पहली बार महिला क्रिकेट टीम ने विश्व कप जीता
नारी अपनी पहचान किसी विरोध से नहीं, बल्कि समर्पण से गढ़ती है
अब लोग कहेंगे…..हमारी… नहीं मेरी बेटियां…………..
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

1976 की वह घटना है जब शांता रंगास्वामी के नेतृत्व में भारतीय महिला क्रिकेट टीम का पहला मैच पटना के मोइनुल हक़ स्टेडियम में हुआ था। तब टीम में डायना एडुलजी भी थी जो बाद में कप्तान भी बनी। तब से लेकर महिला क्रिकेट टीम में शर्मिला चक्रवर्ती संध्या अग्रवाल अंजुम चोपड़ा मिताली राज जैसी शानदार खिलाड़ी सामने आई।अब तक 94 महिला क्रिकेट खिलाड़ी भारत मे हुईं।
ऋग्वेद के देवी सूक्त महर्षि वाक् अंबृणी कहती हैं कि
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां, चिकितुषी प्रथमं यज्ञियानाम्।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा, भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयन्तीम्॥
अर्थात मैं ही राष्ट्र की धारिणी हूँ, मैं ही समृद्धियों को जोड़ने वाली हूँ।मुझे देवताओं ने अनेक स्थानों पर स्थापित किया है, ताकि मैं सबको शक्ति और बुद्धि से संपन्न कर सकूँ।
यहाँ पर जो अहं राष्ट्री यानी मैं ही राष्ट्र हूँ का जो उद्घोष है न वह केवल भूमि या सीमाओं का नाम नहीं, बल्कि वह एक चेतना है जो नारी के भीतर प्रवाहित होती है और वह राष्ट्र को जीत दिलाती है।
आज आधुनिक विमर्श में नारीवाद का अर्थ पश्चिमी सीमाओं में कैद कर दिया गया है जहाँ स्वतंत्रता का अर्थ अनुशासनहीनता और अधिकार का अर्थ आक्रोश हो गया है। वहाँ सिगरेट के धुएँ में अवसाद गुम करने वाली चेवरा वाली नारीवादियों की भीड़ है, जबकि यहाँ भारत की बेटियाँ श्रम, संस्कार और संवेदना से राष्ट्र की प्रतिष्ठा गढ़ रही हैं।
भारतीय दृष्टिकोण यह सिखाता है कि नारी अपनी पहचान किसी विरोध से नहीं, बल्कि समर्पण से गढ़ती है। वह परिवार को जोड़ती है, कभी टीम को जोड़ कर कोई हरमनप्रीत किसी सैफाली या दीप्ति के साथ समाज को दिशा देती है और राष्ट्र को गति देती है।
ढेर सारी बधाई और मंगलकामना पहुँचे। हर विजय राष्ट्र को एकजुट करता है! विजय का लय बना रहे!
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