वाराणसी में पिशाच मोचन तीर्थ पर श्राद्ध के लिए उमड़े आस्थावान, यहा पर श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मिलता है मोक्ष

वाराणसी में पिशाच मोचन तीर्थ पर श्राद्ध के लिए उमड़े आस्थावान, यहा पर श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मिलता है मोक्ष

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श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी

वाराणसी / धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी मोक्ष की नगरी के नाम से जानी जाती है। कहा जाता है यहा प्राण त्यागने वाले हर इन्सान को भगवान् शंकर खुद मोक्ष प्रदान करते है। इसके अलावा काशी में अकाल मृत्यु में जान गंवाने वाले को भी मोक्ष का द्वार हर वर्ष पितृपक्ष में खुलता है। पितृपक्ष के पावन पर्व के शुरू होने से एक दिन पहले सोमवार को दूर-दराज़ से लोग काशी में प्रसिद्द त्रिपिंडी श्राद्ध कर्म के लिए पिशाचमोचन कुंड पर एकत्रित हो रहे हैं। 15 दिन चलने वाले इस पर्व पर हज़ारों अतृप्त आत्माओं के मोक्ष के द्वारा खुलेंगे। इसके अलावा गंगा तट पर पितरों के पिंड दान के लिए श्रद्धालु उमड़े थे।

 

मोक्ष की नगरी काशी में देश के विभिन्न राज्यो से सनातन धर्म के लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिशाचमोचन कुंड पर पिंडदान और श्राद्ध करते है । आज से शुरू हुआ श्राद्ध कर्म 6 अक्टूबर को समाप्त हो जाएगा। इस दौरान सनातन धर्म मे कोई शुभ कार्य नही होता है।

इस सम्बन्ध में पिशाच मोचन तीर्थ के पुरोहित मुन्ना महाराज अर्पण और तर्पण के साथ पितरो को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का पावन कर्म है श्राद्ध कर्म। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक पंद्रह दिन का समय पितरो का होता है। मोक्ष दायिनी काशी में श्राद्ध कर्म की महत्ता का वर्णन पुराणों में उल्लिखित है| पितरो को मोक्ष गति प्राप्त हो ऐसी मनोकामना मन में लिए देश ही नहीं दुनिया के कोने कोने से पितरो को मोक्ष दिलाने के लिए पिंड दान करने लोग वाराणसी आते है पितृपक्ष के प्रारंभ होते ही वाराणसी का पिशाच मोचन और गंगा के घाट श्राद्ध कर्म करने वालो से पट जाते है ।

पुरोहित मुन्ना महाराज ने बताया कि 21 तारीख से पितृपक्ष शुरू होगा पर श्राद्ध कर्म एकादशी से शुरू हो गया है। कानपुर, प्रयागराज, फतेहपुर, बांदा और बरेली के लोग एकादशी से आने लगते हैं। पूर्णमासी यानी आज गाज़ीपुर, बलिया, चौसा और जमानिया के लोग आ रहे हैं। कल से पूरे देश भर से लोग आना शुरू कर देंगे। यहां के बाद लोग गया में फाल्गु नदी के तट पर श्राद्ध कर्म का समापन करेंगे।

पितृपक्ष में सबसे ज्यादा महत्व अपने पूर्वजों को जल देने का होता है। इसके अलावा हिन्दू धर्म के शास्त्रों में श्राद्धकर्म का वर्णन मिलता है। किस भी आकस्मित दुर्घटना और विषम परिस्थितियों में हुई मृत्यु वालो के लिए पितृपक्ष के द्वादसी के दिन करना चाहिए | अगर किसी व्यक्ति के परिजनों के मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती है , तो उनको अमावस्या के दिन इस विधि को करना चाहिए।

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