वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन हरित भविष्य का वादा है,कैसे?

वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन हरित भविष्य का वादा है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जब विश्व जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर देख रहा है, तब जैव ईंधन (Biofuels) एक संभावित समाधान के रूप में उभरा है। हाल ही में नई दिल्ली में संपन्न G20 शिखर सम्मेलन में वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (Global Biofuels Alliance- GBA) का गठन किया गया जो भारत के नेतृत्व में की गई एक पहल है। इसका उद्देश्य जैव ईंधन के अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और उद्योगों का एक गठबंधन विकसित करना है।

जैव ईंधन:

  • कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जीवित या कभी जीवित रही सामग्री) से एक कम समयावधि (दिन, सप्ताह या माह) में उत्पन्न किया जाता है, जैव ईंधन कहा जाता है।
  • इनका उपयोग वाहनों के ईंधन, घरों को गर्म करने और बिजली पैदा करने के लिये किया जा सकता है। जैव ईंधन को नवीकरणीय (renewable) माना जाता है क्योंकि वे उन पौधों से बने होते हैं जिन्हें बार-बार उगाया जा सकता है।
  • जैव ईंधन ठोस, तरल या गैसीय हो सकते हैं।
    • ठोस जैव ईंधन में लकड़ी, शुष्क पादप सामग्री और खाद शामिल हैं।
    • तरल जैव ईंधन में बायोएथेनॉल और बायोडीजल शामिल हैं।
    • गैसीय जैव ईंधन में बायोगैस शामिल है।
  • जैव ईंधन गर्मी और बिजली पैदा करने जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकते हैं या उनके साथ इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
  • जैव ईंधन की ओर संक्रमण तेल की बढ़ती कीमतों, जीवाश्म ईंधन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और किसानों के लाभ के लिये उनके कृषि फसलों से ईंधन प्राप्त करने में रुचि जैसे कारणों से प्रेरित है।

जैव ईंधन के लाभ:

  • नवीकरणीय: बायोमास उगाकर जैव ईंधन का उत्पादन किया जा सकता है और इस प्रकार ये नवीकरणीय हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: जैव ईंधन विदेशी तेल पर निर्भरता कम करने में मदद करेंगे, जिससे देश के आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी।
  • स्वच्छ ऊर्जा: वे जीवाश्म ईंधन की तुलना में ग्रीनहाउस गैसों का कम उत्सर्जन करते हैं, जिससे वे एक स्वच्छ विकल्प प्रदान करते हैं।
  • किसानों की आय में वृद्धि: जैव ईंधन किसानों की अतिरिक्त आय में योगदान देते हैं और किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य में योगदान करने की क्षमता रखते हैं।
  • जैव ईंधन की प्रचुर उपलब्धता: जैव ईंधन का उत्पादन फसलों, अपशिष्ट और शैवाल सहित विभिन्न स्रोतों से किया जा सकता है।

जैव ईंधन की व्यवहार्यता से संबद्ध प्रमुख चिंताएँ: 

  • एक बड़ी चिंता उनके उत्पादन के लिये आवश्यक भूमि और जल संसाधनों की मात्रा को लेकर है। भारत जैसे देशों में, जहाँ कृषि अधिशेष की कमी पाई जाती है, जैव ईंधन उत्पादन के लिये आवश्यक फसलें उगाने हेतु कृषि योग्य भूमि का उपयोग करना व्यवहार्य नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त, भूमि और संसाधनों के लिये जैव ईंधन उत्पादन और खाद्य उत्पादन के बीच प्रतिस्पर्द्धा एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है। यदि खाद्य उत्पादन की कीमत पर जैव ईंधन का उत्पादन किया जाता है तो इससे खाद्य मूल्यों में वृद्धि और खाद्य असुरक्षा की स्थिति बन सकती है।
  • कुछ जैव ईंधन के उत्पादन से वास्तव में जीवाश्म ईंधन की तुलना में अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हो सकता है, विशेषकर यदि वे उस भूमि पर उगाई गई फसलों से उत्पन्न होते हैं जहाँ पहले वन थे।

वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन:

  • वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA) को हाल ही में भारत की G20 अध्यक्षता के तहत जैव ईंधन के वैश्विक उत्थान में तेज़ी लाने के लिये वैश्विक नेताओं द्वारा गठित किया गया है। यह गठबंधन अमेरिका, ब्राजील और भारत जैसे प्रमुख जैव ईंधन उत्पादक एवं उपभोक्ता देशों को एक साथ लाता है।
  • अभी तक 19 देश और 12 अंतर्राष्ट्रीय संगठन GBA में शामिल होने या इसका समर्थन करने के लिये सहमति जता चुके हैं।
  • GBA हरित संवहनीय भविष्य के लिये वैश्विक जैव ईंधन व्यापार को सुदृढ़ करने का लक्ष्य रखता है।

भारत के लिये वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन महत्त्व:

