क्यों नहीं कम हो रहा सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग ?

क्यों नहीं कम हो रहा सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग ?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राजनीति भला कहां नहीं होती? बिना राजनीति के ‘सांस’ भी कहां ली जा रही है। फिर यहां तो पर्यावरण सरोकार की आड़ में सिंगल यूज प्लास्टिक जैसा मुद्दा है। जहां मुनाफा ठीकठाक है। आड़ शब्द इसलिए, क्योंकि सवाल नीयत का भी है। अब जरा प्रतिबंध के बारे में सोचिए। तीन माह पहले 19 प्रकार के ऐसे सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाए गए, जो कि पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। अब इस प्रतिबंध और प्लास्टिक को समझने की जरूरत है। यह सब कहीं न कहीं ध्यान भटकाना है।

आप प्रतिबंध को लेकर यदि इतने अधिक चिंतित हैं तो उसके लिए कोई योजना क्यों नहीं बनाई गई। इसके प्रति गंभीरता का स्वर इस बात से ही समझा जा सकता है कि जिन एजेंसियों या प्राधिकरण को इसके लिए कार्रवाई का जिम्मा दिया गया, वे स्वयं कुछ दिन बाद इस ओर से बेपरवाह हो गईं। जितने दिन युद्धस्तर पर कार्रवाई हुई, तब तक तो थोड़ा-बहुत असर दिखा भी। भले ही वह केवल पालीथिन जब्त करने तक ही सीमित रहा हो, जबकि यह प्रतिबंध 19 प्रकार के प्लास्टिक पर लगाया गया है। अब कठघरे में तो कार्रवाई के लिए जिम्मेदार एजेंसियां भी खड़ी होती हैं जिनकी अन्यमनस्कता जाहिर करती है कि केवल कार्रवाई माने लीपापोती करके ध्यान भटकाए रखिए।

दरअसल प्लास्टिक पालिटिक्स इसलिए हो रही है कि आमजन का ध्यान भटका रहे। उसे कचरा प्रबंधन में उलझा कर रखा जाए। उसका ध्यान असल मुद्दे पर नहीं जाए कि आखिर ये आ कहां से रहा है? क्यों आ रहा है? कौन ला रहा है? इसके पीछे कौन है? अब तक के तीन माह के प्रतिबंध में इन सवालों को तलाशने की नीयत किसी की नहीं रही। चूंकि हर पहल अपने घर से ही होती है, लिहाजा इसकी चिंता हम सभी को करनी होगी।

करे कोई, भरे टैक्स दाता

आप स्वयं से या अपने आसपास लोगों से भी पूछ लीजिए कि उन्हें प्रतिबंधित 19 उत्पादों (ईयरबड्स, गुब्बारे की प्लास्टिक डंडी, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी की प्लास्टिक डंडी, आइसक्रीम की प्लास्टिक डंडी, थर्मोकाल के सजावटी सामान, प्लास्टिक की प्लेट, कप, ग्लास, कांटे, चम्मच, स्ट्रा, ट्रे, मिठाई के डिब्बे पैक करने वाली पन्नी, इनविटेशन कार्ड पर लगाई जाने वाली पन्नी, सिगरेट पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली पन्नी) की जानकारी है?

उनका उत्पादन कहां होता है? जब तक जड़ में नहीं जाएंगे तो ऐसे उलझे ही रह जाएंगे, ध्यान भटकने की बातें करते रहेंगे। यदि हम पर्यावरण के शुभचिंतक हैं, उसे हानि पहुंचाने वाले उत्पादों को रोक रहे हैं तो उन्हें बंद कौन करेगा? उनके उत्पादन को कौन रोकेगा? चूंकि ये फैक्ट्री हमारे एजेंडे में ही नहीं है।

कहा जा सकता है कि हवा हवाई प्रतिबंध लगाने के लिए हमारा सिस्टम अभ्यस्त हो चुका है। ये 19 उत्पाद पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं और इनका रिसाइकल महंगा है तो इसका निपटारा करने का जिम्मा उत्पादन करने वाली कंपनियों पर होना चाहिए। आखिर आर्थिक बोझ उपभोक्ता क्यों वहन करे? कंपनियां प्लास्टिक ही क्यों उपयोग करना चाहती हैं? इसके विकल्प भी कभी खोजना नहीं चाहतीं या विकल्प पता होते हुए भी उन्हें प्रयोग में क्यों नहीं लाना चाहतीं? क्योंकि प्लास्टिक जितना सस्ता विकल्प और कोई है ही नहीं। ऐसे में इस सिस्टम को समझने की आवश्यकता है।

सोचिए अधिकांश स्थानीय निकाय हमारी मेहनत की कमाई आखिर उस प्लास्टिक कूड़े के निस्तारण पर खर्च कर रहे हैं जिसका उत्पादन कंपनियों ने किया। यह सही है कि उसका उपभोग हम ही करते हैं, परंतु यदि कंपनियां उसका उत्पादन बंद कर दें और अन्य विकल्पों पर ध्यान दें तो फिर उससे पैदा कचरे के निस्तारण की आवश्यकता ही नहीं होगी। एक प्रश्न यह भी है कि इसके निस्तारण का वहन किसे करना चाहिए? हम खराब करके, बिगाड़ कर सुधारने पर खर्च करने की प्रवृत्ति से जब तक नहीं उबरेंगे, तब तक प्लास्टिक से पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को ही नुकसान पहुंचाते रहेंगे।

यदि किसी वस्तु पर लगाए जा रहे प्रतिबंध को कारगर बनाना है तो उसके उत्पादन पर ही रोक लगनी चाहिए। परंतु क्या पिछले तीन महीने में दिल्ली-एनसीआर में एक भी संबंधित फैक्ट्री पर ताला लगाया गया? यदि इस प्रतिबंध के पीछे सच में इच्छाशक्ति होती तो बाजार में इन उत्पादों के विकल्प एक जुलाई से पहले आ गए होते। वैसे लघु मध्यम उद्योग महंगे विकल्पों के कारण इस दिशा में पूरी हिम्मत नहीं जुटा सका। एक वास्तविकता यह भी है कि सभी विकल्प महंगे हैं और यदि इन महंगे विकल्पों को अपनाया जाएगा, तो इसका भार उपभोक्ता पर ही डाला जाएगा, जो उपभोक्ताओं के हित में नहीं होगा।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!