भोजपुरी के महान हस्ताक्षर महेंदर मिसीर जी के पुण्यतिथि प बेर बेर नमन

भोजपुरी के महान हस्ताक्षर महेंदर मिसीर जी के पुण्यतिथि प बेर बेर नमन

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महेंदर मिसीर : स्मृति शेष,जन्मतिथि – 16 मार्च 1886,पुण्यतिथि- 26 अक्टूबर 1946

आखर परिवार अपना नायक, भोजपुरी के महान हस्ताक्षर महेंदर मिसीर जी के पुण्यतिथि प बेर बेर नमन क रहल बा श्रद्धांजलि दे रहल बा ।

“मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे,
सुन्दर सोहावन जहाँ बहुते मालिकाना है |
गाँव के पश्चिम में विराजे गंगाधर नाथ ,
सुख के स्वरुप ब्रह्मरूप के निधाना हैं |
गाँव के उत्तर से दखिन ले सघन बांस ,
पूरब बहे नारा जहाँ कान्ही का सिवाना है |
द्विज महेंद्र रामदास पुर के ना छोड़ो आस,
सुख दुःख सब सह करके समय को बिताना है |”

पहलवानी कईला से कसल देहि , चमकत लिलार , देहि पे सिलिक के मह्ंगा कुरता आ धोती , गरदन मे चमचमात सोना के सिकरी आ मुह मे पान के गिलौरी , कुछ अईसन रहे भोजपुरी के मशहुर आ पुरबी के सम्राट महेंदर मिसिर के व्यक्तित्व जिनकर नाव गांव शोहरत खाली भारते मे ना बलुक फिजी , मारिसस, सुरीनाम , नीदरलैंड , त्रिनिदाद , ब्रिटिस गुआना , नेपाल आदि देसन मे फईलल रहे ।

छपरा जिला के मिसिरवलिया गांव मे 16 मार्च 1886 के महेन्दर मिसिर के जनम भईल रहे , माई के नाव गायत्री देवी आ बाबुजी के नाव शिवशंकर मिसिर रहल । बचपने से महेन्दर मिसिर जी के मन पहलवानी , कीर्तन गाना बजाना गीत गवनई मे लागे । गांव मे संस्कृत के पंडित नन्दु मिसिर जी जब अभिज्ञान शांकुतलम पढावस त महेन्दर मिसिर जी बडा चाव से एक एक बात पे धेयान देसु आ आगे चलि के अभिज्ञान शाकुंतलम के असर महेन्दर मिसिर जी के गीतन पे पडल ।

महेंदर मिसिर जी के बिआह रुपरेखा देवी से भईल रहे जिनका से हिकायत मिसिर के नाव से एगो लईका भी भईल , बाकी घर गृहस्थी मे मन ना लागला के कारन महेन्दर मिसिर जी हर तरह से गीत संगीत कीर्तन गवनई मे जुटि गईनी । बाबुजी के स्वर्ग सिधरला के बाद जमीदार हलिवंत सहाय जी से जब ढेर नजदीकी भईल त उहा खातिर मुजफ्फरपुर के एगो गावे वाली के बेटी ढेलाबाई के अपहरण कई के सहाय जी के लगे चहुंपा देहनी । बाद मे एह बात के बहुत दुख पहुंचल आ पश्चाताप भी कईनी संगे संगे सहाय जी के गइला के बाद , ढेला बाई के हक दियावे खातिर महेन्दर मिसिर जी कवनो कसर बाकी ना रखनी !

