भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की क्या आवश्यकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सैन्य और रणनीतिक समुदाय के बीच वर्षों के विचार-विमर्श के बाद भारत ने एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (National Security Strategy- NSS) लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (National Security Council Secretariat- NSCS) विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों से इनपुट एकत्र करने की प्रक्रिया में है जिन्हें रणनीति के मसौदे में शामिल किया जाएगा और फिर इस पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की अंतिम मंज़ूरी प्राप्त की जाएगी। यह पहला अवसर है कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति प्रस्तुत करने जा रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति क्या है?

  • परिचय:
    • एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज़ देश के सुरक्षा उद्देश्यों और इन्हें प्राप्त करने के लिये अपनाए जाने वाले तरीकों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
    • NSS को पारंपरिक (केवल राज्य को प्रभावित करने वाले) और गैर-पारंपरिक (राज्य, व्यक्ति और संपूर्ण मानवता को प्रभावित करने वाले), दोनों तरह के खतरों पर विचार करना होगा। इसके साथ ही, इसे भारत के संविधान और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के ढाँचे के भीतर कार्य करना होगा।
    • इस रणनीति में प्रायः संभावित खतरों का आकलन, संसाधन आवंटन, राजनयिक एवं सैन्य कार्रवाइयाँ और खुफिया सूचना, रक्षा एवं अन्य सुरक्षा-संबंधी क्षेत्रों से संबंधित नीतियाँ शामिल होती हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति रखने वाले देश:
    • संयुक्त राज्य अमेरिकायूनाइटेड किंगडम और रूस जैसे उन्नत सैन्य एवं सुरक्षा संरचनाएँ रखने वाले विकसित देशों ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियाँ क्रियान्वित कर रखी हैं।
    • चीन भी एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति रखता है, जबकि पाकिस्तान ने राष्ट्रीय सुरक्षा नीति 2022-2026 जारी की है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) तैयार करने के भारत के पिछले प्रयास:
    • कारगिल समीक्षा समिति की रिपोर्ट (2000): वर्ष 1999 के कारगिल संघर्ष के बाद गठित कारगिल समीक्षा समिति ने एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा पर कई सिफ़ारिशें शामिल थीं। यद्यपि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया था, लेकिन किसी औपचारिक NSS का तत्काल निर्माण नहीं हो सका।
    • सुरक्षा पर नरेश चंद्र टास्क फोर्स की रिपोर्ट (2012): वर्ष 2012 में सुरक्षा पर नरेश चंद्र टास्क फोर्स (Naresh Chandra Task Force on Security) ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जिसमें रक्षा एवं खुफिया सुधारों सहित राष्ट्रीय सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई थी। हालाँकि, इस रिपोर्ट के प्रभाव में भी किसी औपचारिक NSS की तत्काल घोषणा नहीं की गई।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (National Security Advisory Board- NSAB): NSAB, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ और सलाहकार शामिल होते हैं, ने कथित तौर पर कई अवसरों पर राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेजों का मसौदा तैयार किया है। ये मसौदे उत्तरवर्ती सरकारों को प्रस्तुत किये गए, लेकिन कोई औपचारिक NSS अमल में नहीं आया।
    • जनरल डीएस हुडा का दस्तावेज़ (Gen. D.S. Hooda’s Document): वर्ष 2019 में पूर्व सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुडा ने एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज़ तैयार किया, जिसने भारत के लिये एक NSS के विकास की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम को चिह्नित किया।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज़ के लिये प्रस्तावित रूपरेखा
    एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति दस्तावेज़ में निम्नलिखित तत्त्व होने चाहिये:

    • राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों की एक कार्यशील परिभाषा;
    • विश्व में हो रहे भू-राजनीतिक परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए उभरते सुरक्षा माहौल पर विचार करना;
    • चुनौतियों से निपटने में देश की राष्ट्रीय शक्तियों और कमज़ोरियों का आकलन;
    • चुनौतियों से निपटने के लिये आवश्यक सैन्य, आर्थिक, राजनयिक संसाधनों की पहचान करना।

भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की क्या आवश्यकता है?

