उपभोक्ता जब जागरूक होंगे, तब उनके अधिकारों का संरक्षण होगा,कैसे?

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विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

समय के साथ विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की संकल्पना ने उपभोक्तावादी संस्कृति को प्रोत्साहित किया। बाजार नियंत्रित समाजों में प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण सृजित हुआ। मुनाफाखोरी, कालाबाजारी, अनैतिक व्यापार की दूषित मानसिकता ने उपभोक्ता के प्रभाव को निस्तेज कर दिया। यह धारणा विकसित हुई कि समाज के भीतर व्याप्त प्रत्येक तत्व उपभोग करने योग्य है।

जरूरत बस इतनी है कि उसे सही तरीके से एक आवश्यक वस्तु के रूप में बाजार में स्थापित कर दिया जाए। फलस्वरूप उपभोक्ताओं के लिए असल और नकल के बीच की महीन रेखा को पहचानना कठिन हो गया। ऐसी विषम परिस्थितियों ने उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए उपभोक्ता आंदोलन को जन्म दिया, जो अमेरिका में रालफ नाडेर के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ।

सबसे पहले 15 मार्च, 1962 को अमेरिका में उपभोक्ता संरक्षण संबंधी विधेयक को मंजूरी दी गई। बाद में संयुक्त राष्ट्र ने 15, मार्च 1983 से विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाना प्रारंभ किया। भारत सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया, जिसमें 1993 एवं 2002 में आवश्यक संशोधन किए गए, लेकिन वे सूचना क्रांति के विस्फोट से बाजार में आए बदलावों के चलते उपभोक्ताओं की बदली हुई जरूरतों को पूरा नहीं कर पाए।

इसीलिए वर्ष 2019 में इसमें संयुक्त राष्ट्र के उपभोक्ता संरक्षण पर जारी दिशा-निर्देशों को समाविष्ट कर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लागू किया गया। इसके अनुसार उपभोक्ता वह व्यक्ति होता है, जो अपने उपयोग के लिए कोई वस्तु खरीदता है। इसमें उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए त्रिस्तरीय- राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर अर्ध न्यायिक तंत्र के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के गठन का प्रविधान है, जिसमें कोई भी उपभोक्ता क्षेत्रधिकार अनुसार शिकायत कर सकता है।

भारत में उपभोक्ताओं को सशक्त-समृद्ध बनाने के विशिष्ट प्रविधान होने के बावजूद सामाजिक-आर्थिक समस्याओं और उपभोक्ताओं के संगठित न होने के कारण उनके अधिकारों के दमन, ठगी, धोखाधड़ी की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं।

 

 

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