बंगाल मे शुरु भईल सन्यासी आन्दोलन से जुडला के बाद महेन्दर मिसिर जी अंग्रेजन के खिलाफ बरिआर मोर्चा खोल देहनी आ ओहि घरी उँहा के पहिचान एगो पईसा वाला बंगाली से भईल जे इँहा के आवाज आ गीत संगीत से एतना ना खुश रहे की लन्दन जाये घरी उ आपन नोट छापे वाली मशीन इँहा के जिम्मे लगा के चली गईल । अंग्रेजी सरकार के आर्थिक बेवस्था के तहस नहस आ हिलावे डोलावे खातिर महेन्दर मिसिर जी जाली नोट छापे लगनी जवना से अंग्रेज सरकार एकदम से पगला गईल बउखला गईल आ फेरु अपना आदमी लोगन के जासुसी खातिर लगा देहलस ।

सी आई डी जटाधारी प्रसाद आ सुरेन्द्र लाल घोष के अगुवाई मे चुप्पे चोरी खोजाहट होखे लागल । सुरेन्द्र लाल घोष गोपीचन बन के तीन साल ले मिसिर जी के नोकर बन के रहले आ एकदम खास बन के मय जानकारी जुटा लेहले । फेरु का , 16 अपरैल 1924 के राति खा अंग्रेज सिपाही गोपीचन के इशारा पे महेन्दर मिसिर जी के घर पे छापा डलs लन स आ नोट बनावे के मशीन के संगे संगे नोट के बंडल , महेन्दर मिसिर आ उनुका चारो भाई के पकड लेहलन स ।

पटना उच्च न्यायलय मे तीन महिना ले सुनवाई भईल जवना मे मिसिर जी के ओर से वकील रहलन विप्लवी हेमचन्द्र मिसिर आ मशहुर स्वतंत्रता सेनानी चितरंजन दास ! बाकी अंत मे 10 साल के सजा महेन्दर मिसिर के सुना दिहल गईल जवना के बाद , बक्सर के जेल मे उँहा के बन कई दिहल गईल । बाकी कहल जाला के जेकरा भीतर गुने गुन होखे ओकरा से त भगवान का शैतानो मान जाला आ इहे भईल जब उँहा के बक्सर के जेल मे रहे वाला ओजुगा के हरेक कर्मचारी जेलर आ कैदी लोगन के प्रेमी आ दुलरुवा बनी गईनी त एकर नतीजा ई भईल की उँहा के तीन साल के बादे जेल से छुट गईनी । उँहा के तीन साल के जेल यात्रा मे ” अपुर्व रामायण ” के सात खंड मे रचना भी कई देहनी ।

महेन्दर मिसिर जी के लिखल तीन गो नाटक के अलावा महेन्द्र मंजरी , महेन्द्र बिनोद , महेन्द्र मयंक , भीष्म प्रतिज्ञा , कृष्ण गीतावली , महेन्द्र प्रभाकर , महेन्द्र रत्नावली , महेन्द्र चन्द्रिका , महेन्द्र कवितावली आदि के संगे संगे कई गो छोट मोट फुटकर रचना भी बाडी स बाकी इँहा के ख्याति आ प्रसिद्धि मिलल अपना पुरबी गीतन के वजह से । जवना वजह से इँहा के पुरबी गीतन के सम्राट भा जन्मदाता कहल गईल भा कहल जाला ।

कलकत्ता , बनारस , मुजफ्फरपुर आदि जगह के तवायफ लोग महेन्दर मिसिर के आपन गुरु मानत रहे आ इनिके लिखल गीत के उ लोग गावत रहे । एक ओरि जहवा महेन्दर मिसिर जी के हारमोनियम , तबला , झाल , पखाउज , मृदंग , बांसुरी पे अधिकार रहे त ओजुगे , ठुमरी टप्पा , गजल , कजरी, दादरा , खेमटा जईसन कई गो राग प भी एकाधिकार रहे आ एहि वजह से उँहा के हर रचना संगीत से भरल रहत रहे जवन केहु के जबान पे तुरंते चढि जाय ! महेन्दर मिसिर के पुरबी गीतन मे बिछोह बिरह के संगे संगे रुमानी अहसास जवन लउकेला उ बहुत कम भोजपुरी के रचना मे देखे के मिलेला ।

अंगुरी मे डंसले बिआ नगिनिया , ए ननदी दिअवा जरा दे , सासु मोरा मारे रामा बांस के छिउंकिया , सुसुकति पनिया के जाय , पानी भरे जात रहनी पकवा इनरवा , बनवारी हो लागी गईले ठग बटमार , आधि आधि रतिया के पिहके पपीहरा , बैरनिया भईली ना , मोरे अंखिया के निनिया बैरनिया भईली ना , पिया मोरे गईले सखी पुरबी बनिजिया , से दे के गईले ना , एगो सुनगा खेलवना से दे के गईले ना , जईसन असंख्य गीतन से पथरो के पघिला देबे के क्षमता महेंदर मिसिर जी के गीतन मे बा जवना के आजुवो सुनला के बाद आदमी मंत्र मुग्ध हो जाला आ आज के कई गो नामी कलाकार इँहा के एह कुल्हि गीतन के गाई के उपर आईल बा !