  • रणनीतिक अनिश्चितता का युग:
    • शीत युद्ध की समाप्ति ने एक जटिल और अप्रत्याशित वैश्विक परिदृश्य तैयार किया है, जिसमें संभावित विरोधियों की संख्या बढ़ रही है और सशस्त्र बलों के लिये मिशनों का विस्तार हो रहा है।
    • जबकि कुछ क्षेत्रीय समूह राज्य के कार्यों को संभाल रहे हैं, सिपहसालार (warlords), जातीय सरदार (ethnic chieftains), बहुराष्ट्रीय निगम और अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन जैसे गैर-राज्य अभिकर्ता (non-state actors) वैश्विक राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं।
    • प्रमुख चुनौतियों में आतंकवाद, जातीय विविधता, छोटे हथियारों का प्रसार, नशीले पदार्थों की तस्करी और धार्मिक उग्रवाद शामिल हैं, जिन पर सतर्कता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • परमाणु सुरक्षा और भू-राजनीतिक बदलाव:
    • परमाणु निवारण/निरोध (nuclear deterrence) का भविष्य भारत की सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। भारत लंबे समय से अपने पड़ोस में चीन और पाकिस्तान की परमाणु क्षमताओं को लेकर चिंतित रहा है।
    • भारत ने हिंद महासागर में अवस्थित डिएगो गार्सिया द्वीप में अमेरिकी परमाणु हथियारों की मौजूदगी के बारे में भी चिंता व्यक्त की है। भारत के परमाणु निरोध को प्रौद्योगिकीय परिवर्तन और भू-राजनीतिक बदलावों के अनुकूल होने की ज़रूरत है।
  • उभरता हुआ हिंद-प्रशांत सुरक्षा ढाँचा:
    • शक्ति संतुलन उत्तरी अमेरिका और यूरोप से हटकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो रहा है, जो अब गुरुत्व का नया रणनीतिक केंद्र बन रहा है।
    • उभरता सुरक्षा ढाँचा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘सहकारी सुरक्षा’ (cooperative security) के आव्यूह के भीतर ‘प्रतिस्पर्द्धी सहयोग’ (competitive cooperation) की कल्पना करता है।
  • पारंपरिक खतरों से परे चुनौतियाँ :
    • आर्थिक एवं सामाजिक मुद्दों से घरेलू स्थिरता को खतरा पहुँच सकता है, जैसे जनजातीय क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवाद
  • प्रौद्योगिकीय प्रगति और साइबर सुरक्षा :
    • क्षमताओं को बढ़ाने और कमज़ोरियाँ पैदा करने, दोनों ही रूप में प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करती है।
    • साइबर सुरक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है, जिसके लिये उन्नत प्रौद्योगिकीय क्षमताओं की आवश्यकता है।
  • पारिस्थितिक क्षरण और जलवायु परिवर्तन:
    • ग्लेशियर के पिघलने और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसे पर्यावरणीय परिवर्तनों के भी सुरक्षा निहितार्थ होते हैं।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा वास्तुकला को सुदृढ़ करने की आवश्यकता:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) अपनी सलाहकारी भूमिका तक सीमित रहा है और उसका अधिक लाभ नहीं उठाया जा सका है।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अधिकारिता को सशक्त बनाने की प्रबल आवश्यकता है।

भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के कौन-से संभावित लाभ प्राप्त हो सकते हैं?

