तमिलनाडु में राज्यपाल और सरकार के बीच के विवाद का क्या कारण है ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

तमिलनाडु में राजनीति उफान पर है। समस्या राज्यपाल के अभिभाषण को लेकर है। उनके अभिभाषण पर इतना हंगामा हुआ कि राज्यपाल को भाषण अधूरा छोड़कर ही विधानसभा से जाना पड़ा। सवाल यह उठता है कि राज्यपाल ने ऐसा क्या कह दिया जो हंगामा इतना बढ़ गया। दरअसल, राज्यपाल ने तमिलनाडु राज्य का नाम ही बदलने को कह दिया। उन्होंने कहा इस राज्य का नाम तमिलनाडु की बजाय तमिझगम होना चाहिए।

सत्तारूढ़ दल और कांग्रेस ने इस पर आपत्ति की। कहा कि राज्यपाल यहाँ RSS और भाजपा का एजेंडा चलाना चाहते हैं। ऐसा हम होने नहीं देंगे।

तमिलनाडु में जब राज्यपाल का अभिभाषण चल रहा था, तभी सत्ताधारी दल के विधायक नारेबाजी करते हुए आसन के समीप पहुंच गए।
तमिलनाडु में जब राज्यपाल का अभिभाषण चल रहा था, तभी सत्ताधारी दल के विधायक नारेबाजी करते हुए आसन के समीप पहुंच गए।

इसके बाद तो राज्यपाल पर आरोपों की झड़ी लग गई। राजनीतिक दलों ने कहा कि राजभवन से भाजपा का एजेंडा चलाया जा रहा है। राज्यपाल कहते हैं कि पिछले पचास सालों में द्रविड दलों ने यहाँ के लोगों के साथ धोखा किया है। हम राज्यपाल से कहना चाहते हैं कि वे भाजपा के दूसरे प्रदेशाध्यक्ष के रूप में काम करना बंद कर दें। वैसे भी यह नगालैंड नहीं, प्राउड तमिलनाडु है। राज्यपाल आरएन रवि के पास नगालैंड का भी प्रभार है।

इसलिए इन दलों ने कहा कि नगालैंड वाली चतुराई यहाँ नहीं चलेगी। दरअसल, राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर जब तक राजनीतिक नियुक्तियाँ या रिटायर्ड राजनेताओें को पदस्थ किया जाता रहेगा, झगड़े इसी तरह होते रहेंगे और महामहिम की इसी तरह छीछालेदर होती रहेगी। पहले इस पद पर किसी विषय विशेषज्ञ या वरिष्ठ विद्वान की नियुक्ति होती थी, लेकिन अब केंद्र में जिसकी सरकार हो, प्राय: उसी दल के किसी बुजुर्ग व्यक्ति को नियुक्त किया जाने लगा है, समस्या इसीलिए बढ़ गई है।

विधानसभा में हंगामे के चलते राज्यपाल आरएन रवि अभिभाषण बीच में ही छोड़कर चले गए।
विधानसभा में हंगामे के चलते राज्यपाल आरएन रवि अभिभाषण बीच में ही छोड़कर चले गए।

राज्यपाल पद पर पहले कांग्रेस ने भी खूब राजनीतिक नियुक्तियाँ कीं, लेकिन तब समस्या इसलिए नहीं आती थी क्योंकि ज़्यादातर राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार होती थी और उसी के राज्यपाल। अब ऐसा नहीं है। कई राज्यों में सरकार दूसरे दलों की है और राज्यपालों की नियुक्तियाँ दूसरे दलों ने की हैं। समस्या इसीलिए है। सरकार और राज्यपाल की विचारधारा समान नहीं होती, इसलिए विवाद होते रहते हैं।

विवाद इसलिए भी होते हैं क्योंकि राज्यपाल केंद्र सरकार की विचारधारा चलाते हैं और दूसरे दल की राज्य सरकार इस विचारधारा से सहमत नहीं होती। तो फिर इलाज क्या है? इलाज एक ही है- राज्यपाल जैसे पदों पर निष्पक्ष व्यक्ति की नियुक्ति। जैसे राष्ट्रपति पद पर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की नियुक्ति की गई थी। ऐसा नहीं है कि देश में निष्पक्ष लोगों की कमी हो। मिलते हैं, लेकिन इसके लिए इच्छाशक्ति होनी चाहिए, जिसकी फ़िलहाल तो कमी साफ़- साफ़ दिखाई दे रही है।

क्या लग रहे आरोप?

डीएमके ने तमिलनाडु के मछुआरों से संबंधित मुद्दों पर केंद्र की कार्रवाई सहित राज्यपाल पर भी आपत्ति जताई। स्टालिन ने कहा कि रवि की कार्रवाई विधानसभा की परंपरा के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने न केवल हमारी विचारधारा के खिलाफ काम किया, बल्कि राज्य सरकार के खिलाफ भी काम किया।

बाद में इस मामले को लेकर डीएमके, एआईएडीएमके और बीजेपी में भिड़ंत हो गई। उद्योग मंत्री थंगम थेनारासु ने कहा कि तैयार भाषण 5 जनवरी को राज्यपाल को भेजा गया था और उन्होंने 7 जनवरी को अपनी स्वीकृति दी थी। थेनारासु ने राज्यपाल पर राष्ट्रगान बजाए जाने से पहले बाहर निकलकर अपमान करने का आरोप लगाया।

कौन का हिस्सा छोड़ने का आरोप?

आरोप है कि राज्यपाल ने तमिलनाडु के कुछ आइकन और शासन के द्रविड़ियन मॉडल शब्द के संदर्भ वाले एक पैराग्राफ को छोड़ा। अध्यक्ष एम अप्पावु ने राज्यपाल के पटल पर रखे गए अभिभाषण का तमिल अनुवाद पढ़ा। इसमें उन्होंने वह पैराग्राफ पढ़ा जिसमें पेरियार, आंबेडकर, कामराजार, पेरारिग्नर अन्ना, करुणानिधि और मुथमिजह अरिगनार कलैगनार का जिक्र था।

इसी पैराग्राफ में शासन के द्रविड़ मॉडल की प्रशंसा थी। इसमें धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ थे। तमिलनाडु को शांति का स्वर्ग बताया गया था। आरोप है कि राज्यपाल आरएन रवि ने जानबूझकर इस पैराग्राम को नहीं पढ़ा।

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