विश्व मृदा दिवस मनाने से क्या लाभ है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संयुक्त राष्ट्र प्रत्येक वर्ष 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाता है।

  • अगस्त 2023 में अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन तथा प्रस्तुत की गई तकनीकी रिपोर्ट में मृदा में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के स्तर एवं भारत में व्यक्तियों के पोषण संबंधी देखभाल के बीच संबंध को दर्शाया गया है।

विश्व मृदा दिवस:

  • यह खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और अन्य मुद्दों के समाधान हेतु सतत् मृदा प्रबंधन एवं पुनर्वास के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रति थाईलैंड के दिवंगत राजा भूमिबोल अदुल्यादेज की आजीवन वचनबद्धता तथा उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (International Union of Soil Sciences- IUSS) ने वर्ष 2002 में इस दिवस की सिफारिश की थी।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन मृदा संरक्षण पर वैश्विक भागीदारी के ढाँचे के भीतर थाईलैंड साम्राज्य के नेतृत्त्व में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने वाले एक मंच के रूप में WSD की औपचारिक स्थापना का समर्थन करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 5 दिसंबर, 2014 को पहले आधिकारिक विश्व मृदा दिवस के रूप में नामित किया था।
  • वर्ष 2023 की थीम: मृदा और जल, जीवन का एक स्रोत (Soil and Water, a Source of Life)।

अध्ययन के अनुसार मृदा के सूक्ष्म पोषक तत्त्वों और व्यक्तियों की पोषण स्थिति के बीच क्या संबंध है?

  • मृदा संरचना और सूक्ष्म पोषक तत्त्व का अवशोषण:
    • मृदा की संरचना का फसलों में ज़िंक और लौह जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के स्तर पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पौधे इन पोषक तत्त्वों को मृदा से अवशोषित करते हैं तथा मृदा में उनकी उपलब्धता भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा को प्रभावित करती है।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • मृदा में ज़िंक का निम्न स्तर बच्चों में बौनेपन और कम वजन की स्थितियों की उच्च दर से जुड़ा हुआ है। ज़िंक शारीरिक विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • मृदा में लौह तत्त्व की उपलब्धता एनीमिया की व्यापकता से संबंधित है। आयरन हीमोग्लोबिन उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो शरीर में ऑक्सीजन संवहन के लिये आवश्यक है।
    • उन क्षेत्रों में जहाँ मृदा में पर्याप्त ज़िंक, लौह और अन्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी होती है, ऐसी मृदा में उगाई जाने वाली फसलों का उपभोग करने वाली आबादी में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी की संभावना अधिक होती है।
  • सुझाए गए समाधान :
    • ज़िंक की कमी वाली मृदा पर फसलों में ज़िंक के प्रयोग से धान, गेहूँ, मक्का और जई की उपज केवल नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम उर्वरक के प्रयोग की तुलना में 75% अधिक बढ़ जाती है।
    • ज़िंक-समृद्ध उर्वरक के प्रयोग के बाद तीन से चार वर्षों तक मृदा में ज़िंक का स्तर बढ़ सकता है, जिसका अर्थ है कि यह एक प्रभावी दीर्घकालिक हस्तक्षेप हो सकता है, जिसमें अन्य समाधानों की तुलना में कम अल्पकालिक रखरखाव की आवश्यकता होती है।

भारत की मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी की स्थिति क्या है?

  • भारत की मृदा लंबे समय से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की व्यापक कमी का सामना कर रही है। 1990 के दशक में पोटैशियम की कमी अधिक देखी गई और 2000 के दशक में सल्फर की कमी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत मृदा और पौधों में सूक्ष्म एवं माध्यमिक पोषक तत्त्वों व प्रदूषक तत्त्वों (AICRP-MSPE) पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना इससे जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा 28 राज्यों से 0.2 मिलियन मृदा के नमूनों के विश्लेषण को दर्शाती है:
    • ज़िंक की कमी: भारत की लगभग 36.5% मृदा में ज़िंक की कमी है।
    • आयरन की कमी: देश की लगभग 12.8% मृदा में आयरन की कमी है।
    • अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्व: ज़िंक तथा आयरन की कमी के अतिरिक्त शोध अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को भी इंगित करता है:
      • 23.4% मृदा में बोरोन की कमी पाई जाती है।
      • 4.20% मृदा में तांबे की कमी देखी गई है।
      • मैग्नीज़ की कमी 7.10% मृदा को प्रभावित करती है।

नोट:

AICRP-MPSE को संपूर्ण देश की मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी का विश्लेषण करने के लिये वर्ष 1967 में लॉन्च किया गया था। वर्ष 2014 के बाद से उक्त परियोजना में मृदा स्वास्थ्य एवं मानव स्वास्थ्य के बीच अंतर्संबंध का विश्लेषण करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

संधारणीयता के लिये मृदा-केंद्रित कृषि अपनाने हेतु क्या किया जा सकता है?

  • संरक्षण कृषि तथा कुशल खेती तकनीकें:
    • मृदा के पोषक तत्त्वों और स्वास्थ्य की बहाली के लिये जुताई न करने (No Till) के साथ ही अवशेष गीली घास तथा फसल चक्र जैसी संरक्षण कृषि तकनीकों का उपयोग करना चाहिये।
    • जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये पारंपरिक उर्वरक छिड़काव के बजाय बीज-सह-उर्वरक ड्रिल यंत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • विविधता तथा नवीनता को अपनाना:
    • आवरण फसलों (Cover Crops), मल्च बनाना/मलचिंग (Mulching), कृषि वानिकी तथा भूमित्र (Bhoomitra) व कृषि-रास्ता (Krishi-RASTAA) जैसे स्मार्ट मृदा समाधानों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • उन प्रथाओं को बढ़ावा देना जो पृथक्करण को बढ़ाती हैं, फसलों में विविधता लाती हैं, अवशेष को जलाने की समस्या का समाधान करती हैं तथा प्रौद्योगिकी व AI के साथ सटीक खेती को अपनाती हैं।
  • पुनर्स्थापन और पुनर्ग्रहण विधियाँ:
    • कार्बन कृषि का समर्थन करना, लवणीय/क्षारीय मृदा को पुनः प्राप्त करना एवं रासायनिक इनपुट को कम करते हुए सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के उपयोग को नियंत्रित करना।
    • कुशल उर्वरक छिड़काव के लिये यांत्रिकीकरण का उपयोग करना तथा बेहतर मृदा स्वास्थ्य के लिये जैविक खादों को एकीकृत करना।

मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिये क्या पहलें हैं?

  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
  • जैविक कृषि 
  • उर्वरक क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भरता’
  • डिजिटल कृषि
  • कार्बन कृषि 
  • परंपरागत कृषि विकास योजना
  • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना

स्थायी भूमि प्रबंधन, जैवविविधता और शिक्षा तक पहुँच को बढ़ावा देकर विश्व मृदा दिवस पृथ्वी के अस्तित्व में मृदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिये समृद्ध तथा टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने एवं मृदा के स्वास्थ्य को संरक्षित व बहाल करने हेतु ठोस प्रयासों का आह्वान करता है।

 

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