हमें जनगणना की जरूरत क्यों है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) घटकर ‘एक्स’ फीसदी हो गया है; 18 से 44 आयु-वर्ग में जोखिम का खतरा ‘वाई’ फीसदी रहता है; उत्तर प्रदेश में ‘जेड’ लाख ग्रामीणों को अब तक बिजली की सुविधा नहीं मिल सकी है- इस तरह की सुर्खियां आप रोजाना अखबारों में पढ़ते हैं। मगर क्या कभी आपने यह सोचा है कि भला कैसे कोई लेखक ‘एक्स’, ‘वाई’ या ‘जेड’ जैसे सटीक आंकड़े जान लेता है, जबकि इसके लिए संबंधित इलाके के हर व्यक्ति की गिनती भी नहीं की जाती? दरअसल, संबंधित इलाके, राज्य अथवा देश के कुछ लोगों से जानकारियां इकट्ठा करके यह आकलन किया जाता है, और आबादी के इस छोटे या सैंपल डाटा को दिखाने के लिए जिस बड़े आंकड़े को आधार बनाया जाता है,

वह है देश की दशकीय जनगणना। 19वीं सदी के मध्य तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर करीब-करीब पूरा कब्जा कर लिया था। 1858 में, ब्रिटिश संसद में भारत सरकार अधिनियम, 1858 पारित किया गया, जिसके तहत भारतीय उपनिवेश का नियंत्रण कंपनी से लेकर ब्रिटिश राजशाही को सौंप दिया गया। मगर शासन स्थापित करने के लिए ब्रिटिश सरकार को लोगों और उनकी रिहाइश को लेकर विस्तृत और विश्वसनीय डाटा की जरूरत थी। आखिरकार, वह कैसे तय कर सकती थी कि उनकी महारानी ने भारत पर अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए जो अमानवीय टैक्स लगाया है, वह देश के हर निवासी से वसूला जाए?

औपनिवेशिक सत्ता को पता था कि क्या करना है। वह 1801 से ही इसे अपने यहां कर रही थी। इस कवायद को ‘सेन्सस’, यानी जनगणना कहा गया, जो लैटिन शब्द ‘सेंसेर’ से निकला है। रजिस्ट्रार जनरल ऐंड सेन्सस कमिश्नर के कार्यालय बनाए गए और 1881 में भारत में पहली बार जनगणना हुई। बेशक जनगणना का मूल उद्देश्य जबरन वसूली की मंशा को पूरा करना था, लेकिन इसका लाभ कई विभागों को मिला। शिक्षा विभाग ने प्राथमिक शिक्षा की अपनी योजना बनाने में इसका इस्तेमाल किया। लोक-निर्माण विभाग ने इसका उपयोग सड़क नेटवर्क की योजना बनाने में किया। बिजली संयंत्र स्थापित करने और ग्रिड तक ट्रंक लाइन लगाने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया। और, रेलवे ने पटरियां बिछाने की योजना बनाने में इसका उपयोग किया। जनगणना के आंकड़ों ने जैसे ही बुनियादी ढांचे को प्रभावित किया, लोगों की बडे़ पैमाने पर आवाजाही बढ़ गई। बंबई, कलकत्ता और मद्रास जैसे बंदरगाह वाले शहरों का तेज विकास हुआ, क्योंकि रेल नेटवर्क से उन्हें निकट और सुदूर इलाकों से जोड़ा गया।

औपनिवेशिक राज की कई परंपराएं 1947 के बाद भी कायम रहीं। सौभाग्य से जनगणना भी उनमें से एक है। अमूमन पांच या दस साल पर होने वाली जनगणना को राष्ट्रीय संसाधनों के इस्तेमाल के लिए अनिवार्य माना जाता है। अमेरिका दशक के अंत में जनगणना करता है, जो 2020 में कोविड-19 के बावजूद पूरा किया गया, तो चीन ने भी पिछले साल अपनी दशकीय जनगणना पूरी की है। भारत में पिछली बार 2010 में गिनती शुरू हुई थी, जो 2011 में पूरी हुई। अपने यहां इसका बुनियाद परिवार सर्वे है। मगर यह सर्वे पिछले साल जैसे मृतप्राय: रहा। अब तो हम 2021 के मध्य में आ चुके हैं, लेकिन जनगणना का अब तक कोई संकेत नहीं मिल रहा है।

