गुरु जी आप की प्रेरणा से सारा कार्य हो रहा है!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

22 दिसंबर की रात! बनारस से गुरूजी की प्रतिमा आ चुकी थी। लगभग 1 टन की प्रतिमा। जमीन से लगभग 10 फीट की ऊँचाई पर स्थापित होनी थी। जेसीबी वाले ने रिस्क लेने से मना कर दिया था। बड़ी मशीन मंगाने के लिये गुफ़्तगू शुरू हुई। इसी बीच कुछ नौजवान आगे आये। एक ने कहा कि हम सबके रहते गुरूजी की मूर्ति मशीन नहीं छूएगी। दर्जनों हाथों पर सवार होकर प्रतिमा स्थापित हो चुकी थी। सहजता ऐसी जैसे भगवान श्रीराम शिव-धनुष उठा रहे हों!

लगभग दो हफ्ते पहले एक युगल की वैवाहिक वर्षगाँठ थी। इस बार गांव में एक छोटा सा आयोजन करने का प्लान था। दोनों ने तीन दिनों के आयोजन में अपनी भूमिका निभाने के लिए आयोजन स्थगित कर दिया।

संगीत प्रतियोगिता ख़त्म होने के बाद सत्र समाप्ति की घोषणा होनी थी। इसी बीच दो बालिकायें आयीं। वे गुरूजी की स्मृति में श्रद्धांजलि गीत गाना चाहती थीं। पता चला संध्या 6 बजे से ही अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही हैं। उनका नामांकन नहीं हो सका था। मुझे पता चला। उन्हें मंच पर बुलाया। रोने लगीं दोनों। चुप कराने पर कहा कि आज चूक जाते तो जीवन भर अफसोस रहता।

इन तीनों से गुरूजी का एक ही रिश्ता था -गुरु और शिष्य का।

3 दिनों के पुण्यस्मरण कार्यक्रम का प्रत्येक सत्र अदभुत रहा है। पहले दिन डेढ़ हजार से अधिक छात्राएं। 25 के करीब प्रतिस्पर्धायें। मैदान में चारों तरफ धूल उड़ा रही थीं बालिकायें।

दूसरे दिन सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में हजारों विद्यार्थी। सैकड़ो शिक्षक और अभिभावक। एक हजार से अधिक की क्षमता वाला पांडाल छोटा पड़ गया था। लोग खड़े होकर अपने होनहारों का उत्साहवर्द्धन कर रहे थे।

22 दिसंबर की रात यूँ तो सबसे लम्बी होती है लेकिन बालिकाओं ने उसे सबसे छोटी बना दिया। पूरी रात नृत्य और संगीत बरसता रहा। अभिभावक तालियां बजाते रहे। प्रसिद्ध लोक गायिका चंदन तिवारी और उदयनारायण सिंह जैसे संगितज्ञ हतप्रभ थे। शैलेन्द्र मिश्र और अंकिता पंडित बेटियों के ताल पर झूम रहे थे। लोक कलाकार शिवांगी पाठक और कुंवर सिंह गाथा गान की प्रस्तोता सृष्टि शांडिल्य अपनी ख़ुशी छुपा नहीं पा रही थीं। सब कुछ किसी चमत्कार जैसा लग रहा था।

अगले दिन इलाके भर के सभी स्कूली विद्यार्थी पंजवार की सड़कों पर थे। हाथों में तख्तीयां! तख्तीयों पर स्लोगन्स! गुरूजी अमर रहें के नारों से आकाश गुंजित हो रहा था। सभी श्रद्धांजलि स्थल तक आये। विचारों का प्रवाह घंटों तक चलता रहा। देश के कोने कोने से आये लोग बता रहे थे कि एक घनश्याम होने से क्या -क्या बदल जाता है।

मेधा पाटेकर प्रतिमा अनावरण के समय भावुक हो रही थीं। ऐसा लग रहा था कि प्रतिमा को एकटक देखते हुए कुछ कह रही हों। मंच पर उन्होने सबसे कहा कि श्रद्धांजलि तो सभी देते हैं हम सभी कार्याँजलि दें। उनके कार्यो को आगे बढ़ाएं। हजारों विद्यार्थियों के हाथ हवा में लहरा रहे थे। सबने जैसे संकल्प उठा लिया हो…. सभी जैसे घनश्याम बन गये हों!

इस आयोजन को सफल बनाने में मित्रों, अभिभावकों, गुरुजनों, परिवार के सदस्यों के साथ साथ अनगिनत प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष लोगों का योगदान रहा है। सभी के प्रति ह्रदय से आभार!

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