वरीय पत्रकार व प्राध्यापक प्रो. अशोक प्रियंवद को पितृ शोक

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।

अर्थात् आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु। वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा। वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी वह मारा नहीं जाता।

बिहार में सीवान के वरीय पत्रकार व जेड.ए इस्लामिया कॉलेज में हिंदी के वरीय प्राध्यापक प्रो. अशोक प्रियंवद के पिता जनकदेव पाण्डेय का निधन गुरूवार को हो गया। अपने जीवन के 93 बसंत देख चुके स्वर्गीय पाण्डेय अपने पीछे तीन पुत्र व तीन पुत्री, नाती पोतो का भरा पूरा संसार छोड़ गए हैं। शोक संवेदना व्यक्त करने वालों में पत्रकार बंधु, राजनीतिक सामाजिक जन उपस्थित रहे। उनकी अंत्येष्टि शुक्रवार को सरयू नदी के तट पर किया गया।

कहते हैं कि पिता के जाने के बाद पुत्र की शक्ति दुर्बल हो जाती है परन्तु स्वर्गीय पाण्डेय अपने जीवन में पुत्र ही नहीं पौत्रों को भी एक उचित स्थान दे पाए हैं। सीवान जिले में भगवानपुर प्रखंड के पंडित के रामपुर गांव से निकलकर नगर में राजेंद्र खादी ग्रामोद्योग में उन्होंने वर्षों तक कार्य किया, उसे नया रूप दिया। जिसे लेकर समाज में उनका मान सम्मान बढा। विशेष बात यह है कि अभी एक वर्ष  पहले ही उनकी पत्नी का निधन हो गया था।

इस भौतिक जीवन में व्यक्ति का आकलन क्या खोया? क्या पाया? को लेकर होती है। सच तो यह है कि धरती पर मात्र जीव की स्थिति बदलती है शिशु से किशोर,किशोर से युवा, युवा से प्रौढ,प्रौढ से वृद्ध और वृद्ध से विदाई।आपके जीवन का मूल मंत्र निर्लिप्ता रहा,अर्थात जीवन में कैसी भी परिस्थिति आए,आपने अपने अन्तर्मन को संतुलित रखा। यह परमानंद प्राप्ति की कुंजी रहा।

और अंतत:
“अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च|
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्”

(अर्थात फल-फूल बिना किसी भी प्रेरणा के स्वत: समय पर प्रकट हो जाते हैं और समय का अतिक्रमण नहीं करते, उसी प्रकार पहले किए गए कर्म भी यथा समय ही अपने फल देते हैं।)

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