सवाल है, 2021 की जनगणना की परवाह आखिर हमें क्यों नहीं करनी चाहिए? पहली वजह, अब हम यह जानते हैं कि सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन का जितना ऑर्डर दिया, वह आबादी के घनत्व को ध्यान में रखकर नहीं दिया जा सका था। जनगणना से न सिर्फ हमें यह पता होता है कि देश में कितने लोग रहते हैं, बल्कि उनकी उम्र, लिंग, मूल निवास, परिवार और शिक्षा का स्तर भी हम जान लेते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना में ऐसे सभी विवरण मौजूद हैं, जनगणना होने पर 2021 में भी ये हमारे पास होते।

दूसरा कारण, 2026 में अगली परिसीमन प्रक्रिया के खत्म होने पर लोकसभा में राजनीतिक संतुलन बदल जाएगा। यदि प्रतिनिधित्व का आधार जनसंख्या है, तो जिन राज्यों में जनसंख्या प्रबंधन की हालत खस्ता है (विशेष रूप से हिंदी पट्टी में), संसद में उनकी नुमाइंदगी काफी बढ़ जाएगी। दक्षिण व पश्चिम भारत को नुकसान होगा। जाहिर है, परिसीमन के लिए भी हमें जनगणना के तमाम पहलुओं पर गौर करना होगा। तीसरा, संघ और राज्यों के बीच कर राजस्व के बंटवारे की वित्त आयोग निगरानी करता है। वस्तु एवं सेवा कर, यानी जीएसटी इस वितरण को और विवादास्पद बना देता है। राजस्व के निर्धारण में भी जनसंख्या अहम भूमिका निभाती है। चौथा, देश में सांप्रदायिक राजनीति जारी है।

कई नेता यह आरोप लगाते हैं कि बहुसंख्यक आबादी घट रही है और अल्पसंख्यकों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। जमीनी हकीकत जानने के लिए जनगणना एक अखिल भारतीय प्रक्रिया है। यह न सिर्फ हमें आबादी की संख्या बताती है, बल्कि जन्म व मृत्यु दर, प्रजनन दर, सकल और शुद्ध जन्म दर, नवजात मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर जैसे आंकड़े भी हमारे सामने रखती है। ध्रुवीकरण की राजनीति को जनगणना बेपरदा कर सकती है। पांच, आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए बुनियादी ढांचे में बडे़ पैमाने पर निवेश की बात चल रही है।

आखिर उन निवेशों का आधार क्या होगा? इससे जुड़े कई सवाल हैं, जैसे- अहमदाबाद से मुंबई के लिए बुलेट ट्रेन क्या एक अच्छी योजना है? किन रेल मार्गों को और मजबूत करने की दरकार है? सड़क, नदी, समुद्री और हवाई परिवहन के बुनियादी ढांचे को किस तरह से सुधारा जाना चाहिए? किसानों को अपनी उपज पर पर्याप्त फायदा कैसे मिलेगा? सबसे अच्छा मॉडल क्या है? जनगणना इन तमाम सवालों का उचित जवाब दे सकती है, जिससे योजनाकारों को यह पता चलेगा कि इन सबसे कौन लाभान्वित होगा, कितना होगा और किस कीमत पर होगा? और आखिरी कारण, सामाजिक जीवन में टीवी जिस तरह से शामिल है, उसे देखते हुए क्या हम यह कह सकते हैं कि बार्क रेटिंग चैनलों या टेलीविजन शो के देखने का असल पैटर्न बताती है? क्या 2021 में ग्रामीण दर्शक वाकई शहरी दर्शकों से ज्यादा हो जाएंगे? व्यूइंग पैनल द्वारा बार्क डाटा जमा करती है, और जनगणना के आधार पर रेटिंग तय करती है। जब जनसंख्या का आंकड़ा ही गलत है, तो र्रेंटग क्या सही हो सकती है?

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