पश्चिम एशिया भारत के लिए है खतरे की घंटी क्यों है?

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 तेल आपूर्ति का संकट पैदा हो सकता है

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ईरान पर इजरायल के हमले ने पहले से अस्थिर दुनिया को वैश्विक संघर्ष की ओर ढकेल दिया है। ईरान भी अपनी पूरी क्षमता के साथ इजरायल पर मिसाइलों से हमला कर रहा है। उधर, इजरायल इस बात पर अड़ा है कि जब तक वह ईरान की परमाणु बम बनाने की क्षमता और मिसाइलों के जखीरे को खत्म नहीं कर देता है तब तक हमले जारी रहेंगे।

अगर यह संघर्ष लंबा खिंचता है तो सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा। आगे चल कर इसमें अमेरिका, चीन और रूस जैसी बड़ी शक्तियां शामिल हो सकती हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध से दुनिया पहले ही दो खेमों में बंटी दिख रही है। ईरान ऐसी जगह पर हैं, जहां से वह बहुत सीमित संसाधनों के साथ समुद्र से होने वाले वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकता है।
इससे ग्लोबल सप्लाई चेन चरमरा सकती है और विश्व में तेल आपूर्ति का संकट पैदा हो सकता है। भारत के हितों के लिहाज से भी हालात चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं क्योंकि ईरान और इजरायल दोनों के साथ हमारे रणनीतिक हित जुड़े हैं और दोनों देशों से अच्छे रिश्ते हैं।

ईरान-इजरायल : सैन्य ताकत के मोर्चे पर कौन है आगे

ईरान और इजरायल के बीच तनाव अपने चरम पर है। इजरायल जहां ईरान के नातां परमाणु संयंत्र पर हमला कर दिया। इस घटना के बाद ईरान ने इजरायल के खिलाफ जंग का एलान कर दिया है। अब सवाल ये है कि खुली जंग में कौन भारी पड़ेगा? आइए जानते है कि दोनों देशों की सैन्य ताकत कितनी है और उनको किन देशों का समर्थन मिल सकता है?सीधा हमला बनाम प्रॉक्सी वार

ईरान सीधा हमला करने के बजाए प्रॉक्सी वार पर भरोसा करता है। उसके पास हाउती हिजबुल्लाह और हमास जैसे प्रावसी समूह है, जो इजरायल को कई मोर्चों पर घेर सकते हैं। हालांकि 7 अक्टूबर, 2024 के हमले के बाद इजरायल ने सैन्य अभियान चला कर हमास और हिजल्लाह को काफी कमजोर कर दिया है।हालांकि, हाउती अब भी इजरायल में कैलेस्टिक मिसाइलों से हमला करने की क्षमता रखते हैं। कहीं इजरायल सटीक और हाइटेक हमले करने में सक्षम है। हाल में ईरान के परमाणु ठिकानों पर सफलता के साथ घातक हमले करके इजरायल ने अपनी क्षमता साबित की है।

तकनीक के मोर्चे पर आगे है इजरायल

इजरायल के पास एक 35 लाकू विमान है। पांचवी पीढ़ी का यह विमान अपनी स्टेल्या क्षमताओं और हाईटेक तकनीक के लिए जाना जाता है। ईरान पर हमले में इजरायल ने इन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया है।ईरान की वायुसेना के लड़ाकू विमान काफी पुराने हैं।

संसाधनों की कमी की वजह से ईरान इनको अपग्रेड भी नहीं कर पाया है। इसलिए ईरान इजरायल पर हमलों के ड्रोन और मिसाइलों पर ज्यादा भरोसा करता है। ईरान मिसाइल और डोन बनाने की तकनीक के मामले में बेहतर स्थिति में है।

रक्षा पर कौन कितना करता है खर्च

इजरायल चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा हुआ है। यह अरब देशों से कई युद्ध भी लड़ चुका है। इसलिए वह अपनी रक्षा जरूरतों पर ज्यादा खर्च करता है।इजरायल के पास के उन्नत एयर सिस्टम है, जो मिसाइल और ड्रोन हमलों से बहुस्तरीय सुरक्षा कवर मुहैया कराते हैं। ईरान की ताकत उसकी मिसाइलें और शाहेद ड्रोन हैं। ईरान की मिसाइलों की रेंज 2,000 किलोमीटर तक है।

वैश्विक समर्थन किसके साथ

इजरायल को अमेरिका का पूरा समर्थन है। अमेरिका उसे हथियार और टेक्नोलाजी देता है। ब्रिटेन और फ्रांस भी इजरायल के समर्थक रहे हैं। इसके अलावा दूसरे खाड़ी देश भी अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं। ऐसे में संघर्ष का दायरा बड़ा होने पर यह देश अमेरिका के पाले में ही खड़े नजर आएंगे। इसके अलावा खाड़ी देश नहीं चाहते हैं कि ईरान परमाणु बम बनाए।

इसके अलावा ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की मार है, लेकिन वह रूस और चीन के साथ रिश्ते बनाकर संतुलन करने की कोशिश कर रहा है। ईरान ने रूस को शाब होन दिए थे, जिनका इस्तेमाल उसने युक्रेन युद्ध में किया था। अगर रूस और चीन ईरान को हथियारों के मोर्चे पर मदद करते हैं तो संघर्ष लंबा खिंच सकता है। हालांकि वैश्विक समर्थन की बात करें तो इजरायल का पलड़ा भारी है।

भारत के लिए चिंता की बात

पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ना भारत के लिए चिंता की बात है। इजरायल और ईरान दोनों से भारत के अच्छे संबंध हैं। इजरायल के साथ हमारा करीबी रक्षा सहयोग है। ईरान के साथ भी हमारे रणनीतिक हित जुड़े हैं। भारत ईरान के चाबहार बंदरगाह के जरिये अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक आसान पहुंच बनाने का प्रयास कर रहा है।

होर्मुज जलडमरूमध्य और तेल की आपूर्ति

होर्मुज जलडमरूमध्य वैश्विक व्यापार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यहां से दुनिया का करीब 20 प्रतिशत कच्चा तेल गुजरता है और हर रोज 2.1 करोड़ बैरल से ज्यादा कच्चा तेल सप्लाई होता है होर्मुज जलडमरूमध्य का सबसे संकरा हिस्सा 33 किमी चौड़ा है।
इसके उत्तरी हिस्से को ईरान कंट्रोल करता है। वहीं, दक्षिणी हिस्से को ओमान और यूएई कंट्रोल करते हैं। इस इलाके में ईरानी सेना की भारी मौजूदगी रहती है। ईरान चाहे तो बहुत कम सैन्य क्षमता के साथ इस रूट को ब्लाक कर सकता है। 

इससे पूरी दुनिया में पेट्रोल-डीजल के लिए हाकार मच सकता है भारत का दो तिहाई से अधिक तेल आयात और आधे से अधिक लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) का आयात इसी रूट से होकर आता है। अगर यह रूट बाधित होता है तो तेल आयात की लागत बढ़ जाएगी।

महंगाई बढ़ने का खतरा

ग्लोबल फाइनेशियल सर्विसेज फर्म जेपी मोर्गन ने चेताया है कि अगर ईरान-इजरायल का संघर्ष तेज होता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमते 120 डालर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है। इससे भारत में महंगाई के साथ चलू खाता घाटा बढ़ने का खतरा है। तेल कीमतें बढ़ने से लोगों और कंपनियों का बजट भी बिगड़ सकता है। इससे लोगों का जरूरी खर्च बढ़ जाता है और वह दूसरे खर्च में कटौती करने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को झटका लगता है।

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