भोजपुरी बोली-वाणी भाषा के लिए संस्था निरंतर गतिशील रहेगा- डॉ. ब्रजभूषण मिश्र 

भोजपुरी बोली-वाणी भाषा के लिए संस्था निरंतर गतिशील रहेगा- डॉ. ब्रजभूषण मिश्र

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श्रीनारद मीडिया, स्‍टेट डेस्‍क:


अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के द्वितीय दिवस रविवार को पांच सत्रों का आयोजन किया गया।
सम्मेलन के प्रथम सत्र में रसिक बिहारी ओझा निर्भीक स्मृति व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। जिसमें ‘झारखंड राज्य में भोजपुरी’ विषय पर चर्चा हुई।

कार्यक्रम में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में ए. के. श्रीवास्तव ने कहा कि भोजपुरी हमारी हनुमान चालीसा है, कहीं भी डर लगे तो आज हम भोजपुरी बोल सकते हैं। भोजपुरी हृदय के झंकार की भाषा है। झारखंड में इस भाषा से हम सभी आगे बढ़े हैं और अपना स्थान सुनिश्चित किया है।

पत्रकार दुर्योधन सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि जमशेदपुर की भाषा भोजपुरी है। भोजपुरी की अपनी लिपि है जो देवनागरी है। जितनी भोजपुरी सफल होगी उतनी ही हिंदी मजबूत होगी।

कार्यक्रम में अपने विशिष्ट वक्तव्य में दिव्यांशु त्रिपाठी ने कहा कि बौद्धिक स्तर पर भोजपुरी के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। एक मंच पर छोटानागपुरिया और नागपुरिया भाषा को लाया जाए। भोजपुरी साहित्य परिषद 1955 से भोजपुरी के लिए समर्पित संस्था है जो कार्य कर रही है। सिंहभूम भोजपुरी साहित्य मंडल जैसी कई संस्थाएं हैं जो काम कर रही है। लुकार, लकीर,अंगना, माई, जोहर- माटी जैसी पत्रिका का प्रकाशन यहां से होता है। भोजपुरी में 59 पुस्तक का प्रकाशन जमशेदपुर से हो चुका है। यह सबसे बड़ी भोजपुरी की सेवा है।

जमशेदपुर में प्रभात खबर दैनिक समाचार पत्र के संपादक संजय मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि निर्भीक जी के योगदान को घर-घर तक पहुंचाने की आवश्यकता है। 1975 में मजदूर बनकर आए भोजपुरी प्रदेश के लोगों ने इस भूमि को सिंचित किया है। भोजपुरी को समाप्त करके विकास की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन यह कहा जा सकता है कि निर्भीक चाचा ने के बाद उनके जैसा कार्य नहीं हो रहा है। भोजपुरी की स्थिति झारखंड में बुरी है। इसे राजनीति का मुद्दा बनाया जाता है कहा जाता है कि यहां की पुलिस की भाषा भोजपुरी है। नेता कहते हैं कि भोजपुरी भाषा में गाली दिया जाता है, जो सच्चाई से परे है। हम एक समय निश्चित करें कि एक वर्ष के अंदर स्तरीय भोजपुरी पुस्तकों का प्रकाशन हो, नई पीढ़ी को भोजपुरी से जोड़ा जाए ताकि इस बोली-वाणी,भाषा को बढ़ावा मिले। मंच का संचालन प्रसेनजीत तिवारी ने किया।

वही दिवस के द्वितीय सत्र में विश्व पटल पर भोजपुरी विषय पर चर्चा हुई। जिसकी अध्यक्षता करते हुए डॉ. सरिता बुधू ने कहा कि 2 नवंबर 1834 को भारतीय मॉरीशस गए और उन्होंने आज तक भोजपुरी भाषा को जीवंत रखा है। लेकिन याद राखिए बिना आंदोलन के कुछ नहीं मिलेगा भोजपुरी के विकास हेतु इसे स्कूली शिक्षा में लाया जाए। भोजपुरी से आप अपनी पहचान बना सकते हैं। इसके लिए एक भोजपुरी शब्दकोश बनाया जाए। भोजपुरी से अश्लीलता एक समय पर स्वत: समाप्त हो जाएगी। भोजपुरी को हम अपने घर आंगन से शुरू करेंगे तो भोजपुरी के प्रति नई पीढ़ी का रुझान बढेगा। भोजपुरी में जब काम होगा तो भोजपुरी के लोग विकसित होंगे, भोजपुरी बोली-वाणी भाषा का साहित्य विकसित होगा तो संविधान में अवश्य ही इसे स्थान मिलेगा।