  • व्यापक दृष्टिकोण: NSS समग्र तरीके से आंतरिक और बाह्य दोनों तरह की विभिन्न सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है।
  • स्पष्ट उद्देश्य: यह स्पष्ट सुरक्षा उद्देश्यों को रेखांकित करता है, उन आस्तियों एवं हितों को परिभाषित करने में मदद करता है जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता होती है और संभावित खतरों की पहचान करता है।
  • नीति मार्गदर्शन: NSS नीति मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिये रणनीतियों एवं नीतियों का निर्माण करने और उन्हें प्रवर्तित करने में मदद मिलती है।
  • प्राथमिकताकरण: यह सुरक्षा चिंताओं को प्राथमिकता प्रदान करने में मदद करता है, सबसे महत्त्वपूर्ण विषयों के लिये संसाधनों एवं प्रयासों के आवंटन को सक्षम बनाता है।
  • संसाधन आवंटन: यह संसाधन आवंटन में सहायता करता है, जिससे सुरक्षा बढ़ाने के लिये वित्तीय एवं मानव संसाधनों का कुशल उपयोग संभव हो पाता है।
  • निवारण/निरोध: NSS राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक स्पष्ट एवं सुविचारित दृष्टिकोण प्रदर्शित कर संभावित विरोधियों के निरोध (Deterrence) में मदद कर सकता है।
  • संपूर्ण-सरकार दृष्टिकोण: NSS विभिन्न सरकारी विभागों और एजेंसियों को शामिल करते हुए सुरक्षा से संबंधित मामलों में समन्वय एवं सहयोग सुनिश्चित कर ‘संपूर्ण-सरकार’ दृष्टिकोण (Whole-of-Government Approach) को बढ़ावा देता है।
  • सार्वजनिक जागरूकता: NSS के तत्त्वों को जनता के साथ साझा किया जा सकता है; इस प्रकार, राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सकती है और सार्वजनिक समर्थन हासिल किया जा सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संलग्नता: NSS सुरक्षा मामलों पर अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ भारत की संलग्नता/सहभागिता का मार्गदर्शन कर सकता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के विकास से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ 

  • राजनीतिक संकोच: सरकारें अपनी सुरक्षा रणनीतियों को लिखित रूप प्रदान करने के प्रति अनिच्छुक रही हैं। ऐसा संभवतः प्रतिबद्धता के दबाव, संभावित आलोचना या निर्णय लेने में कठोरता से संबद्ध चिंताओं के कारण है।
    • NSS के तत्त्वों और प्राथमिकताओं पर राजनीतिक सहमति प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है, क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय सुरक्षा पर अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
  • कानूनी ढाँचा: यह सुनिश्चित करना कि NSS अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और घरेलू कानूनों सहित मौजूदा कानूनी ढाँचे का अनुपालन करे, आवश्यक तो है लेकिन यह जटिल सिद्ध हो सकता है।
  • संसाधन आवंटन: NSS को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये वित्तीय और मानव, दोनों आवश्यक संसाधनों का आवंटन चुनौतीपूर्ण हो सकती है, विशेष रूप से जब बजट के लिये प्रतिस्पर्द्धी मांगें हों।
  • सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व के पृथक दृष्टिकोण: रक्षा मंत्रालय और अन्य सरकारी एजेंसियों के भीतर नौकरशाही व्यवस्था में औपचारिक NSS के संबंध में अलग-अलग राय मौजूद हो सकती है।
  • बदलते खतरे का परिदृश्य: साइबर खतरों, आतंकवाद और गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों जैसे उभरते सुरक्षा खतरों से निपटने के लिये NSS को अनुकूलित करना एक निरंतर चुनौती का विषय है।
  • प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण: भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये प्रायः प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण अपनाया है, जहाँ एक सक्रिय एवं व्यापक रणनीति के बजाय सुरक्षा चुनौतियों के उत्पन्न होने पर उन्हें संबोधित किया जाता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा संस्कृति: एक राष्ट्रीय सुरक्षा संस्कृति का निर्माण करना, जो NSS के महत्त्व और सुरक्षा के बारे में व्यवस्थित सोच पर बल दे, एक क्रमिक प्रक्रिया रही है।

