प्रवर्तन निदेशक (ED)का क्या कार्य है,यह चर्चा में क्यों है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) के प्रमुख का कार्यकाल नवंबर 2023 से आगे जारी नहीं रहेगा।

मुद्दा:

  • नवंबर 2021 में भारत के राष्ट्रपति ने दो अध्यादेश जारी किये थे जिसमें ED के निदेशक के कार्यकाल को दो वर्ष से बढ़ाकर पाँच वर्ष करने की अनुमति दी गई थी और बताया गया था कि इसमें एक वर्ष में तीन बार कार्य अवधि के विस्तार की भी संभावना है।
  • ED प्रमुख के कार्य अवधि विस्तार की अनुमति के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है परंतु केवल दुर्लभ एवं असाधारण मामलों में और वह भी कम अवधि के लिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा दो वर्ष की अवधि से आगे के लिये ED को नियुक्त करने की शक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसके अतिरिक्त उन्होंने स्पष्ट किया कि केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 की धारा 25 (D) में वाक्यांश “दो वर्ष से कम नहीं” का अर्थ “दो वर्ष से अधिक नहीं” के रूप में नहीं लिया जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने कहा, “दो वर्ष की अवधि से अधिक की अवधि के लिये प्रवर्तन निदेशक नियुक्त करने में केंद्र सरकार की शक्ति पर कोई बंधन नहीं है”।
  • वित्तीय कार्रवाई कार्य बल द्वारा लंबित समीक्षा के लिये सरकार के कार्यकाल के हालिया विस्तार को एक कारण के रूप में उद्धृत किया गया है।
  • सरकार द्वारा हाल ही में कार्य अवधि के विस्तार के कारण वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) के आसन्न मूल्यांकन में देरी हो रही है।
    • केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा कि ED के निदेशक के कार्यकाल में विस्तार प्रशासनिक दृष्टिकोण से आवश्यक था, जिसमें संगठन के प्रमुख के कार्यकाल की निरंतरता कई महत्त्वपूर्ण मामलों के लिये आवश्यक है। ये ऐसे मामले हैं जिनके पर्यवेक्षण के लिये मामले की पृष्ठभूमि और ऐतिहासिकता की जानकारी की आवश्यकता होती है।
    • एक नवनियुक्त निदेशक को नए कार्यालय और ED के कामकाज़ का जायजा लेने और अभ्यस्त होने में काफी समय लगेगा और दक्षता के इष्टतम स्तर पर काम करना मुश्किल हो सकता है।
  • न्यायालय द्वारा पूर्व में उचित समझे गए कार्यकाल से परे कार्यकाल का विस्तार करने की संवैधानिकता पर सवाल उठाया गया है, जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय में इस निर्णय को लेकर एक नई अपील की गई है। मामला फिलहाल विचाराधीन है।

प्रवर्तन निदेशालय:

  • परिचय:
    • प्रवर्तन निदेशालय (ED) एक बहु-अनुशासनात्मक संगठन है जो मनी लॉन्ड्रिंग (अवैध धन को वैध करना) के अपराधों और विदेशी मुद्रा कानूनों के उल्लंघन की जाँच करता है।
      • यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन कार्य करता है।
    • भारत सरकार की एक प्रमुख वित्तीय जाँच एजेंसी के रूप में ED भारत के संविधान और कानूनों के सख्त अनुपालन में कार्य करता है।
  • संरचना:
    • मुख्यालय: प्रवर्तन निदेशालय (ED) का मुख्यालय नई दिल्ली में है, जिसका नेतृत्व प्रवर्तन निदेशक करता है।
      • प्रवर्तन के विशेष निदेशकों की अध्यक्षता में मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में पाँच क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
    • भर्ती: अधिकारियों की भर्ती सीधे और अन्य जाँच एजेंसियों के अधिकारियों में से की जाती है।
      • इसमें IRS (भारतीय राजस्व सेवा), IPS (भारतीय पुलिस सेवा) और IAS (भारतीय प्रशासनिक सेवा) के अधिकारी शामिल हैं जैसे- आयकर अधिकारी, उत्पाद शुल्क अधिकारी, सीमा शुल्क अधिकारी और पुलिस।
    • कार्यकाल: दो वर्ष, लेकिन तीन वर्ष का विस्तार देकर निदेशकों के कार्यकाल को दो से पाँच वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
      • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment- DSPE Act), 1946 और केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अधिनियम, 2003 में संशोधन किया गया है ताकि सरकार को दो प्रमुखों को उनके शुरुआती दो वर्ष के शासनादेश के बाद एक अतिरिक्त वर्ष के लिये अपने पदों पर बनाए रखने का अधिकार प्रदान किया जा सके।
  • कार्य:
    • COFEPOSA: विदेशी मुद्रा का संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1974 के तहत इस निदेशालय को FEMA के उल्लंघन के संबंध में निवारक निरोध के मामलों को प्रायोजित करने का अधिकार है।
    • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा): यह विदेशी व्यापार एवं भुगतान की सुविधा से संबंधित कानूनों को समेकित और संशोधित करने तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार के व्यवस्थित विकास और रखरखाव को बढ़ावा देने के लिये लागू किया गया एक नागरिक कानून है।
      • ED को विदेशी मुद्रा कानूनों और नियमों के उल्लंघनों की जाँच करने, कानून का उल्लंघन करने वालों पर निर्णय लेने तथा उन पर जुर्माना लगाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है।
    • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA): FATF इंडिया की सिफारिशों के बाद PMLA को अधिनियमित किया गया था।
      • ED को अपराध की आय से प्राप्त संपत्ति का पता लगाने के लिये जाँच कर संपत्ति को अनंतिम रूप से कुर्क करने और विशेष अदालत द्वारा अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने तथा संपत्ति की जब्ती सुनिश्चित करने के लिये PMLA के प्रावधानों को क्रियान्वित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
    • भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA): हाल ही में विदेशों में आश्रय लेने वाले आर्थिक अपराधियों से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि के साथ भारत सरकार ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (FEOA) पेश किया और ED को इसके प्रवर्तन का ज़िम्मा सौंपा गया है।
      • यह कानून आर्थिक अपराधियों को भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहकर भारतीय कानून की प्रक्रिया से बचने से रोकने के लिये बनाया गया था।
      • इस कानून के तहत ED को उन भगोड़े आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों को कुर्क करना अनिवार्य है जो गिरफ्तारी का वारंट लेकर भारत से भाग गए हैं और केंद्र सरकार को उनकी संपत्तियों को जब्त करने का प्रावधान है।

ED से संबंधित मुद्दे:

  • शक्ति का दुरुपयोग:
    • ED के पास मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आर्थिक अपराधों की जाँच करने की शक्ति और विवेकाधिकार है तथा उन्हें राजनेताओं या सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिये सरकार से अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
    • हालाँकि इस शक्ति का दुरुपयोग किया गया है, क्योंकि मामूली अपराधों को भी PMLA के दायरे में लाया जाने लगा है, जबकि इसका मूल उद्देश्य नशीले पदार्थों की तस्करी से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना था।
  • पारदर्शिता की कमी:
    • ED जाँच के लिये मामलों का चयन कैसे करता है, इस संबंध में भी पारदर्शिता की कमी है और अक्सर इसे विपक्षी दलों को लक्षित करने के लिये जाना जाता है।
    • ED द्वारा दर्ज मामलों में दोषसिद्धि की दर बहुत कम है, लेकिन मीडिया ट्रायल के चलते अभियुक्त की प्रतिष्ठा दोष सिद्ध होने पहले ही खराब हो जाती है।
      • वर्ष 2005 से 2013-14 के बीच दोषसिद्धि की दर शून्य थी और वर्ष 2014-15 तथा वर्ष 2021-22 के बीच ED द्वारा दर्ज किये गए कुल 888 मामलों में से केवल 23 मामलों में ही दोषसिद्धि हो सकी।
  • राजनीतिक पक्षपात:
    • कुछ मामलों में ऐसे आरोप भी सामने आए हैं कि सत्ताधारी दल में सम्मिलित हो जाने वाले राजनीतिक व्यक्तियों के साथ ED  ने अनुकूल व्यवहार किया। कुछ मामलों में इन व्यक्तियों को कथित तौर पर या तो “क्लीन चिट” दे दी गई या ED ने मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आर्थिक अपराधों में अपनी जाँच प्रक्रिया को काफी धीमा कर दिया।
    • इन आरोपों ने ED की कार्यवाहियों में संभावित राजनीतिक पक्षपात और स्वतंत्रता की कमी जैसी चिंताओं को उजागर किया है।

आगे की राह  

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