कभी न भूलने वाली लता दी की गायिकी.

कभी न भूलने वाली लता दी की गायिकी.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

लता के निधन से शोक में डूबा देश

गीतों के जरिए हमेशा रहेंगी याद

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

1942 से गायन की शुरुआत करने वाली लता मंगेशकर 70 वर्षों से अधिक तक हिंदी सिनेमा गायन के शीर्ष पर बनी रही,और कोई शक नहीं कि उनके नहीं रहने के बावजूद उनकी आवाज पार्श्वगायन के शीर्ष पर बनी रहेगी। उनके गायन की विविधता इसी से समझी जा सकती है कि बाल अभिनेताओं के लिए उनकी आवाज सबसे बेहतर मानी जाती थी। उन्होंने भजन भी गाए तो एकाध कैबरे नंबर गाने में भी संकोच नहीं किया।मधुबाला, मीना कुमारी से लेकर करिश्मा कपूर और प्रीति जिंटा तक वे हिंदी सिनेमा के नायिकाओं की प्रतिष्ठित आवाज बनी रहीं। लता जी की यह सफलता ही है कि वे अपने व्यक्तित्व के बजाय कृतित्व के माध्यम से याद आती रहेगी। आश्चर्य नहीं कि जितनी अमरता उनकी फिल्मी गीतों ने हासिल की,उससे कहीं अधिक प्रतिष्ठा उनके गैरफिल्मी गीतों को भी मिल सकी।

फिल्मों में पार्श्वगायन का लता जी सफर 1942 में शुरु हुआ और 1949 में उन्होंने हिंदी सिनेमा को ‘आएगा आने वाला,आएगा..’जैसा गीत दिया जो आज ही नहीं सदियों तक उसी तन्मयता से सुना जाता रहेगा। ‘महल’ का यह गीत मधुबाला पर फिल्माया गया था,कहा जाता है मधुबाला लता मंगेशकर की आवाज की शर्तों के साथ ही फिल्म साइन करती थी।

कहते हैं इस गीत के कंपोजीशन और रिकार्डिंग में पांच दिन का समय लगा था। खेमचंद प्रकाश ने इसे लता से बार बार गवाया और उसमें लगातार सुधार करते रहे। उस समय चूंकि रिकार्डिंग की तकनीक आज की तरह उन्नत नहीं थी, इसीलिए दूर से आती आवाज के लिए लता को माइक से दूर से गाना पडता था। लेकिन इस गीत के साथ लता ने जो जादू जगाया कि पण्डित कुमार गंधर्व जैसे महान गायक ने बेहिचक स्वीकार किया.

1953 में आयी ‘अनारकली’ का ये जिंदगी उसी की है,जो किसी का हो गया..लता मंगेशकर के ऐसे ही गीतों में शुमार है,जिसे सी रामचंद्र ने संगीतबद्ध किया था। यह गीत बीना राय पर फिल्माया गया था,जब उन्हें महाराजा अकबर द्वारा दीवार में चुनवाया जा रहा होता है।इस दृश्य के दुख को लता की आवाज ने एक अलग ही पहचान दे दी थी।

लता ने मिलन के भी गीत गाए,सुख के भी,लेकिन विरह के गीतों में उनकी आवाज जैसे सीधे दिल कुरेद देती थी।ऐसा ही एक गीत लता मंगेशकर के अमर गीतों में माना जाता है,रसिक बलमा,हाय दिल क्यों लगाया ,जैसे रोग लगाया। 1956 में ‘चोरी चोरी’ के लिए लता ने यह गीत शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में गाया था।यह गीत नरगिस पर फिल्माया गया था।समय के हिसाब से इस गीत में नरगिस आधुनिका की वेशभूषा में दिखती हैं।

1960 ‘परख’ का गीत ओ सजना,बरखा बहार आयी,रस की फुहार लाय़ी,अंखियों में प्यार लाई,तुमको पुकारे मेरे मन का पपीहरा शैलेन्द्र ही लिख सकते थे।लेकिन उल्लेखनीय है कि इसा मूल बांगला गीत सलिल चौधरी ने खुद लिखा था। लेकिन जब गीत बनने लगा तो सलिल चौधरी ही इससे संतुष्ट नहीं हो रहे थे।तब लता मंगेशकर ने जिद कर रिकार्डिंग की।और आज यह गीत हिंदी सिनेमा के कालजयी गीतों में शामिल माना जाता है। बारिश के वातावरण में यह गीत फिल्म की नायिका साधना पर फिल्माया गया था।

