बनारसी लंगड़ा के पीछे है अनोखी कहानी, काशी नरेश ने तैयार कराई थी कलम.

बनारसी लंगड़ा के पीछे है अनोखी कहानी, काशी नरेश ने तैयार कराई थी कलम.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बनारसी लंगड़ा आम का नाम सुनते ही मुंह में पानी आता है। कारण भी खास है क्योंकि लाजवाब है इसकी सुगंध और मिठास। पतली कोसिली व पतला छिलका होने के साथ ही इसमें रेसा नहीं के बराबर होता है। इस आम की पहचान भी ऊपर से ही हो जाती है। इसके छिलके के ऊपरी परत पर एक प्रकार का प्राकृतिक पाउडर लगा रहता है।

इस आम को छूते ही उस पर उंगलियों के निशान स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। वैसे तो लगभग हजारों प्रजाति के आम पाए जाते हैं। फिर भी अपनी विशिष्टता के कारण इसको सभी फलों के राजा की उपाधि दी गई है। अपने लाजवाब स्वाद के कारण ही यह अपनी पहचान विदेश में भी जमा चुका है।

ऐसे पड़ा नाम, लंगड़ा आम : बनारसी लगड़ा आम का नाम भी ऐसे ही नहीं पड़ गया। इसके पीछे भी एक कहानी जुड़ी है। बताया जाता है कि लगभग 200 वर्ष पूर्व एक संत काशी आए। वह अपने साथ दो आम का पौध भी लाए थे। वह उस समय कचहरी स्थित एक शिवालय में ठहरे थे। उस मंदिर के पुजारी दिव्यांग थे। संत ने एक आम का पौधा उस पुजारी को दे दिया। कहा कि इसका रोपण कर दें।

लेकिन हिदायत दिया कि इसका फल केवल भगवान को ही भोग लगेगा। अन्य किसी को नहीं। दूसरे दिन वह संत वहां से चले गए। कुछ वर्ष बाद जब उस पौधे में फल लगा तो मंदिर के पुजारी ने भगवान को उसका भोग लगाया। फिर प्रसाद स्वरूप उसे चखा। प्रसाद चखते ही पुजारी आश्चर्यचकित हो गया। इतने मीठे और सुगंधित आम न पहले उसने कभी देखा और खाया था। बस यहीं से दिव्यांग पुजारी के नाम पर ही इस खास आम का नाम लंगड़ा आम पड़ गया।

काशी नरेश ने तैयार कराया था पहला कलम : किंवदंतियों के अनुसार एक दिन काशी नरेश उस शिव मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचे। तब पुजारी ने भगवान को भोग लगाया हुआ उसी पेड़ का आम प्रसाद स्वरूप उन्हें दिया। काशी नरेश ने जब भगवान का प्रसाद ग्रहण किया तब वह भी उस आम के कायल हो गए। तब उन्होंने माली को भेजकर उस आम का कलम तैयार करवाया और अपने बाग में रोपित किया। इस तरह धीरे-धीरे इस प्रजाति का आम पूरे काशी में फैला।

आठ सौ हेक्टेयर भूमि में हो रहा है उत्पादन : जिला उद्यान अधिकारी संदीप गुप्ता ने बताया कि वर्तमान समय में लगभग आठ सौ हेक्टेयर भूमि में लंगड़ा आम का उत्पादन हो रहा है। विदेश में बढ़ती मांग को देखकर इसका उत्पादन और बढ़ाने की कवायद की जा रही है। इसके मदर ट्री से लगभग पांच हजार पौधे तैयार किए जा रहे हैं। जिसे अन्य जनपदों के किसान भी उत्पादन कर सकते हैं।

पहली बार वर्ष 2020 में विदेश गया लंगड़ा आम : एपीडा के सहायक महाप्रबंधक सीबी सिंह बताते हैं कि पहली बार मई 2020 में बनारसी लंगड़ा आम को दुबई और लंदन भेजा गया था। उसके बाद से इसके मांग में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। प्रचार प्रसार बढ़ने से घरेलू बाजार में भी इसकी मांग बढ़ी है। इससे अब किसानों का मनोबल भी बढ़ा है। उनको उनकी लागत का अच्छा मूल्य प्राप्त हो रहा है। आम के इस प्रजाति का जीआई में पंजीकरण के लिए भी प्रस्ताव भेजा गया है। विपरीत मौसम के बावजूद भी इस वर्ष किसानों ने दो टन आम निर्यात किया है।

 

 

 

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