रामावतार में प्रेम को जानना है तो भरत जी का चरित्र सुनिए और कृष्णावतार में प्रेम जानना है तो राधा कृष्ण की कथा सुनिए. :श्री राघव शरण जी महाराज

रामावतार में प्रेम को जानना है तो भरत जी का चरित्र सुनिए और कृष्णावतार में प्रेम जानना है तो राधा कृष्ण की कथा सुनिए. :श्री राघव शरण जी महाराज

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कृष्ण विवाह की मनमोहक झांकी देख प्रफ्फुलित हुए श्रोता

श्रीनारद मीडिया,प्रसेनजीत चौरसिया, सीवान (बिहार)

मनुष्य को समय देखते हुए अपने आप में समयानुसार बदलाव कर लेना चाहिए. उक्त बातें प्रखंड के राजपुर गांव में चल रहे नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन अयोध्या धाम से पधारे कथा व्यास पूज्य श्री राघव शरण जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कही. उन्होंने कहा कि कंस वध के बाद कंस की पत्नी ने अपने पिता से अपने पति की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए आग्रह किया. इस पर कंस के ससुर जरासंध मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया और प्रत्येक बार पराजित होकर जाना पड़ा.

18 वीं बार जरासंध ने कालयवन को कृष्ण और बलराम से युद्ध करने के लिए भेजा. भगवान कृष्ण जानते थे कि कालयवन का अंत किसी अस्त्र या शस्त्र से नहीं हो सकता इसलिए उन्होंने कालयवन को अपने बातों में उलझा कर रणभूमि से दूर एक गुफा में लेकर चले गए जहां राजा मुचकुंद सो रहे थे जहां कालयवन ने राजा मुचकुंद का अपमान कृष्ण समझ कर किया. राजा मुचकुंद की आंख खुली और कालयवन वही जलकर भस्म हो गया.

इस प्रकार भगवान कृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी पड़ा. बार-बार जरासंध के आक्रमण को देखते हुए भगवान कृष्ण ने एक योजना बनाई और मथुरा छोड़कर द्वारिका नगरी का निर्माण देव शिल्पी विश्वकर्मा से कराएं. मथुरा वासियों को रातों-रात मथुरा से द्वारिका नगरी में अपनी माया से स्थानांतरित कर दिए.

आचार्य ने भगवान कृष्ण और माता रुक्मणी के विवाह की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि देवी रुक्मणी का भाई रुक्मी चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदी राज्य के राजकुमार शिशुपाल के साथ हो परंतु रुकमणी माता पिता द्वारकाधीश के साथ अपनी पुत्री का विवाह करना चाहते थे. अंत में रुक्मिणी ने अपनी मां की आज्ञा से गौरी पूजन करने नगर से बाहर आई. जहां भगवान कृष्ण देवी रुक्मणी का हरण कर ले गए और उनसे विवाह किए.

आचार्य ने प्रेम की व्याख्या करते हुए कहा कि राम अवतार में प्रेम को जानना है तो भरत जी का चरित्र सुनिए जबकि कृष्णावतार में प्रेम जानना है तो राधे कृष्ण की कथा सुनिए. कथा के अंत में भगवान कृष्ण और देवी रुक्मणी के विवाह की मनमोहक झांकी प्रस्तुत की गई जिसे देख पंडाल में उपस्थित श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए और झूमने से अपने आप को नहीं रोक सके.

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