चंबल के बीहड़ों से निकलकर ‘बैंडिट क्वीन’ ने मीरजापुर को बनाई कर्मभूमि.

चंबल के बीहड़ों से निकलकर ‘बैंडिट क्वीन’ ने मीरजापुर को बनाई कर्मभूमि.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

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फूलन देवी की पुण्‍यतिथि पर विशेष

मीरजापुर जिले की सांसद रहीं दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने चुनाव जीत कर जनता के बीच अपनी अलग छवि बनाई थी। यमुना-चंबल के दुर्गम बीहड़ों में पली- बढ़ी फूलन देवी ने शायद कभी सोचा भी नहीं होगा कि बंदूक छोड़कर उनका सियासी सफर संसद तक तय हो सकता है। दस्यु सुंदरी फूलन देवी जब मीरजापुर से चुनाव लडऩे पहुंची तो उनकी पहचान बीहड़ की एक खूंखार डकैत से ज्यादा कुछ नहीं थी।

वह 1996 में मीरजापुर- भदोही से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी बनीं तो यहां की जनता ने उन्हें जीत का तोहफा देकर संसद का रास्‍ता भी दिखाया। वर्ष 1999 के चुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने उन्हें दोबारा प्रत्याशी घोषित किया। इस दौरान उन्होंने लगभग एक लाख मतों से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह मस्त को दोबारा शिकस्त दी। उनके संसदीय कार्यकाल के दौरान उनकी सहजता और सर्वसुलभ होने की चर्चा आज भी लोगों की जुबां पर है।

फूलन देवी मीरजापुर जिले से सपा की ओर से सांसद बनीं लेकिन वर्ष 1998 में हार गईं मगर शानदार वापसी करते हुए 1999 में एक बार फिर जीतकर संसद पहुंच गईं। मगर 25 जुलाई 2001 ही वह दुर्भाग्‍य पूर्ण दिन था जब शेर सिंह राणा ने गोली मारकर फूलन देवी की हत्या कर दी थी। गिरफ्तारी के समय राणा ने इसे बेहमई कांड का बदला बताया था।

बुंदेलखंड का हिस्‍सा जालौन का गांव घूरा का पुरवा में 10 अगस्त 1963 को फूलन का जन्‍म गरीब परिवार में हुआ था। बचपन में ही दस साल की उम्र में शादी हो जाने पर अधेड़ पति की दरिंदगी से आजिज आकर ससुराल से वह भाग निकलींं। दोबारा गांव आकर जुल्म करने वालों के खिलाफ आवाज उठानी शुरू दिया और वह जुल्‍म के खिलाफ आवाज उठाते उठाते चर्चा में आ गईं। इससे वह डकैतों के गिरोह तक पहुंच गईं और बाबू गुर्जर और विक्रम मल्लाह के गिरोह में आ गईं।

फूलन को लेकर बढ़ी तकरार के बीच गैगवार के बाद विक्रम मल्लाह गिरोह का सरदार बन गया। इस बीच फूलन देवी का अपहरण करके बेहमई गांव में कई दिन तक उनके साथ दुष्कर्म कर उनपर खूब अत्‍याचार किया गया। इस अपमान का बदला लेने के लिए फूलन देवी ने डकैतों के साथ मिलकर बीहड़ में बदले की जो इबारत लिखी उसे बेहमई कांड के नाम से आज भी जाता जाता है। 14 फरवरी 1981 को फूलनदेवी ने बेहमई गांव जाकर गांव के कुएं पर पंचायत बुलाकर बीस लोगों को कतार में खड़ा कर गोलियों से भून दिया। इस नरसंहार को दुनिया ने बेहमई कांड का नाम दिया और फूलन देवी का यह बदला देश दुनिया में बैंडिट क्वीन के बदले के रूप में जाना गया।

पकड़ी आत्‍मसमर्पण की राह : समय के साथ गिरोहों पर दबाव और सरकार की पहल पर फूलन देवी के गिरोह ने मध्य प्रदेश सरकर में मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने सरेंडर कर दिया। फूलन देवी पर 22 लोगों की हत्या, 30 बार डकैती और 18 लोगों अपहरण का आरोप लगा और उन्‍होंने जेल में काफी समय बिताया। वर्ष 1993 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार ने आखिरकार फूलन के व्‍यवहार को देखते हुए उनपर लगे आरोपों को वापस लिया और 1994 में उनको जेल से रिहाई मिली। इसके बाद फूलन ने उम्मेद सिंह से शादी कर घर बसाया और संसद का सफर किया। हालांकि, फूलन की खुशियों को शेर सिंह राणा की नजर लगी और बैंडिट क्‍वीन फूलन चिर निद्रा में 25 जुलाई को हमेशा के लिए सो गईं।

बेहमई का बदला अस्‍ता से : बेहमई कांड के बाद जातिगत बदले के तौर पर औरैया (तस्‍कालीन इटावा का हिस्‍सा) जिले में अस्‍ता गांव के पास मल्‍लाहों के गांव पर हमला बोलकर विरोधी गुट ने बेहमई कांड का बदला लेते हुए दर्जन भर से अधिक मल्‍लाह बिरादरी के लोगों को सन 1984 में डकैत लालाराम, श्रीराम और कुसमा नाइन ने 12 लोगों को गोलियों से छलनी कर फूलन को चुनौती दी थी। जबकि गांव को आग लगाने पर दो अन्‍य लोगों ने दम तोड़ दिया था। आज भी अस्‍ता गांव में मृतकों की याद में उस स्‍थान पर चबूतरा बनाया गया है। इस नरसंहार में भगवानदीन, धनीराम, महादेव, लक्ष्मीनारायण, लालाराम, छोटेलाल, शंकर, रामशंकर, बांकेलाल, रामेशवरदयाल, भीकालाल, दर्शनलाल, शंभूदयाल की मौत हुई थी वहीं गांव को आग लगाने के बाद मां बेटे शिवकुमारी व पांच वर्षीय बेटा मुनेश की भी मौत हो गई थी।

फूलन एक बार फ‍िर चर्चा में : फूलन देवी के समर्थक और बिहार सरकार में मंत्री मुकेश साहनी यूपी के हर मंडल में उनके शहीदी दिवस के तौर पर फूलन की मूर्ति लगाकर यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक रहे हैं। वाराणसी में फूलन देवी की प्रतिमा को बीते दिनों प्रशासन ने जब्‍त भी कर लिया था। वहीं वीआइपी पार्टी की ओर से पुण्‍यतिथि के मौके पर उत्‍तर प्रदेश भर में आयोजनों के जरिए फूलन देवी को याद और श्रद्धांजलि दी जा रही है।

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