  • सर्वोत्तम अभ्यासों से प्रेरणा ग्रहण करना:
    • GBA प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु निधि जुटाने की सुविधा प्रदान करेगा।
    • यह संपीडित बायोगैस क्षेत्र और तीसरी पीढ़ी के इथेनॉल संयंत्र क्षमताओं में प्रगति को गति प्रदान करेगा।
  • ई-20 लक्ष्य:
    • E10 लक्ष्य हासिल कर लेने के बाद भारत अब वर्ष 2025-26 तक E20 लक्ष्य हासिल करने की इच्छा रखता है।
    • GBA के माध्यम से E-85 हासिल करने में ब्राजील की सफलता से सीखना।
  • भारत में फ्लेक्स फ्यूल वाहनों को अपनाना:
    • इससे फ्लेक्स फ्यूल वाहनों (Flex Fuel Vehicles) के अंगीकरण में तेज़ी आ सकती है।
    • यह भारत के उत्सर्जन को कम करने और कच्चे तेल आयात बिल में कमी लाने में योगदान करेगा।
  • जलवायु कार्रवाई:
    • GBA की स्थापना जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष को सशक्त करेगी क्योंकि इससे देशों को जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने में परस्पर सहयोग करने में मदद मिलेगी।
  • जैव ईंधन निर्यात को बढ़ावा:
    • यह भारत के लिये जैव ईंधन उत्पादन में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का अवसर प्रस्तुत करता है जिससे भारत के लिये अधिक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
    • भारत में ब्राजील और अमेरिका के साथ एक प्रमुख निर्यातक देश बनने की क्षमता है।
  • रोज़गार के अवसरों में वृद्धि:
    • जैव ईंधन क्षेत्र में निवेश से रोज़गार के अवसर उत्पन्न होंगे।
    • यह किसानों की वित्तीय स्थिति में सुधार लाने में योगदान करेगा और किसानों की आय को दोगुना करने में सहायता करेगा।

जैव ईंधन के लिये हाल के समय की  प्रमुख पहलें: 

  • भारतीय पहलें:
    • प्रधानमंत्री जी-वन योजना, 2019: इस योजना का उद्देश्य वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना के लिये एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना और 2G इथेनॉल क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना है।
    • इथेनॉल ब्लेंडिंग: जैव ईंधन नीति 2018 का उद्देश्य वर्ष वर्ष 2030 तक 20% इथेनॉल-ब्लेंडिंग और 5% बायोडीजल-ब्लेंडिंग तक पहुँचना है।
      • हाल ही में केंद्र सरकार ने वर्ष 2030 के बजाय वर्ष 2025-26 तक ही 20% पेट्रोल युक्त इथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने की योजना बनाई है।
    • गोबर (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources- GOBAR) धन योजना 2018:  यह खेतों में मवेशियों के गोबर और ठोस अपशिष्ट को उपयोगी खाद, बायोगैस और बायो-सीएनजी में परिवर्तित करने एवं प्रबंधित करने पर केंद्रित है, ताकि गाँवों को साफ रखा जा सके और ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि हो सके। इसे स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत लॉन्च किया गया था।
    • प्रयुक्त कुकिंग ऑइल का पुनरुपयोग (Repurpose Used Cooking Oil- RUCO): इसे भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा लॉन्च किया गया था और इसका लक्ष्य एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है जो प्रयुक्त कुकिंग ऑइल के संग्रहण और बायोडीजल में इनके रूपांतरण को सक्षम करेगा।
    • राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018: यह नीति जैव ईंधन को बुनियादी जैव ईंधन (Basic Biofuels) और उन्नत जैव ईंधन (Advanced Biofuels) के रूप में वर्गीकृत करती है। बुनियादी जैव ईंधन में पहली पीढ़ी (1G) के बायोएथेनॉल एवं बायोडीजल शामिल हैं, जबकि उन्नत जैव ईंधन में दूसरी पीढ़ी (2G) के इथेनॉल, ड्रॉप-इन फ्यूल के लिये नगरनिकाय ठोस अपशिष्ट (MSW) और तीसरी पीढ़ी (3G) के जैव ईंधन, जैव-सीएनजी आदि शामिल हैं। प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत उपयुक्त वित्तीय और राजकोषीय प्रोत्साहन के विस्तार को सक्षम करने के लिये यह वर्गीकरण किया गया है।

वैश्विक पहलें:

  • सतत् जैव सामग्री पर गोलमेज सम्मेलन (Roundtable on Sustainable Biomaterials-RSB):
    • यह एक अंतर्राष्ट्रीय पहल है जो जैव ईंधन उत्पादन और वितरण की संवहनीयता में रुचि रखने वाले किसानों, कंपनियों, सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और वैज्ञानिकों को एक साथ लाती है।
    • अप्रैल 2011 में इसने व्यापक संवहनीयता मानदंड – ‘RSB प्रमाणन प्रणाली’ (RSB Certification System) का एक समूह लॉन्च किया। इन मानदंडों को पूरा करने वाले जैव ईंधन उत्पादक खरीदारों और नियामकों को यह दिखाने में सक्षम होंगे कि उनका उत्पाद पर्यावरण को क्षति पहुँचाए बिना या मानवाधिकारों का उल्लंघन किये बिना तैयार किया गया है।
  • सतत् जैव ईंधन पर आम सहमति (Sustainable Biofuels Consensus):
    • यह एक अंतर्राष्ट्रीय पहल है जो सरकार, निजी क्षेत्र और अन्य हितधारकों से जैव ईंधन के सतत् व्यापार, उत्पादन और उपयोग को सुनिश्चित करने हेतु निर्णायक कार्रवाई करने का आह्वान करती है।
  • बोनसुक्रो (Bonsucro):
    • यह संवहनीय गन्ने को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2008 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी, बहु-हितधारक संगठन है।

जैव ईंधन में जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष में एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत बनने की क्षमता है लेकिन उनकी व्यवहार्यता, चिंता का विषय बनी हुई है। वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन हरित भविष्य का वादा तो करता है, लेकिन यह देखना अभी शेष है कि यह व्यवहार में कितना प्रभावी सिद्ध होगा। भारत जैसे देशों में कृषि अधिशेष की कमी के कारण जैव ईंधन एक व्यवहार्य प्रमुख ऊर्जा स्रोत नहीं भी हो सकता है, लेकिन वे फिर भी संवहनीय उत्पादन और उपभोग अभ्यासों के माध्यम से एक हरित भविष्य प्राप्त करने की दिशा में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकते हैं।

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