‘मुगले आजम’ हिंदी की कालजयी फिल्मों में शामिल है तो उसका एक कारण लता मंगेशकर की आवाज भी है,जिसने कथा के दर्द से दर्शकों को आनस्क्रीन ही नहीं आफस्क्रीन भी जोडे रखा।‘मुगले आजम’ के सभी कालजयी गानों के बीच बेकस पर करम कीजिए,ओ सरकारे मदीना अपनी गायिकी के लिए खास मानी जाती है। जंजीरों में जकडे मधुबाला पर फिल्माए इस गीत को लिखा था शकील बदायुनी ने जबकि संगीत नौशाद ने दिया था।

लता की आवाज ने अल्लाह तेरो नाम,ईश्वर तेरो नाम के रुप में देश को एक ऐसा प्रार्थना दिया जो फिल्मों से परे सीधे जन जन तक पहुंच गया। 1961 में आयी ‘हमदोनों’ में साहिर लुधियानवी के लिखे और जयदेव के संगीतबद्ध किए इस गीत को मंदिर में श्रद्धालुओं के साथ प्रार्थना करते हुए नंदा पर फिल्माया गया था,जबकि मुख्य कलाकार साधना और देव आनंद थे।

लता जितनी सहज उर्दू बोलों के साथ थी,उतनी ही सहज खडी हिंदी के साथ। पं नरेन्द्र शर्मा का 1961 में आयी ‘भाभी की चूडियों’ के लिए लिखा गया ज्योति कलश छलके,हुए गुलाबी लाल सुनहरे,रंग दल बादल के ज्योति कलश छलके…आज भी जैसे कानों में रस घोलता है। यह गीत फिल्म की नायिका मीना कुमारी पर फिल्माया गया था।

मदन मोहन और लता मंगेशकर जब भी मिले हिंदी सिनेमा गीतों में चमत्कार सा दिखा।ऐसा ही एक चमत्कार ‘वो कौन थी’ में दिखा था, लग जा गले फिर ये हंसी रात हो न हो के रुप में। 1964 में आयी इस फिल्म में मुख्य भूमिका मनोज कुमार और साधना ने निभायी थी।

1965 में आयी ‘गाईड’ समय के आगे की फिल्म आज भी मानी जाती है। शेलन्द्र का लिखा कांटों से खींच के ये आंचल,तोड के बंधन मैंने बांधी पायल,कोई न रोको दिल की उडान को,दिल वो चला,आज फिर जीने की तमन्ना है .. आज भी महिला सशक्तीकरण की प्रतीक मानी जाती है,जिसे लता की आवाज का उत्साह एक अलग ही उंचाई देती है। एस डी बर्मन के संगीतबद्ध इस गीत को वहीदा रहमान पर फिल्माया गया था,हालांकि दृश्य में नायक देव आनंद भी दिखते हैं।

अपने समय की सभी प्रमुख नायिका लता की आवाज से समृद्ध होती रहीं।हेमा मालिनी पर फिल्माए अधिकांश गीतों को भी लता जी ने आवाज दिए हैं,हेमा मालिनी पर फिल्माए अनेकों महत्वपूर्ण गीतों के बीच ‘रजिया सुल्तान’ का यह गीत भी अपनी गायिकी के लिए समय की सीमा ससे परे सुने जाने का सामर्थ्य रखती है। 1983 में आयी ‘रजिया सुल्तान’ के ऐ दिले नादां,तेरी आरजू क्या है…में संगीत खय्याम का था जबकि लिखा था जां निसार अख्तर ने।

लता जी के गीतों को किसी सूची में समेटना आसान तो नहीं,असंभव ही है।उनका हर गीत किसी न किसी रुप में विशिष्ट है।ऐसा ही लता जी के गैर फिल्मी गीतों के लिए भी कहा जा सकता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!