शंख बजाने वालों को छू नहीं पाया कोरोना,कैसे?

शंख बजाने वालों को छू नहीं पाया कोरोना,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सनातन परंपरा में शंख बजाना पूजा का अहम हिस्सा है। सदियों से भगवान को प्रसन्न करने और सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करने का माध्यम रहा शंख कोरोना काल में लोगों की फेफड़ों का सुरक्षा कवच भी बना। बैद्यनाथ धाम देवघर के पंडा (पुजारी) समाज के लोग भी शंख बजाने के कारण सुरक्षित रहे। यह प्रमाणित तथ्य है कि शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं और सांसें नियंत्रित होती हैं। कोरोना काल में जब वायरस लोगों की सांसें छीनने पर आमादा था, तब भी नियमित रूप से शंख बजाने वाले सुरक्षित रहे।

यहां करीब दो हजार पंडा परिवारों में रोज पूजन के दौरान शंख ध्वनि गूूंजती है। प्रतिदिन शंख बजाने वाले भगवान के इन भक्तों से कोरोना परास्त हो गया। पंडा धर्मरक्षिणी सभा के महामंत्री कार्तिक नाथ ठाकुर बताते हैं कि पंडा समाज के हर परिवार में शंख बजाया जाता है। कोरोना ने बहुतों को अपनी चपेट में लिया, लेकिन शंख बजाने वाले सुरक्षित रहे। कुछ को सर्दी बुखार हुआ भी तो दो चार दिन में स्वस्थ हो गए। संक्रमण उनके फेफड़ों को नुकसान नहीं पहुंचा सका।वह बताते हैं कि संक्रमण काल में भी बाबा मंदिर में संध्या आरती हो रही थी।

यहां के पुरोहित नियमित रूप से मंदिर में शंखनाद के साथ सुबह-शाम की पूजा, श्रृंगार व आरती करते रहे। पंडा समाज के राकेश झा, बंटी सरेवार, बब्बू सरेवार, गौरव कुमार, कन्हैया मठपति, विद्याधर नरोने कहते हैं कि हम नित्य शंख बजाते हैं। इसलिए वायरस हमें छू भी नहीं सका। इसी तरह धनबाद के भुईफोड़ मंदिर के पुजारी प्रयाग आत्मानंद स्वामी, खड़ेश्वरी मंदिर के पुजारी कहते हैं कि शंख बजाने के कारण वह कोरोना से संक्रमित नहीं हुए।

हृदय रोग के बावजूद प्रभावी नहीं हो सका वायरस

सरदार पंडा के वंशज उदयानंद झा ने बताया कि वह 15 साल से बाबा मंदिर में पुरोहित हैं। गर्भगृह में रोज डेढ़ से दो घंटे ड्यूटी लगती है। अभी उनकी उम्र 42 वर्ष है। 25 साल पहले उन्हें हृदय संबंधी समस्या हुई थी। आज भी वह रूटीन चेकअप कराते हैं। दवा भी लेते हैं। इस बीच नियमित पूजा और शंखवादन करते हैं। कोरोना अगर करीब आया भी होगा तो पता नहीं चला। पूजा के क्रम में वह रोज 20 से 30 सेकंड शंख बजाते हैं। साथ ही योगाभ्यास भी करते हैं। वह बताते हैं कि शंख बजाना भी एक तरह का प्राणायाम है। इसमें भी सांसों को साधा जाता है। सनातन धर्म की परंपराओं को विज्ञान की कसौटी पर परखिए तो भी फायदे ही दिखेंगे। ये हमारे पूर्वजों के ज्ञान की गाथा बताती हैं।

‘शंख बजाने से फेफड़ों की कसरत होती है। तेजी से सांस खींचने पर फेफड़ों में जब हवा भरती है तो वे फैलते हैं। फिर उसे बजाते वक्त हवा निकलते के क्रम में फेफड़े सिकुड़ते हैं। शंख की ध्वनि के साथ तारतम्य बिठाकर इनमें फैलने-सिकुड़ने और कंपन की प्रक्रिया होती है, जो फेफड़ों को सक्रिय व संक्रमण मुक्त रखती है। शंख बजाने से शरीर के अन्य अंग, नसें व कोशिकाएं भी स्वस्थ रहती हैं। इस क्रम में सभी अंगों को भरपूर ऑक्सीजन मिलती है। रोज शंख बजाने वालों की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इसलिए उनको वायरल अटैक कम होता है। यदि होता भी है तो वे उससे लड़ लेते हैं।’

 

यह भी पढ़ें…………..

Leave a Reply

error: Content is protected !!