बिहार के वाल्मीकि हैं प्रोफेसर रामचंद्र सिंह सुरसरिया!

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बिहार सीवान के प्रोफेसर सुरसरिया ने खड़ी बोली में ‘श्री रामचंद्रायण’ की रचना कर अध्यात्म, साहित्य और संस्कृति की बहाई त्रिवेणी

प्रोफेसर रामचंद्र सिंह सुरसरिया के अवतरण दिवस पर विशेष

श्रीनारद मीडिया, गणेश दत्त पाठक,  सेंट्रल डेस्‍क:

रामकथा सनातन संस्कृति की संजीवनी रही है। रामकथा ने सनातन संस्कृति के स्वरूप को ही नहीं पिरोया है अपितु जीवन के हर आयाम को सुंदरता से संजोया है। परंतु रामकथा के साथ सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि हर भाषा में यह गाथा उपलब्ध रही। परंतु खड़ी बोली में इस गाथा की अनुपलब्धता को दूर किया सिवान के सरसर ग्राम के प्रोफेसर रामचंद्र सिंह सुरसरिया जी ने। उन्होंने खड़ी बोली में ‘श्री रामचंद्रायण’ की रचना कर खड़ी बोली के पाठकों के लिए भी रामकथा के गुणगान का अवसर मुहैया कराने का भागीरथ प्रयास किया हैं। वे बिहार के वाल्मीकि हैं।

संस्कृति के प्रति असीम अनुराग
उनके व्यक्तित्व का सतरंगी श्रृंगार

सामान्य तौर पर देखा जाता रहा है कि विज्ञान के विद्यार्थी साहित्य और संस्कृति की शाश्वत गाथा से दूर रहना ही पसंद करते हैं। परंतु प्रोफेसर रामचंद्र सिंह सुरसरिया डीएवी कॉलेज में रसायन विज्ञान के प्राध्यापक रहने के बावजूद साहित्य साधना में आकंठ डूबे नजर आते हैं। उनका भारतीय संस्कृति के प्रति असीम अनुराग भी उनके व्यक्तित्व का सतरंगी श्रृंगार करता नजर आता है।

धरोहर के विनम्र पुरोधा

आज के डिजिटल क्रांति के दौर में जनसंचार के तमाम तकनीकी माध्यम उपलब्ध होने से जनसंचार के पारंपरिक साधन अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। परंतु धरोहर के पुरोधा प्रोफेसर रामचंद्र सुरसरिया अपने गांव सरसर में सदियों से रामलीला के मंचन के सूत्रधार बने हुए हैं। स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के स्वरूप में मंच पर कभी आकर समाज को शुचिता का संदेश देते नजर आते थे तो अब रामलीला का निर्देशन कर आध्यात्मिक अनुराग को आधार देते दिख रहे हैं। उनके व्यवहार का माधुर्य हर किसी को अपना मुरीद बना जाता है तो उनकी लेखनी विज्ञान की गुत्थियों को सुलझाने के साथ अध्यात्म की अविरल सरिता को प्रवाहित करने के लिए व्याकुल दिखाई देती है।

फाग के उत्सव में उल्लास की धूम

फगुआ की धुन बिहारी सांस्कृतिक अस्मिता की विशेष पहचान रही है। वसंत की मौसमी सुगंध जब गायन के साथ अपना तालमेल बिठाती है तो लोक उत्सव सभी को अभिभूत कर जाता है। सिवान शहर में होली की पूर्व संध्या पर प्रतिवर्ष फगुआ गवनई का आयोजन उनका प्रिय शगल रहा है। जहां फाग की मस्ती के साथ लजीज जायकों का स्वाद आनंद के रंग से सराबोर कर जाता है।

निर्गुण आस्था के साधक

यह संसार ईश्वर की रचना है कोई ईश्वर के सगुण रूप को देखता है तो कोई निर्गुण स्वरूप में ही आस्थामय हो जाता है। प्रोफेसर रामचंद्र सिंह सुरसरिया निर्गुण आस्था के साधक हैं। उनकी लेखनी ईश्वर के निर्गुण स्वरूप की जब साधना करती है तो उनके शब्द आध्यात्मिक आनंद में थिरक उठते हैं।

आज उनके जन्मदिन पर श्री हरि से यहीं कामना है कि उनकी लेखनी अनंत काल तक अध्यात्म, संस्कृति और विज्ञान की सुंदर त्रिवेणी बहाती रहे ताकि पाठकगण आनंद के सागर में गोते लगाते रहें।

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