आपको नींद न आए तो क्या करें?

आपको नींद न आए तो क्या करें?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

जहां कुछ लोगों को कोरोना की दूसरी और पहली लहर के दौरान ज्यादा नींद मिली, वहीं कुछ की नींद और कम हो गई। आंकड़े बताते हैं कि 40% वयस्क हफ्ते में कम से कम एक बार नींद के लिए संघर्ष करते हैं। फिर मेरे जैसे लोग हैं जो सो तो आसानी से जाते हैं लेकिन सुबह 3 बजे उठ जाते हैं। अगर सोने के लिए लेटते ही विचारों में डूब जाते हैं तो आप अकेले नहीं हैं। टेक्सास की बेलर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक इसका मुख्य कारण एंग्जायटी है। आप सोने की जितनी कोशिश करेंगे, उतनी मुश्किल होगी और आप उतने ही चिंतित होंगे।

ब्रिटेन में करीब 36% युवा और वयस्क समय पर सोने में संघर्ष करते हैं। वहां के युवाओं का तनावग्रस्त होने का शायद यही कारण है। यूके में बीबीसी का हिस्सा, ‘रेडियो 1 रिलेक्स’ ने कार्यक्रमों का 24 घंटे का ऐसा शेड्यूल शुरू किया है जो मिलेनियल और जेन ज़ेड श्रोताओं को आराम पाने में मदद कर रहा है। इसमें लो-फाई म्यूजिक, सेहत के सुझाव और स्लीप स्केप (नींद लाने वाले संगीत, ध्यान, बातें आदि) शामिल हैं। स्टेशन पर रोजाना एक घंटे एएसएमआर (ऑटोनोमस सेंसरी मेरिडियन रिस्पॉन्स जो यूट्यूब पर काफी मशहूर है) भी आता है, जिसमें सुकून देने वाली आ‌वाजें दोहराते हैं, जैसे फुसफुसाहट, जो मस्तिष्क में सिहरन पैदा करती है। जिन्हें नींद नहीं आती, वे दो घंटे ‘डीप स्लीप स्केप’ सुनकर नींद ला सकेंगे।

अगर आप इनमें से किसी भी श्रेणी में आते हैं तो आगे पढ़ें। सबसे पहले यह मिथक भूलें कि उम्र के साथ नींद की जरूरत कम होती है। हमारी नींद की जरूरत कम नहीं होती, बल्कि वयस्कता की शुरुआत में काफी हद तक जीवनभर के लिए तय हो जाती है। हालांकि कॅरिअर के आधार पर हमारी नींद का पैटर्न बदल सकता है। मुख्यतः आपको 85 की उम्र में भी उतनी ही नींद जरूरी है, जितनी 25 की उम्र में।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि हम बिस्तर पर जाने से पहले जानकारी का बोझ कम करना शुरू करें। न सिर्फ टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, बल्कि सोचने पर मजबूर करने वाली किताबें भी सोने की क्षमता प्रभावित कर सकती हैं। अगले दिन के लिए ‘टू-डू’ लिस्ट बनाने से मदद मिल सकती है। इसमें तनाव लगे तो आप ‘पूरे हुए कार्यों’ की सूची बना सकते हैं। इससे जल्दी सोने में मदद मिलेगी क्योंकि आपका दिन संतोषजनक लगेगा। धीरे-धीरे यह संतुष्टि ‘टू-डू’ लिस्ट बनाने की ओर ले जाएगी।

मीनोपॉज (रजोनिवृत्ति) से गुजरते हुए या इसके बाद महिलाओं में खराब नींद के लिए अक्सर हार्मोन को दोष दिया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक रजोनिवृत्ति में खराब नींद का संबंध सीधे हार्मोन्स से नहीं होता, बल्कि शारीरिक तापमान बदलने से होता है, जो हार्मोन से प्रभावित हो सकता है। चूंकि शरीर को नींद के लिए गर्मी छोड़ना जरूरी है, विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि सोने से पहले भारी खाना या शराब न लें और भारी एक्सरसाइज न करें।

