राम आयेंगे, मर्यादा का पाठ भी पढ़ाएंगे!

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श्रीनारद मीडिया,  सेंट्रल डेस्‍क:

आलेख डॉक्टर गणेश दत्त पाठक

सियाराम मय सब जग जानी… अभी वर्तमान में शाश्वत प्रखरता के साथ सार्थकता को प्राप्त करता दिख रहा है। अयोध्या से लेकर पूरे विश्व के सनातनी समुदाय में श्रद्धा, उल्लास और उमंग की त्रिवेणी बहती दिखाई दे रही है। राम आयेंगे धुन पल पल सुनाई दे रहा है। लेकिन सत्य तो यह भी है कि प्रभु श्रीराम तो अनादि हैं, अनंत है, सर्वव्यापक हैं, सचिन्नदानंद हैं, फिर वह कैसे आयेंगे?, वे तो हर क्षण मौजूद हैं। हां, यह जरूर है कि अयोध्या धाम में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा होगी। लेकिन प्रभु श्रीराम तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते रहे हैं। वे भला कैसे अकेले आयेंगे, जब उनकी प्राण प्रतिष्ठा होगी तो प्रकृति के हर आयाम मर्यादा के सनातनी मूल्यों की तान भी सुनाई देते दिखाई देंगे। दया, करुणा, उदारता, स्नेह, सेवा भावना, सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, जवाबदेही, जिम्मेदारी, शांति, अहिंसा, न्याय, ईमानदारी, धैर्य आदि मानवीय और सनातनी मूल्यों के बिना प्रभु श्रीराम कैसे बिराजेंगे?

मर्यादा पुरुषोत्तम संस्कृत का शब्द है। मर्यादा का अर्थ होता है सम्मान और न्याय परायण, वहीं पुरुषोत्तम का अर्थ होता है सर्वोच्च व्यक्ति। जब ये दोनों शब्द जुड़ते हैं तब बनता है सम्मान में सर्वोच्च। श्री राम ने कभी भी अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने सदैव अपने माता पिता और गुरु की आज्ञा का पालन किया। साथ ही, अपनी समस्त प्रजा का पुत्रवत ख्याल भी रखा। वे न सिर्फ एक आदर्श पुत्र थे बल्कि आदर्श भाई, पति और राजा भी थे। शबरी, निषादराज और केवट से जुड़े प्रसंग बताते हैं कि प्रभु श्रीराम ने सदैव वंचितों का साथ दिया। प्रभु श्रीराम ने स्वार्थ की बजाय सिद्धांत को सदैव वरीयता दी। प्रभु श्रीराम कमजोरों को एकता के सूत्र में पिरोते नजर आते हैं। बाली की बजाय सुग्रीव को वरीयता देकर प्रभु श्रीराम व्यवस्था के विस्थापितों के पैरोकार नजर आते हैं। धर्म को केवल मोक्ष का साधन नहीं बनना बल्कि समाज को सार्थकता भी प्रदान करना है और प्रभु श्रीराम का उदात्त चरित्र इस तथ्य की स्थापना करता नजर आता है।

परंतु आज हमारे समाज की दशा क्या है? असंतोष, अलगाव, उपद्रव, आंदोलन, असमानता, आदर्श विहीनता, अन्याय, अत्याचार, अपमान, अवसाद, अस्थिरता, अनिश्चितता, संघर्ष, हिंसा से चतुर्दिक मानवता घिरी हुई है। समाज में सांप्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद, संकीर्ण कुत्सित भावनाओं और समस्याओं के मूल में तो हमारा चारित्रिक पतन और नैतिक मूल्यों का गिरावट ही दिखाई देता है। ऐसे में राम आयेंगे तो हम क्या मुंह दिखाएंगे?

निश्चित तौर पर 22 जनवरी को देश में दीवाली मनाने की तैयारी चल रही है। घर घर दीप भी जलेंगे। राम लला के स्वागत में मंगल गान भी होंगे। परंतु सबसे बड़ी आवश्यकता मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के महान मूल्यों यथा दया, करुणा, स्नेह, सेवा भावना, न्याय, सत्यनिष्ठा से हर जीवन को आलोकित करने की भी है ताकि हम सभी के झोपड़ी के भाग्य भी खुल जाएं…

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