कहे वाला कहेला की इँहा के गीतन मे दर्द असल मे ढेला बाई भा अउरी कई गो तवायफ लोगन के मजबुरी , दर्द दुख के वजह से झलके ला भा अईसन कुल्हि गीत लिखे के प्रेरणा मिलल , जवना मे एगो बिरह व्यथा कुट कुट के भरल बा आ लउकेला ।

महेंदर मिसिर अपना गीतन से खाली कल्पना ना बाकी यथार्थ के पहचान देले बानी एगो आवाज देले बानी एगो अँदाज देले बानी । जब उँहा के नोकर उँहा संगे विश्वासघात कईलस त उँहा के कहनी –

पाकल पाकल पानवा खिअवले गोपीचनवा पिरितिया लगा के ना,
हंसी हंसी पानवा खिअवले गोपीचानवा पिरितिया लगा के ना …
मोहे भेजले जेहलखानवा रे पिरितिया लगा के ना …

अब मिसिर जी के संगे तीन साल रहला के असर रहे की घोष जी जे अंग्रेजन के जासुस रहले आ गोपीचन के नाव से मिसिर जी के नोकर बनी के रहत रहे , तुकबन्दी मे कहलस की –

नोटवा जे छापि छपि गिनिया भजवलs ए महेन्दर मिसिर
ब्रिटिस के कईलs हलकान ए महेन्दर मिसिर
सगरे जहानवा मे कईले बाडs नाम ए महेन्दर मिसिर
पडल बा पुलिसिया से काम ए महेन्दर मिसिर

अईसे त महेन्दर मिसिर के लिखल गीत गांव गांव घर घर लोगन के जुबानी रहल बा , कुछ गीत आजो अमर बा‌डी स , आ भाग से उँहा के कुछ गीतन के संकलन ” महेन्दर मिसिर के गीत संसार ” शीर्षक के नाव से डा. सुरेश कुमार मिसिर के संपादन मे अखिल भारतीय भोजपुरी परिषद लखनउ से प्रकाशित करवईलस । बाकी एह संकलन मे महेंदर मिसिर के कई गो मशहुर गीत नईखी स ।

महेंदर मिसिर अपना जीवन काल मे ही मशहुर आ लोगन के जुबान पे आ गईल रहले जिनका उपर कइ गो किताबियो लिखाईल बा , जइसे ” फुलसुंघी” पांडे कपिल जी के लिखल, दुसरका ह ” महेंदर मिसिर” रामनाथ पांडे जी के लिखल । जौहर शाफियाबादी जी के ” पुरबी के धाह ” , पंडित जगन्नाथ जी के – ” पूरबी के पुरोधा ” रविंद्र भारती के लिखल नाटक ‘कंपनी उस्ताद’ जईसन किताब महेन्दर मिसिर जी के उपर लिखाईल बाडी स ।

26 अक्टुबर 1946 के ढेलाबाई के कोठा पे बनल शिव जी के मन्दिर मे पुरबी के सम्राट , जेकरा गीतन से पथरो मोम बनी के पघिले लागत रहल , एह दुनिया जहान के छोड के हमेशा हमेशा खातिर स्वर्ग सिधार गईलन बाकिर उँहा के लिखल एक- एक गीत आजुओ भोजपुरी खातिर एगो अईसन धरोहर बा जवन कबो ओराये माही के नईखे आ जेकरा के भोजपुरिया लोग जन्म जन्मांतर तक आवे वाला कई जुग तकले कई पीढी ले सम्हार के राखी आ इयाद करी !

 

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