मासट्रिश्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने पाया कि आम आबादी की तुलना में महिलाओं में लंबे समय तक अस्थिर या टुकड़ों में नींद से हृदय रोगों की आशंका दोगुनी हो सकती है। अन्य शोध के मुताबिक 30% लोग, जो रोजाना 6 घंटे से कम सोते हैं, उनमें 7 घंटे सोने वालों की तुलना में डेमेंशिया जल्दी होने की आशंका है। फंडा यह है कि गहरी नींद मायने रखती है। सुनिश्चित करें कि यह आपके शरीर को मिले ताकि बुढ़ापे में मस्तिष्क स्वस्थ बना रहे।

महामारी के बढ़ते प्रकोप और लगातार हो रही मौतों के बीच धीरज रखना कतई आसान नहीं है. हम में से बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनका कोई परिजन या परिचित बीमार है. हम सभी आशंकाओं से घिरे हैं. ऐसी स्थिति में सकारात्मक या सामान्य रह पाना एक बड़ी चुनौती है. लेकिन यह भी सच है कि हमारे पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है. इस समय हौसला बनाये रखने की बड़ी जरूरत है. हम अपने आसपास देखें, तो असंख्य चिकित्सक, स्वास्थ्यकर्मी, प्रयोगशालाओं में कार्यरत लोग, सफाईकर्मी, दवा देनेवाले लोग, ऑक्सीजन पहुंचानेवाले आदि दिन-रात जुटे हुए हैं.

ये लोग न केवल अथक अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, बल्कि संक्रमण का खतरा भी इन्हें ही सबसे अधिक है. देश के अनेक राज्यों में बीमार लोगों की बड़ी संख्या के कारण अस्पतालों पर दबाव बहुत बढ़ गया है. कहीं बिस्तर नहीं है, तो कहीं ऑक्सीजन नहीं है. कई ऐसे संक्रमित हैं, जिन्हें अस्पतालों की ठीक से जानकारी नहीं है. कई परिवार ऐसे हैं, जिनके घर में बच्चे और बुजुर्ग हैं. ऐसे में बहुत से लोग अपने स्तर पर जानकारियां देने, जरूरत मुहैया कराने तथा देखभाल के काम में जुटे हुए हैं.

लोग इसके लिए सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं. कई संस्थाएं मदद के लिए आगे आयी हैं. मदद का हाथ बढ़ाने में धर्म, जाति, वर्ग और क्षेत्र जैसे विभाजन मिट गये हैं. अस्पताल भी एक-दूसरे को सहयोग दे रहे हैं. सरकारी कोशिशों के साथ सामाजिक सहकार ने महामारी की चुनौती के बरक्स दूसरा मोर्चा खोल दिया है. ऐसे प्रयासों का आधार सकारात्मक सोच और हौसले का होना ही है. यही सामूहिकता गौरवपूर्ण भारतीयता है.

ऑक्सीजन ढो रहीं रेलगाड़ियों और अन्य वाहनों के चालकों और सहायकों के प्रति भी हमें आभार व्यक्त करना चाहिए. इस प्राणवायु की उपलब्धता जल्दी हो सके, इसके लिए कई संयंत्रों में कामगार दिन-रात जुटे हुए हैं. कुछ को छोड़कर हम अनगिनत योद्धाओं को कभी जान न सकेंगे, लेकिन उनके बिना यह लड़ाई जीती नहीं जा सकती. हम खबरों में लगातार पढ़ रहे हैं कि वयोवृद्ध भी गंभीर संक्रमण को मात देकर घर लौट रहे हैं.

बीते एक साल से अधिक समय में कुल संक्रमण के केवल 16.25 प्रतिशत मामले ही अभी सक्रिय हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि बहुत अधिक संख्या में लोग संक्रमण मुक्त हो रहे हैं. करीब 70 प्रतिशत मामले आठ राज्यों से हैं, जहां कोरोना महामारी की दूसरी लहर का कहर जारी है. अकेले महाराष्ट्र में ही लगभग 25 प्रतिशत मामले हैं, लेकिन वहां भी रोजाना संक्रमण में, मामूली ही सही, गिरावट होने लगी है.

संक्रमण के बारे में स्वयं सचेत रहने और दूसरों को जागरूक करने से लेकर मुश्किल स्थितियों में मदद करने तक हम जितना योगदान कर सकते हैं, करना चाहिए. एक मई से सभी वयस्कों को टीका देने का अभियान शुरू हो रहा है. उसमें भागीदारी भी हमारा दायित्व है. यह मुसीबत सबके सहकार से ही टलेगी.

ये भी पढ़े…

Leave a Reply

error: Content is protected !!