यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी के खिलाफ 71 लाख रुपए का गबन किये जाने का गैर जमानती वारंट जारी

यूपीए सरकार में केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की पत्नी के खिलाफ 71 लाख

रुपए का गबन किये जाने का गैर जमानती वारंट जारी

जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट के माध्‍यम से हुए हैं वित्तीय धोखाधड़ी

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दिव्‍यांग बच्‍चों को शिविर लगाकर उपकरण बांटने के लिए मिले थे पैसे

बिना शिविर लगाए केन्‍द्र सरकार से प्राप्‍त कर लिए गये थे अनुदान

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की पत्नी लुईस खुर्शीद के खिलाफ फत्तेहगढ़ की सीजेएम कोर्ट ने गैर-जमानती वारंट जारी किया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री की पत्नी के खिलाफ यह वारंट जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट केस में जारी हुआ है. लुईस के ट्रस्ट पर वित्तीय धोखाधड़ी करने का आरोप लगा है. ट्रस्ट पर आरोप है कि केंद्र से मिले अनुदान में हेरफेर की गई. इस ट्रस्ट का संचालन लुई खुर्शीद करती हैं. वित्तीय धोखाधड़ी का यह मामला साल 2010 का है। ट्रस्ट पर आरोप है कि उसने केंद्र सरकार से 71 लाख रुपए प्राप्त किए लेकिन इसका सही लेखा-जोखा उसके पास नहीं है.

दिव्यांगों की सहायता के लिए मिला था अनुदान

मार्च 2010 में डॉक्टर जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट को उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में दिव्यांग लोगों को व्हीलचेयर, ट्राई साइकिल और सुनने के यंत्र वितरित करने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार से 71 लाख 50 हजार रुपए का अनुदान मिला था. सलमान खुर्शीद 2012 में जब यूपीए सरकार में मंत्री थी उस समय इस ट्रस्ट पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा. हालांकि, खुर्शीद ने इन सभी आरोपों को खारिज किया.आरोप है कि उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के फर्जी दस्तखत करके और मोहर लगाकर केंद्र सरकार से वह अनुदान हासिल किया गया था.

आर्थिक अपराध शाखा ने की है जांच

आर्थिक अपराध शाखा ने जून 2017 में इस मामले की जांच शुरू की थी और निरीक्षक राम शंकर यादव ने कायमगंज थाने में लुईस खुर्शीद और फारूकी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। लुईस संबंधित परियोजना की निदेशक थीं। इस मामले में 30 दिसंबर 2019 को आरोप पत्र दाखिल किया गया था। ट्रस्ट ने दावा किया था कि उसने एटा, इटावा, फर्रुखाबाद, कासगंज, मैनपुरी, अलीगढ़, शाहजहांपुर, मेरठ तथा बरेली समेत प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा जिलों में शिविर लगाकर दिव्यांग बच्चों को वे उपकरण बांटे थे। बाद में जांच में पता लगा कि वे शिविर कभी लगाए ही नहीं गए थे।

 

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