पुलिस विभाग को द्रौपदी बना दिया गया है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सुबोध कुमार जायसवाल महाराष्ट्र कैडर के तीसरे अधिकारी हैं, जो CBI चीफ बने हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक चयन समिति का हिस्सा रहे सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने बाकी दो दावेदारों के मुकाबले सुबोध जायसवाल को प्राथमिकता दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी भी इस समिति में शामिल थे।

सुबोध कुमार फर्जी स्टांप घोटाले के मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी की जांच के लिए गठित SIT का हिस्सा थे। इसकी वजह से वे चर्चा में भी रहे। इस मामले में मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर आरएस शर्मा को उनके रिटायरमेंट के अगले दिन ही 1 दिसंबर 2003 को गिरफ्तार किया गया था। उस समय रिटायर्ड डीजीपी एसएस पुरी SIT की कमान संभाल रहे थे, लेकिन तब DIG रहे सुबोध जायसवाल ही इस जांच दल का सबसे प्रमुख चेहरा थे।

उस समय मुंबई के वर्ली स्थित SIT के कार्यालय पर क्राइम रिपोर्टरों की नजरें टिकी रहती थीं। कई नेताओं और अधिकारियों को वहां इस घोटाले की जांच को लेकर बुलाया जाता था। शर्मा के अलावा SIT ने ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर श्रिधर वागल और डिप्टी पुलिस कमिश्नर प्रदीप सावंत को भी गिरफ्तार किया था। तब लगता था कि भले ही चाहे कोई कितनी पहुंच वाला क्यों ना हो, वो कानून के शिकंजे से दूर नहीं है। जायसवाल भी इसी सिद्धांत पर काम कर रहे थे।

ये चर्चाएं भी हो रही थीं कि फर्जी स्टांप घोटाले की जांच वरिष्ठ IPS अधिकारियों के बीच आंतरिक कलह से प्रभावित है। हालांकि सीधे हाईकोर्ट को रिपोर्ट कर रही SIT ने ऐसे दावों को खारिज कर दिया था। भले ही मुकदमे के बाद कई आरोपी रिहा हो गए, लेकिन तेलगी मामला मुंबई पुलिस पर सबसे बड़ा धब्बा बनकर उभरा। जायसवाल अपनी इस बात पर कायम रहे कि जांच सबूतों के आधार पर की गई थी। इस मामले की जांच बाद में CBI को सौंप दी गई थी।

एक के बाद एक कई बड़े मामलों की जांच में शामिल रहे

महाराष्ट्र के जिलों में तैनाती से अपने करियर की शुरुआत करने वाले जायसवाल मुंबई सेंट्रल रीजन में अतिरिक्त कमिश्नर (DIG रैंक) पद पर तैनात रहे और बाद में ATS ( आतंकवाद निरोधी स्क्वॉड) में भी रहे। दिसंबर 2004 में जहरीली शराब का मामला सामने आने के बाद उन्होंने एनएम जोशी मार्ग स्थित पुलिस स्टेशन के सीनियर इंस्पेक्टर केबी शिंदे को तुरंत बर्खास्त कर दिया। ATS में रहते हुए उन्होंने 2006 में हुए मुंबई ट्रेन धमाकों की जांच भी की।

जायसवाल तत्कालीन मुंबई पुलिस कमिश्नर एएन रॉय के करीबी थे और उन्हें महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटिल का भरोसा भी हासिल था। दिसंबर 2006 में पुलिस रिफॉर्म पर मुंबई में हुई एक बैठक में जायसवाल ने पुलिस की समस्याओं पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने राजनीतिक दबाव, लचीली जांच और पुलिसकर्मियों के स्किल्स का मुद्दा उठाया था। इस बैठक में निचले श्रेणी के पुलिसकर्मियों के ड्रेसिंग सेंस का भी मसला उठा था। तब सुबोध ने बैठक में मौजूद लोगों को याद दिलाया था कि एक कॉन्स्टेबल का ड्रेसिंग अलाउंस 80 रुपए है।

इस बैठक में जाने-माने अधिवक्ता यूसुफ मुच्छला ने 1992-93 के मुंबई दंगों में पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए थे। जायसवाल ने सभी आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि पुलिस विभाग को द्रौपदी बना दिया गया है। उन्होंने कहा था कि पुलिस विभाग हमारे समाज का ही आईना है।

सुबोध कुमार जायसवाल महाराष्ट्र कैडर के अधिकारी रहे हैं। एक समय शिवसेना ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। इस समय एंटीलिया केस, सुशांत राजपूत केस जैसे कई मामलों लेकर केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार आमने-सामने हैं। सीबीआई चीफ के तौर पर सुबोध की नियुक्ति को इस नजरिए से भी देखा जा रहा है।

शिवसेना के निशाने पर भी रहे हैं सुबोध

NCP नेता छगन भुजबल और ठाकरे परिवार यूं तो पॉलिटिकल कम्पेटिटर थे, लेकिन जायसवाल दोनों के ही निशाने पर रहे। तेलगी घोटाले की जांच भुजबल तक भी पहुंची थी। वहीं शिवसेना सेंट्रल मुंबई में जी न्यूज के दफ्तर पर हमले के आरोप में शिवसैनिकों पर कार्रवाई से नाराज थी। सामना अखबार में आरोप लगाया गया था कि जायसवाल ने शिवसेना के युवा कार्यकर्ताओं को पीटा और शिवाजी महाराज को भी नीचा दिखाया। मुंबई और ठाणे समेत कई जगह शिवसेना ने जायसवाल के खिलाफ प्रदर्शन किए थे।

2009 में जायसवाल सेंट्रल डेपुटेशन पर चले गए थे। महाराष्ट्र कैडर से दूर जाने का मतलब ये भी था कि वो मुंबई पुलिस के शीर्ष पदों की दौड़ से बाहर हो गए थे। 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र देवेंद्र फडणवीस के आग्रह पर वो मुंबई पुलिस कमिश्नर के पद पर लौटे थे। एक दशक तक मूल कैडर से दूर रहकर जब जायसवाल मुंबई पुलिस कमिश्नर बने तो कई बड़े अधिकारियों को ये बात पचाने में दिक्कतें आईं।

सत्ता के दबाव के बीच काम करने की चुनौती

आमतौर पर महाराष्ट्र कैडर के बहुत कम अधिकारी सेंट्रल डेपुटेशन पर जाते हैं। मुंबई, पुणे, ठाणे, नवी मुंबई और नागपुर पुलिस कमिश्नरेट में IPS अधिकारियों को चैलेंजिंग और लाभ वाले पद मिलते हैं। जायसवाल बाद में महाराष्ट्र पुलिस के महानिदेशक भी बने और फिर CISF के प्रमुख भी। यानी उन्हें अपने मूल कैडर और सेंट्रल डेपुटेशन दोनों में सेवा करने के मौके मिले।

अपनी नई नियुक्ति में सुबोध जायसवाल सत्ता के साथ कैसे संतुलन बनाते हैं, यह देखने वाली बात होगी। 1980 के दशक में महाराष्ट्र कैडर के एमजी काटरे जब सीबीआई प्रमुख थे, तब इस संस्था को सत्ता के एक उपकरण के तौर पर देखा जाने लगा था, लेकिन सुबोध के सामने महाराष्ट्र कैडर के ही जॉन लोबो का भी उदाहरण है जो सीबीआई चीफ रहते हुए कभी सत्ता के दबाव के आगे नहीं झुके।

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