अपनी बदहाली पर सिसकता जीरादेई

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राजेन्‍द्र बाबू की जयंती व जिला स्‍थापना दिवस पर विशेष

आलेख – निकेशचंद्र तिवारी, जदयू नेता

श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

कल 3 दिसंबर को भारत के प्रथम राष्ट्रपति, देशरत्न डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी की जयंती पर, अनायास ही मेरी अंगुलियां थिरकने लगीं…..
आशा है, आप सबको मेरा यह आलेख पसन्द आयेगा???

 

सिवान जिले का एक ऐसा गाँव, जहाँ के एक घर के बरामदे में पड़े चौकी पर बैठ कर देश की आजादी के लिए रणनीति तैयार की जाती थी, एक ऐसा गाँव, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित अनेक विभूतियों का आतिथेय का गौरव हासिल हुआ, एक ऐसा गाँव जिसने अपने मिट्टी में पले – बढ़े एक लाल के रूप में देश को प्रथम राष्ट्रपति दिया, ऐसा गाँव जहाँ के एक प्रतिभावान छात्र के कॉपी पर परीक्षक यह लिखने को विवश हो जाते थे कि, “परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है।”

वह गाँव है, सिवान जिला मुख्यालय से 7 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित जिरादेई… यह वहीं जिरादेई है, जिसे देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी के जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है।
गुजरात का पोरबन्दर और उतर प्रदेश का इलाहाबाद, यदि देश की आजादी के दो अग्रणी नेता महात्मा गांधी व जवाहरलाल नेहरू को दिया, तो जिरादेई ने भी देश को राजेन्द्र बाबू के रूप में देश को प्रथम राष्ट्रपति दिया…

परन्तु, विडम्बना यह है कि, राष्ट्रीय फलक पर जिस प्रकार पोरबन्दर और इलाहाबाद को सम्मानजनक स्थान मिला, वह स्थान जिरादेई को प्राप्त नहीं हो सका…
सवाल यह है कि, जिरादेई के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? इस सौतेलेपन व्यवहार का जिम्मेवार कौन? क्यों, नकारात्मक राजनीति का शिकार हुआ जिरादेई?

जिस कांग्रेस को, राजेन्द्र बाबू ने अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया,उसने ही नाइंसाफी किया, आखिर क्यों? जहाँ तक मेरी समझ है कि, यदि कांग्रेस के नेता व सरकार इस उपेक्षा की दोषी है तो स्थानीय जनप्रतिनिधि भी कम दोषी नहीं हैं। स्थानीय जनप्रतिनिधियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि, राजेन्द्र बाबू एक व्यक्ति नहीं, एक विचार हैं, राजेंद्र बाबू, सिवान के धरोहर हैं,राजेंद्र बाबू, सिवान के गौरव हैं, राजेन्द्र बाबू, सिवान के मान, सम्मान और स्वाभिमान के प्रतीक हैं…..

यधपि इस स्थल को पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया है तथापि, क्या इतना ही काफी है? भारतीय पुरातत्व विभाग, जीरादेई के मामले में सफेद हाथी साबित हो रहा है। यहाँ के विकास के नाम पर अर्थ का बंदरबांट, यह साबित करने के लिए काफी है कि, राजेंद्र बाबू की जन्मस्थली को सिर्फ पुस्तकों तक ही सीमित रखना है।

विगत दो माह पूर्व स्थल की चहारदीवारी के नाम पर जिस प्रकार लीपापोती की गई और घटिया सामग्री का उपयोग किया गया और स्थानीय लोगों के लाख प्रयास के बावजूद न तो योजना की जानकारी दी गई और न ही प्राकल्लन राशि की जानकारी दी गई और तो और एक प्रखर समाजसेवी, जदयू नेता लालबाबू प्रसाद सहित अन्य ग्रामीणों पर इसलिए मुकदमा दर्ज करा दिया गया, क्योंकि ये लोग योजना और आवंटित राशि को सार्वजनिक करने और कार्यों की गुणवत्ता को उच्चस्तरीय रखने का, विभाग पर दबाव बना रहे थे।

खैर,‌‌ अब देखना यह होगा कि, कब बहुरेंगे, जिरादेई के दिन? कब जिरादेई को मिलेगा उचित स्थान? कब जिरादेई, एक बार फिर, देश के मानचित्र पर सिवान और बिहार को गौरवान्वित करेगा?

मेधा दिवस, राजेन्द्र बाबू की जयंती पर विशेष???

देश रत्न के 138 वीं जयंती पर उन्हें सादर नमन व विनम्र श्रद्धांजलि?????

निकेश चन्द्र तिवारी
सदस्य,राज्य परिषद, जदयू, सिवान, बिहार

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