जानें- कितना खतरनाक है रूस का FOAB और अमेरिका का MOAB, हो चूका हैं एक-एक बार इनका इस्‍तेमाल

जानें- कितना खतरनाक है रूस का FOAB और अमेरिका का MOAB, हो चूका हैं एक-एक बार इनका इस्‍तेमाल

श्रीनारद मीडिया,सेंट्रल डेस्क

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

रूस और यूक्रेन के बीच की जंग अब बेहद खतरनाक मोड़ पर आ चुकी है। कोई भी देश इस समय पीछे हटने में अपनी हार मानेगा, लिहाजा ऐसा नहीं होगा। इसलिए पूरी दुनिया को इस युद्ध का बेहद विनाशकारी परिणाम भी देखना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए है कि रूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए जहां अपनी न्‍यूक्लियर फोर्स को हाई अलर्ट पर रखा है वहीं अमेरिका ने भी यही कदम उठा लिया है। रूस के किसी भी हमले का अब जवाब देने के लिए अमेरिका खतरनाक रूप इख्तियार करने से भी पीछे हटता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। आपको बता दें कि रूस और यूक्रेन दोनों ही विश्‍व की महाशक्ति हैं और दोनों के पास ही परमाणु हथियारों का बड़ा जखीदा है। दोनों के पास परमाणु हथियारों की यदि बात की जाए तो इनकी संख्‍या करीब बारह हजार है। इतने परमाणु हथियार पूरी दुनिया को तबाह करने में सक्षम हैं। इनके अलावा दोनों ही देशों के पास दुनिया के सबसे बड़े और खतरनाक बम भी हैं।

शक्तिशाल गैर परमाणु बम 

रूस के पास जहां फादर आफ आल बम है वहीं अमेरिका के पास मद आफ अल बम है। इसका इस्‍तेमाल अमेरिका ने एक बार अफगानिस्‍तान में तालिबान और आईएस के खिलाफ किया था। ये दोनों ही बम इतने खतरनाक हैं कि दूसरे बम इनकी तुलना में बेहद बौने साबित होते हैं। ये दोनों ही बम गैर परमाणु बमों में सबसे अधिक शक्तिशाली हैं। रूस के पास जो FOAB है वो एक थर्मोबेरिक वैपंस है। हालांकि अमेरिकी विशेषज्ञ रूस के इस बम की काबलियत पर सवाल उठाते रहे हैं। सबसे पहली बार इस बम का टेस्‍ट 11 सितंबर 2007 को किया गया था। इसके सफल परिक्षण के बाद रूस ने कई छोटे परमाणु हथियारों की जगह इसको शामिल किया था।

इस बम से करीब 44 टीएनटी की बराबर ऊर्जा निकलती है। ये कई छोटे परमाणु हथियारों को एक साथ गिराने की बराबर होती है। ये बम विमान से गिराए जाने के बाद धरती से टकराने से पहले ही हवा में डिटोनेट हो जाता है। इससे निकलने वाली सुपरसोनिक शाकवेव्‍स इतनी अधिक तेज होती हैं कि पल भर में इसकी राह में आने वाली हर चीज खत्‍म होती चली जाती है। इसका हाई टेंप्‍रेचर आसपास के वातावरण से आक्‍सीजन को सोख लेता है। थर्मोबेरिक बम कंवेंशनल एक्‍सप्‍लोसिव वैपंस से अलग होता है। इससे एक बड़े इलाके में जबरदस्‍त विनाश होता है। रूस ने इसका उपयोग सीरिया में भी किया हुआ है। रूस के जनरल एजेक्‍जेंडर रक्शिन के मुताबिक ये बेहद खतरनाक है और न्‍यूक्लियर बम के ही बराबर घातक है। धमाके के दौरान इसका तापमान दूसरे बमों के मुकाबले कहीं अधिक होता है। हालांकि इस बम के धमाके का असर वातावरण पर नहीं पड़ता है। रूस का यहां तक कहना है कि अमेरिका के फादर आफ अल बम की तुलना में ये बम न सिर्फ अधिक घातक है बल्कि अधिक इलाके को नुकसान पहुंचा सकता है।

वहीं यदि बात की जाए अमेरिका के मदर आफ अल बम जिसको GBU-43/B Massive Ordnance Air Blast भी कहा जाता है तो इसको यूएस मिलिट्री के लिए एल्‍बर्ट वीमोर्ट्स जूनियर ने तैयार किया था। इस बम के आकार और वजन को देखते हुए इसको सी-130 हरक्‍यूलिस विमान के अलावा बी-52 बमबर विमान, एमसी-130ई कांबेट टेलन 1 और दूसरा एमसी-130एच कांबेट टेलर 2 से भी डिलीवर किया जा सकता है। 13 अप्रैल 2017 में पहली बार अमेरिका ने इस बम का उपयोग इस्‍लामिक स्‍टेट आफ इराक के खिलाफ अफगानिस्‍तान के खुरासान प्रांत में किया था। अफगानिस्‍तान और वियतनाम युद्ध से प्रेरणा लेते हुए ही इस बम को तैयार किया गया था। नवंबर 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्‍तान में बीएलयू 82 जिसका निकनेम डेजी कटर था, का उपयोग किया था। इसके बाद मदर आफ अल बम को बनाने के बारे में सोचा गया था। पेंटागन ने इसको एंटी पर्सनल वैपन के तौर पर इस्‍तेमाल करने का सुझाव दिया था।

ऐसे करता है काम ये बम

इस बम को एक प्‍लेटफार्म के साथ अटैच कर पैराशूट के जरिए एयर ड्राप किया जाता है। कुछ देर बाद इससे जुड़ी दोनों ही चीजें बम से अलग हो जाती हैं। इस बम को जीपीएस के माध्‍यम से अपने टाग्रेट पर भेजा जाता है। ये एक पेनिट्रेटर वैपन नहीं है बल्कि एक एयर बर्स्‍ट बम है। इसका अर्थ है कि ये जमीन में घुसकर नहीं फटता है बल्कि धरती से कुछ ऊपर धमाका करता है। 11 मार्च 2003 को पहली बार इसका सफल परिक्षण फ्लोरिडा में किया गया था। इसके बाद उसी वर्ष नवंबर में इसका दोबारा परिक्षण किया गया था। इसके बाद ओक्‍लाहोमा के मैकएल्‍स्‍टर आर्मी एम्‍युनिशन प्‍लांट में ऐसे करीब 15 बम बनाए गए थे। ये बम करीब 9.2 मीटर लंबा और 41 इंच चौड़ा है। इसका वजह करीब साढ़े आठ हजार किग्रा है और इसके धमाके से 11 टन टीएनटी की बराबर ऊर्जा निकलती है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!