सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधित आईटी नियमों के कार्यान्वयन पर क्यों रोक लगाई?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैक्ट चेक यूनिट (FCU) स्थापित करने की केंद्र सरकार की अधिसूचना पर अस्थायी रोक लगा दी है।

  • यह बॉम्बे उच्च न्यायालय में संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (IT) नियम, 2023 को चुनौती देने वाली एक अपील के बाद आया है, जिसने सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फेक न्यूज़ की पहचान करने का अधिकार दिया है।

क्या न्यायपालिका के पास किसी कानून को असंवैधानिक घोषित करने से पूर्व उसे रोकने की शक्ति है?

  • संसद द्वारा बनाए गए कानून संवैधानिक माने जाते हैं। हालाँकि यह न्यायिक समीक्षा के अधीन है, लेकिन इसे असंवैधानिक सिद्ध करने का भार न्यायालय में याचिकाकर्त्ताओं पर है।
    • न्यायिक समीक्षा तथा संसद के विधायी अधिकार को संतुलित करते हुए, न्यायालय कानूनों को तब तक निलंबित करने से बचती हैं जब तक कि वे उनकी संवैधानिकता का निर्धारण नहीं कर लेती।
    • हालाँकि, विचाराधीन आईटी नियम विधायी कार्य नहीं हैं, बल्कि संसद द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत MeitY द्वारा तैयार किये गए हैं, जो संवैधानिकता की धारणा को प्रभावित करते हैं।
      • सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि यह “असंवैधानिकता की स्पष्ट खोज” की आवश्यकताओं को पूर्ण करता है जिसके परिणामस्वरूप अस्थायी रोक लगती है।
  • पूर्व के मामलों जैसे कि महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण कानून 2020 तथा वर्ष 2021 के कृषि कानून (जिन्हें बाद में निरस्त कर दिया गया था) को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया था।

फैक्ट चेकिंग यूनिट एवं संशोधित आईटी नियम 2023 क्या है? 

  • फैक्ट चेकिंग यूनिट: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 2023 में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में किये गए संशोधन के अनुसार प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) के तहत FCU को एक वैधानिक निकाय के रूप में नामित किया।
    • FCU को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियों से संबंधित गलत सूचना मानी जाने वाली सामग्री को चिह्नित करने का काम सौंपा गया है।
  • फेक न्यूज़ के संबंध में IT नियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान:
    • फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ-साथ एयरटेल, जियो तथा वोडाफोन आइडिया जैसे इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे भारत सरकार के बारे में गलत जानकारी का प्रसार न करें
      • इसके अतिरिक्त इन प्लेटफॉर्मों को केंद्र सरकार से संबंधित सामग्री की मेज़बानी से बचने के लिये उचित प्रयास करना चाहिये, जिसे तथ्य-जाँच इकाई द्वारा गलत या भ्रामक के रूप में चिह्नित किया गया है।
    • यदि तथ्य-जाँच इकाई किसी भी जानकारी को गलत के रूप में पहचानती है, तो ऑनलाइन मध्यस्थ इसे हटाने के लिये बाध्य होंगे।
      • ऐसा करने में विफल रहने पर उनकी सुरक्षित हार्बर सुरक्षा समाप्त हो सकती है, जो उन्हें तीसरे पक्ष की सामग्री के संबंध में कानूनी कार्रवाई से बचाती है।

तृतीय-पक्ष सूचना दायित्व के संबंध में मध्यस्थों को क्या छूट हैं?

