वोट नहीं डालेंगे तो सरकार से कैसे करेंगे प्रश्न?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मतदान कम होने के कारणों का विश्लेषण करने का ना तो यह सही समय है और ना ही यह विश्लेषण का समय है कि मतदान कम होने से किसे लाभ होगा या किसे हानि होगी। लाभहानि का आकलन करना राजनीतिक दलों का विषय हो सकता है। पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिकों द्वारा मताधिकार का उपयोग नहीं करना अपने आप में गंभीर हो जाता है।

एक और हम निर्वाचित सरकार से अपेक्षाएं रखते हैं और रखनी भी चाहिए वहीं हम अपनी सरकार चुनने के लिए घर से मतदान करने के लिए भी निकलना अपनी तोहिन समझने लगते हैं। आखिर इतनी गैर जिम्मेदार नागरिक हम कैसे हो सकते हैं? यहां पर बरबस देश की सर्वोच्च अदालत की टिप्पणी पर ध्यान चला जाता है कि जब हम मतदान के दायित्व को पूरा नहीं कर सकते तो फिर चुनी हुई सरकार से सवाल करने या उससे किसी तरह की अपेक्षा रखने का हक भी हमें नहीं होना चाहिए।

लोकतंत्र के महायज्ञ में प्रत्येक मतदाता को अपने मताधिकार का उपयोग कर मतदान करके अपनी आहुति देने का अवसर मिलता है। ऐसे में मतदान का बहिष्कार या फिर लापरवाही के कारण मतदान नहीं करना किसी अक्षम्य अपराध से कम नहीं कहा जा सकता है। वर्तमान सिनेरियों में नोटा प्रयोग भी मंथन का विषय होना चाहिए।

नोटा के प्रवधान को लेकर पक्ष विपक्ष में अनेक तर्क दिए जा सकते हैं पर समय आ गया है कि उस पर बड़ी बहस हो और उसको अधिक प्रभावी या कारगर बनाने के प्रावधान किये जाये। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मतदान को लेकर की गई टिप्पणी भी इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि यदि हम मताधिकार का प्रयोग नहीं करते हैं तो फिर सरकार के खिलाफ किसी तरह की ग्रिवेंस करना उचित नहीं ठहराया जा सकता। सजग व जिम्मेदार नागरिक के रुप में प्रत्येक मतदाता का दायित्व हो जाता है कि वह अपने मताधिकार का प्रयोग करे। अब तो निर्वाचन आयोग ने मतदान सुविधाजनक भी बना दिया है।

बुजुर्ग व दिव्याग मतदाताओं को घर बैठे मतदान का अवसर प्रदान कर दिया हैं वहीं मतदाताओं के लिए जागरुकता अभियान से लेकर निष्पक्ष चुनाव के लिए कारगर कदम उठाये जाने लगे हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने चुनाव तिथियों की घोषणा करते समय साफ कर दिया कि आयोग चार एम पर प्रभावी कार्यवाही करने को प्रतिवद्ध है और उसकी सूक्ष्म मोनेटरिंग की जा रही है।

आजादी के 75 साल बाद और दुनिया की सबसे बेहतरीन चुनाव व्यवस्था के बावजूद मतदान प्रतिशत 90 से 100 प्रतिशत के आंकड़े को नहीं छूना चिंता का विषय है। आज हालात बदल चुके हैं। कोई भी किसी को मतदान के अधिकार से जोर जबरदस्ती या अन्य कारण से रोक नहीं सकता। भारतीय चुनाव आयेग की निष्पक्ष चुनाव व्यवस्था को सारी दुनिया द्वारा सराहा जाता है और लोहा मानते हैं।

इस सबके बावजूद मतदान का प्रतिशत कम होना गंभीर है। ऐसे में मतदान का बहिष्कार या मतदान नहीं करना जिम्मेदार मतदाता का काम नहीं हो सकता। पांच साल में एक बार आने वाले इस अवसर का उपयोग सकारात्मक सोच व उपलब्ध विकल्पों के आधार पर ही बेहतर तरीके से किया जा सकता है। इसलिए मतदान को अपना कर्तव्य समझ कर घर से बाहर निकलें और मताधिकार का उपयोग अवश्य करें यह सभी मतदाताओं के दिलोदिमाग में होना चाहिए।

गैरसरकारी संगठनों व मीडिया को भी इसके लिए आगे आना चाहिए ताकि हम कह सके कि यह सरकार कम मतदान प्रतिशत के आधार पर चुनी हुई नहीं हैं। जिस तरह से रोजमर्रा के काम जरुरी है उसी तरह से हमें मतदान को समझना होगा और बाकी 26 अप्रेल और इसके बाद के चरणों के मतदान पर्व को पर्व की तरह ही मनाना होगा।

अमेरिका की ही बात करें तो वहां नोटा का प्रावधान रहा है पर 2000 आते आते उसे हटा दिया गया। इसी तरह से रुस ने 2006 और पाकिस्तान में 2013 में नोटा प्रावधान को हटाया जा चुका है। देश के प्रबुद्ध नागरिकों, वुद्धिजीवियों, राजनीतिक विश्लेषकों, कानूनविद् को नोटा को लेकर गंभीर बहस छेड़नी होगी जिससे नोटा को वास्तव में चुनावों में हथियार के रुप में उपयोग किया जा सके। आज की तारीख में बात करें तो नोटा केवल और केवल आपके विरोध को दर्ज कराने तक ही सीमित माना जा सकता है।

 

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