मां तुम तो बस मां हो……

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मां की ममता की महानता को ही संदर्भित है जीवित्पुत्रिका व्रत

सनातन संस्कृति में मां की महिमा को सुप्रतिष्ठित करता है जिउतिया का महापर्व

✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

24 घंटे की अवधि। न अन्न का एक दाना, न पानी की एक बूंद।निर्जल, निराहार काया। बस कथाओं से ऊर्जस्वित होती मां की ममता की दिव्य आभा। आस्था का एकमात्र सहारा। श्रद्धा का ही केवल भरोसा। मन में संतान के कल्याण की कामना ही तो उस जीवित्पुत्रिका व्रत के 24 घंटे में मां के लिए संजीवनी होती है।

पौराणिक कथाएं निर्जल निराहार काया के अस्तित्व का आधार बन जाती है। तकरीबन हफ्ते भर की तैयारी। पूरे घर की साफ सफाई। नहाय खाय के दिन पकवानों की लंबी श्रृंखला। पारन के दिन भी पकवानों की तैयारी। ताकि परिवार में उल्लास और उमंग रहे। पितृ पक्ष के पावन दिन। पूर्वजों का भी नमन। भगवान सूर्य की आराधना। भगवान जीमूतवाहन का आह्वान। प्रभु श्रीकृष्ण के संदर्भ का भी बखान। काया निर्जल होती है निराहार होती है। समय कैसे गुजरता जाता है पता ही नहीं चलता?

रात होते होते कंठ सूखने लगते हैं। उमस भरे मौसम बेचैनी का सबब बनने लगती है। लेकिन मां की ममता अपने लाडली, लाडले के कल्याण और लंबी उम्र की कामना तले अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती नजर आती है। आस्था की इस सफर पर सहारा सिर्फ मंगल कामना का ही होता है। जीवित्पुत्रिका व्रत के दौरान भारतीय नारी शक्ति अपने ममता के विराट स्वरूप का परिचय करा जाती है। वह अपने त्याग और संयम की बड़ी कहानी सुना जाती है। मां अपने मां होने की दास्तां निर्जल और निराहार रहकर सुना जाती है।

मां आखिर क्या होती है? वह सिर्फ अपने कोख में नौ महीने रख कर जीवन को अस्तित्व ही नहीं देती। वह जन्म देती है। उसके बाद पालती भी है पोषती भी है। पता नहीं कितनी रातें वह अपने लाडलों के लिए जग कर गुजारती है? कितने कष्ट सहती है? फिर भी संतानें मां के अद्वितीय त्याग को नहीं समझ पाते। उनके सम्मान और सेहत का भी ख्याल नहीं रख पाते। ऐसे माहौल में जीवित्पुत्रिका व्रत का बेहद जटिल अनुष्ठान मां की ममता के विराट स्वरूप का परिचय करा जाती है और मन बस इतना ही कह उठता है…

मां तुम तो बस मां हो!

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