना चाहिए। उनकी तेज चाल हमें तेज चलने की प्रेरणा देती है। हनुमानजी का बुद्धिमान स्वरूप हमें ज्ञान और बुद्धि बढ़ाने का संकेत देता है।

उन्होंने बताया कि जब तक काम पूरा न हो, विश्राम न करें हनुमानजी श्रीराम की सेवा में तत्पर रहते हैं।
आचार्य ने कहा कि सुंदराकांड में जब हनुमानजी सीता की खोज में लंका जा रहे थे, तब मैनाक पर्वत ने उन्हें विश्राम करने के लिए कहा था, लेकिन हनुमानजी ने कहा कि मैं श्रीराम का काम पूरा होने तक विश्राम नहीं कर सकता। हमें भी जब तक हमारा काम पूरा नहीं हो जाता, तब तक विश्राम नहीं करना चाहिए।

उन्होंने बताया कि हनुमान जी से प्रेरणा मिलती है कि साहस के साथ दूर हो सकती हैं बाधाएं – लंका में रावण के सैनिकों ने हनुमानजी को बंधक बना लिया और उनकी पूंछ में आग लगा दी थी। इसके बाद हनुमानजी साहस दिखाते हुए पूरी लंका को आग लगा दी।

आचार्य ने बताया कि रावण के विरुद्ध युद्ध में हनुमानजी हमेशा श्रीराम के साथ रहे। मेघनाद के बाण से श्रीराम और लक्ष्मण घायल हो गए थे, तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आए।

हमें भी हमेशा अधर्म का सामना साहस के साथ करना चाहिए।
आचार्य ने बताया कि हनुमान जी के समान हमें भी
मुश्किल समय में धैर्य और बुद्धि का उपयोग करना चाहिए ।
हनुमानजी ने धैर्य और बुद्धि का उपयोग करते हुए ही देवी सीता की खोज की थी उन्होंने देवी सीता को कभी देखा नहीं था, वे सिर्फ देवी के गुणों को जानते थे। लंका में एक बार के प्रयास में देवी सीता को खोज नहीं सके थे। तब उन्होंने धैर्य बनाए रखा और दूसरी बार फिर कोशिश की। इसके बाद गुणों के आधार पर उन्होंने अशोक वाटिका में सीता जी को खोज लिया।उन्होंने बताया कि

हमें भी मुश्किल समय में धैर्य बनाए रखना चाहिए। बुद्धि का उपयोग करते हुए बड़ी-बड़ी समस्याएं खत्म की जा सकती हैं।

आचार्य ने बताया कि : जो लोग असंतुष्ट रहते हैं, वे हमेशा अशांत रहते हैं, हमारे पास जितना धन और सुख-सुविधाएं हैं, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए, यही सुखी जीवन का सूत्र है ।

उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति अपने धन को ज्ञान पाने के लिए खर्च करता है तो ऐसे ज्ञान को कोई नहीं छीन सकता, ज्ञान पाने के लिए किया गया निवेश अच्छा फल देता है ।
इस मौके पर परमगुरु रामनारायण दास जी महाराज , गुरु जी दिवाकर मिश्र ,यजमान नागेंद्र सिंह,शिक्षक जितेंद्र सिंह ,ई अंकित मिश्र ,हरिकांत सिंह, नागेंद्र पाठक आदि उपस्थित थे ।

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