हुडा समिति की अनुशंसाएँ

  • लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुडा के नेतृत्व में गठित हुडा समिति (2019) ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति ढाँचे को उन्नत बनाने के लिये निम्नलिखित सुझाव पेश किये:
  • वैश्विक मामलों में उचित स्थान ग्रहण करना:
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का समर्थन करने, समतामूलक एवं समावेशी डिजिटल विकास को प्राथमिकता देने और वैश्विक सहयोग को बौद्धिक आयाम प्रदान करने में भारत अपनी भूमिका का विस्तार करे।
    • अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर अमेरिका, रूस और चीन सहित प्रमुख शक्तियों के साथ आत्मविश्वास से संलग्न हो।
    • ऊर्जा, व्यापार और सुरक्षा में साझा हितों पर ध्यान केंद्रित करते हुए मध्य-पूर्व के साथ भारत की भागीदारी पर बल दिया गया है।
  • सुरक्षित पड़ोस का निर्माण करना:
    • भारत को अपने सॉफ्ट पावर, बेहतर कनेक्टिविटी और क्षेत्रीय व्यापार के माध्यम से पड़ोसी देशों के साथ संबंध मज़बूत करना चाहिये।
    • भारत-पाकिस्तान के संबंध तनावपूर्ण हैं, जहाँ पाकिस्तान पर आतंकवाद का समर्थन बंद करने के लिये दबाव बनाने हेतु एक सतत रणनीति की ज़रूरत है। इस क्रम में कूटनीति, आर्थिक अलगाव और यहाँ तक कि सीमित सैन्य कार्रवाई भी आवश्यक हो सकती है। परमाणु मुद्दों को भी संवाद के माध्यम से हल किया जाना चाहिये।
    • चीन और भारत के बीच भविष्य में प्रतिद्वंद्विता का उभरना निश्चित है और इसे सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाना चाहिये। भारत शांतिपूर्ण संबंध चाहता है लेकिन सीमाई अखंडता और आतंकवाद विरोधी प्रयासों जैसे मुख्य हितों पर समझौता नहीं कर सकता।
  • आंतरिक संघर्षों का समाधान:
    • जम्मू-कश्मीर में कट्टरपंथ का मुक़ाबला करना और आतंकवादियों का उन्मूलन करना साथ-साथ आगे बढ़ना चाहिये। यह भय को आशा से बदलने के अभियान के साथ क्षेत्र को मुख्यधारा में लाने के लिये एक स्पष्ट रूप से परिभाषित राजनीतिक उद्देश्य द्वारा समर्थित होना चाहिये।
    • उत्तर-पूर्व में, नगा विद्रोह को हल करने के प्रयास के साथ-साथ विकास और एकीकरण पर वृहत रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये।
    • वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिये जनजातीय वंचना और शोषण जैसे मूल कारणों को संबोधित करने की आवश्यकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने के लिये विभिन्न एजेंसियों के पुनर्गठन और उनके बीच सहयोग का निर्माण करने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक और घरेलू जोखिमों से लोगों की रक्षा करना:
    • प्रभावी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में आम नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • जलवायु परिवर्तन एवं साइबर खतरों जैसी वैश्विक घटनाओं और जनसांख्यिकी, शहरीकरण एवं असमानताओं से प्रेरित आंतरिक परिवर्तनों से जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं।
  • क्षमताओं को सुदृढ़ बनाना:
    • भारत को अपने नागरिकों की सुरक्षा करने और अपनी भूमि एवं समुद्री सीमाओं को सुरक्षित कर शत्रुओं का निवारण करने के लिये अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की ज़रूरत है।
    • सरकार को स्वदेशी रक्षा मंचों के लिये अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करना चाहिये।
    • भारत को एक समर्पित साइबर कमांड का निर्माण करने की भी ज़रूरत है।

निष्कर्ष

निरंतर विकसित हो रहे विश्व में एक प्रत्याशित और लचीली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति भारत की भलाई एवं सफलता की आधारशिला के रूप में कार्य कर सकती है। एक सतर्क और अनुकूलनीय राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के अंगीकरण के माध्यम से, भारत वैश्विक सुरक्षा के गतिशील परिदृश्य में अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ़ सकता है और 21वीं सदी में अपने हितों एवं सिद्धांतों की रक्षा कर सकता है।

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