लखनऊ में ब्लैक वॉटर : राजधानी की जीवन रेखा गोमती नदी खतरे में – तिरंगा महाराज
विधानसभा 172 के फैजुल्लागंज क्षेत्र में गंदे नाले में बहते है मरे हुए जानवर सीधे गिरते हैं गोमती नदी में शिकायत के बाद भी प्रशासन मूक
श्रीनारद मीडिया, लक्ष्मण सिंह, यूपी डेस्क:

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राजधानी लखनऊ की जीवन रेखा कही जाने वाली गोमती नदी गंभीर संकट में है। फैजुल्लागंज क्षेत्र (विधानसभा 172) से निकलने वाला गंदा नाला बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे गोमती नदी में गिर रहा है, जिससे नदी का पानी काला पड़ गया है। नाले के जरिए सीवेज, कचरा और मरे हुए जानवर नदी में प्रवाहित हो रहे हैं। क्षेत्र में भारी दुर्गंध, गंदगी और आक्रोश का माहौल है।
स्थानीय लोगों की सूचना पर मौके पर पहुंचे सोशल एक्टिविस्ट तिरंगा महाराज (दीपक शुक्ला) ने गोमती की बदहाली को वीडियो के माध्यम से सामने रखा और प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा—
“अगर गोमती मर गई, तो लखनऊ भी आधा मर जाएगा। सरकार, सामाजिक संस्थाओं और जनता—तीनों को एक साथ काम करना होगा, तभी गोमती को बचाया जा सकता है।
योजनाएं कागज़ों में, हकीकत में काली गोमती
जहाँ एक ओर केंद्र और राज्य सरकार गोमती पुनर्जीवन के लिए हजारों करोड़ की योजनाओं का दावा कर रही हैं, वहीं फैजुल्लागंज जैसे इलाकों में आज भी गंदा नाला सीधे नदी में गिर रहा है, जो सरकारी तंत्र की विफलता को उजागर करता है।
गोमती नदी का उद्गम पीलीभीत के माधोटांडा से होता है और यह लगभग 960 किमी की यात्रा कर गाजीपुर में गंगा में मिलती है। लखनऊ शहर इसी नदी के किनारे बसा है और करीब 20 लाख लोगों को इसी से पेयजल मिलता है।
डरावने आंकड़े
लखनऊ में रोज़ाना 730 MLD सीवेज पैदा होता है उपचार क्षमता सिर्फ 450 MLD करीब 280 MLD गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट गोमती में गिरता है। गोमती में 39 नाले गिरते हैं, जिनमें से 13 बिना या आंशिक ट्रीटमेंट के हैं। बाबासाहब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के पर्यावरण विभागाध्यक्ष प्रो. वेंकटेश दत्ता के अनुसार गोमती का पानी अब ‘E श्रेणी’ में पहुंच चुका है, यानी न स्नान योग्य, न सिंचाई योग्य।
हज़ारों करोड़ खर्च, नतीजा शून्य
2010 से 2025 तक करीब 2500 करोड़ रुपये खर्च
2018 में योगी सरकार की 1600 करोड़ की गोमती पुनर्जीवन योजना
भरवारा और दौलतगंज में बने एसटीपी के बावजूद सीवेज आज भी नदी में पर्यावरणविदों के अनुसार विभागों के बीच समन्वय की भारी कमी के कारण गोमती सफाई सिर्फ कागज़ों में सिमट कर रह गई है।
पर्यावरण और आजीविका पर असर
गोमती से प्रवासी पक्षी, नदी डॉल्फिन और मछलियां लगभग लुप्त हो चुकी हैं। नदी किनारे रहने वाले मछुआरे पलायन को मजबूर हैं। पर्यावरणविद् वी.के. जोशी चेतावनी देते हैं—
“नदियों और जलस्रोतों को नष्ट करेंगे तो बाढ़, सूखा और जल संकट तय है।”
अब भी उम्मीद बाकी
सरकार द्वारा ड्रेजिंग, नए वेटलैंड्स, टास्क फोर्स की समीक्षा बैठकों और पारदर्शिता के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन जमीनी अमल अभी भी सवालों के घेरे में है।
गोमती नदी संरक्षण को लेकर अभियान चला रहे तिरंगा महाराज ने स्पष्ट कहा कि अब सिर्फ योजनाओं से नहीं, जमीन पर काम से गोमती बचेगी। जनता की भागीदारी के बिना यह संभव नहीं।”
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