  • परिचय: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 2(1)(w) एक मध्यस्थ को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करती है जो किसी इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्राप्त करता है, संग्रहीत करता है या प्रसारित करता है और किसी अन्य व्यक्ति की ओर से ऐसे रिकॉर्ड से संबंधित कोई भी सेवा प्रदान करता है।
    • मध्यस्थ में नेटवर्क सेवा प्रदाता, दूरसंचार सेवा प्रदाता, इंटरनेट सेवा प्रदाता, सर्च इंजन, वेब-होस्टिंग सेवा प्रदाता, ऑनलाइन-नीलामी साइटें, ऑनलाइन भुगतान साइटें, ऑनलाइन-मार्केटप्लेस और साइबर कैफे शामिल हैं।
  • छूट के लिये मानदंड: IT अधिनियम, 2000 की धारा 79(1) कुछ शर्तों के अधीन मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की जानकारी के दायित्व से छूट देती है:
    • मध्यस्थ की भूमिका एक संचार प्रणाली तक पहुँच प्रदान करने तक सीमित है जिसके माध्यम से तीसरे पक्ष की जानकारी प्रसारित, होस्ट या संग्रहीत की जाती है।
    • मध्यस्थ ट्रांसमिशन, प्राप्तकर्त्ता चयन या सामग्री संशोधन शुरू या नियंत्रित नहीं करता है।
  • मध्यस्थ दायित्व के लिये शर्तें: IT अधिनियम की धारा 79(3) के तहत, विशिष्ट स्थितियों में मध्यस्थों को तीसरे पक्ष की सामग्री के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है:
    • षडयंत्र, दुष्प्रेरण (Abetting), सहायता करने अथवा उत्प्रेरित करने जैसे विधिविरुद्ध क्रियाकलापों में शामिल होने की दशा में।
    • यदि वे साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ किये बिना सरकार से वास्तविक जानकारी अथवा अधिसूचना प्राप्त करने पर गैरकानूनी सामग्री को तुरंत हटाने अथवा उस तक उपयोगकर्त्ताओं की पहुँच अक्षम करने में विफल रहने की दशा में।

संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2023 से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • संभावित मनमाना प्रवर्तन: केंद्र सरकार से संबंधित गलत सूचना के संबंध में FCU का निर्धारण इसकी मनमाना प्रकृति के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करता है।
    • इससे व्यक्तिपरक निर्णय और किसी विशेष विचारधारा वाले व्यक्तियों को लक्षित किये जाने की आशंका है।
    • आलोचकों के अनुसार ये नियम, विशेष रूप से IT नियम 2021 के नियम 3(1)(b)(v) में किया गया संशोधन, संविधान के अनुच्छेद 14अनुच्छेद 19(1)(a) और (g)अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
      • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) वाद में सर्वोच्च नयायालय ने निर्णय किया कि वाक् स्वतंत्रता को सीमित करने वाला कानून न तो अस्पष्ट हो सकता है और न ही अत्यधिक व्यापक हो सकता है।
      • IT नियम 2021 के नियम 3(1)(b)(v) में संशोधन ने सरकारी व्यवसाय से संबंधित फर्जी खबरों को शामिल करने के लिये “फेक न्यूज़” की परिभाषा का विस्तार किया, जिससे सरकार द्वारा इसका मनमाना रूप से प्रवर्तन किया जा सकता है।
  • मध्यवर्ती संस्थाओं पर प्रभाव: इन नियमों में FCU द्वारा चिह्नित सामग्री की निगरानी करने और उसे हटाने की महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ ऑनलाइन मध्यवर्ती संस्थाओं को सौंपी गई हैं।
    • इससे इन मध्यवर्ती अभिकर्त्ताओं का बोझ बढ़ सकता है और वे संभावित रूप से कानूनी कार्यवाही से बचने के लिये अत्यधिक सेंसरशिप का प्रयोग कर सकते हैं।
  • दुरुपयोग की संभावना: इन नियमों का सरकार द्वारा विशेष रूप से सरकारी नीतियों अथवा अधिकारियों के खिलाफ असहमतिपूर्ण राय अथवा आलोचना को दबाने के लिये दुरुपयोग किये जाने की संभावना है।
    • इस तरह के दुरुपयोग के खिलाफ सुदृढ़ सुरक्षा उपायों की कमी लोकतांत्रिक चर्चा और पारदर्शिता पर नियमों के समग्र प्रभाव के संबंध में आशंकाएँ उजागर करता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेहिता सुनिश्चित करना: सरकार को FCU के संचालन में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिये जिसमें झूठी जानकारी की पहचान करने के लिये उपयोग किये जाने वाले मानदंडों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना शामिल है।
    • इसके अतिरिक्त, दुरुपयोग या मनमाने ढंग से प्रवर्तन को रोकने की दिशा में निगरानी और दायित्व के लिये तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये
  • स्पष्ट दिशा-निर्देश और उचित प्रक्रिया: FCU द्वारा चिह्नित सामग्री से निपटने के दौरान मध्यस्थों के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश और उचित प्रक्रिया तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है।
    • इसमें सामग्री निर्माताओं को निर्णयों के विरुद्ध अपील करने के लिये अवसर प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि निष्कासन वस्तुनिष्ठ मानदंडों तथा साक्ष्यों पर आधारित हैं।
  • वैधानिक सुरक्षा उपाय: सुनिश्चित करें कि कोई भी नियामक उपाय संवैधानिक सिद्धांतों और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का अनुपालन करना चाहिये, विशेष रूप से वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में।

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