नेपाल की धरती से पधारे नेपाल भाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. गोपाल ठाकुर ने कहा कि “पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण जाएं चाहे जाई कोनो ओरिया चाहे जैईसन मशीन होई चलाई भोजपुरिया।”
साक्षरता की भाषा अगर मातृभाषा होगी तो शत-प्रतिशत जनता साक्षर हो जाएगी। भोजपुरी में कई प्रकार के कार्य नेपाल में हो रहे हैं इसे यहां विशिष्ट दर्जा प्राप्त है।

नेपाल से ही पधारे डॉ. गोपाल अश्क ने कहा नेपाल में 18 लाख जनता की भाषा भोजपुरी है। नेपाल के मधेश और लुंबिनी प्रदेश की भाषा भोजपुरी हैं। यहां के आठ जिलों में यह बोला जाता है। नेपाल में यह तीसरी बड़ी भाषा है। संत भीनक राम नेपाल में मधेश प्रदेश में भोजपुरी बोली को फैलाए इसलिए इन्हें पहला कवि माना जाता है। आधुनिक कविता में रामदेव द्विवेदी अलमस्त का नाम प्रमुख है उन्होंने नेपाल में भोजपुरी को बढाया। समग्र भोजपुरी इतिहास को लिखा जाना चाहिए इससे यह भाषा और सुदृढ़ होगी।

इस सत्र के मंच का सफल संचालन भोजपुरी के कलाकार, गायक, चिन्तक व लेखक मनोज भावुक ने किया।

दिवस के तृतीय सत्र में उपन्यास के वैश्विक परिदृश्य आ भोजपुरी उपन्यास विषय पर चर्चा हुई।
जिसकी अध्यक्षता करते हुए भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा की भोजपुरी उपन्यास की विधा काफी समृद्ध है। सौ से भी अधिक उपन्यास 1946 से अब तक लिखे गए हैं और सभी प्रकार की समसामयिक विषयों को ध्यान में रखकर लिखे गए हैं।
इस सत्र में वक्ता के रूप में कन्हैया सिंह सदय, डॉ. विष्णुदेव तिवारी और सत्र में विषय प्रवर्तन जितेंद्र कुमार ने किया। जबकि सत्र का संचालन डॉ. राजेश कुमार मांझी ने किया।

दिवस के चतुर्थ सत्र समापन सत्र के रूप में चरितार्थ हुआ। जिसमें सम्मेलन में पधारे सभी सदस्यों को अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र सम्मेलन की पत्रिका देकर सम्मानित किया गया। इस सत्र में कोलकाता से पधारे कोल इंडिया के वरीय अधिकारी बृजेश कुमार त्रिपाठी ने कहा कि भोजपुरी को आगे ले जाने के लिए हम सब कटिबद्ध हैं। भोजपुरी की अश्लीलता को हमसभी सलिलता से समाप्त कर देंगे।भोजपुरी में इतना कुछ अच्छा लिखा जाएगा की यह सभी साहित्य के लिए नजीर होगा।
अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. ब्रजभूषण मिश्र ने कहा कि आने वाले समय में संस्था के माध्यम से भोजपुरी बोली-वाणी भाषा को आगे ले जाने के लिए भरपूर प्रयास किया जाएगा। इसके लिए हम सभी सदस्य कटिबद्ध हैं।
इस सत्र का संचालन सूरज सिंह राजपूत ने किया। जबकि धन्यवाद आयोजन समिति के संयोजक डॉ.अजय कुमार ओझा ने किया।

सायंकालीन सत्र में साठ से अधिक कवियों ने अपनी काव्य पाठ की प्रस्तुती दी, इसमें सबसे बढकर महिला कवियित्रियों ने अपने कविता पाठ से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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