क्या दिल्ली का प्रदूषण संकट स्थायी हो गया है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दिल्ली को वायु प्रदूषण के अपरिहार्य पर्यावरणीय संकट की एक झलक नज़र आ गई जिसका आने वाले माहों में उसे सामना करना है। पिछले सप्ताह एक दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक Air Quality Index) 500 के स्केल पर 300 के पार चला गया, जब आसमान में धुंध की चादर छाई हुई थी और बाह्य वातावरण में धूल एवं धुएँ की एक विशिष्ट गंध फैली हुई थी। सौभाग्य से, अगले दिन पवनों की गति कुछ तेज़ रही और आसमान साफ़ हो गया।

शहर के 20 मिलियन निवासियों (और पड़ोसी राज्यों में लाखों लोगों) के लिये वायु की गुणवत्ता में सुधार राहत की बात रही जहाँ यह ‘अत्यंत खराब’ (very poor) श्रेणी से पुनः ‘खराब’ (poor) श्रेणी में आ गई।

दिल्ली का प्रदूषण एक गंभीर स्वास्थ्य संकट है जो हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research) के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में वायु प्रदूषण 1.67 मिलियन मौतों के लिये ज़िम्मेदार था और वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में प्रति व्यक्ति मृत्यु दर अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक थी।

सर्दियों के दौरान दिल्ली में प्रदूषण स्तर बढ़ने के पीछे क्या कारण हैं?

  • पराली दहन: पंजाब और हरियाणा के किसान अगले फसल मौसम हेतु अपने खेतों की सफाई के लिये पराली या फसल अवशेषों को जलाने का रास्ता चुनते हैं। इससे बड़ी मात्रा में धुआँ एवं कणिका पदार्थ (Particulate Matter- PM) उत्पन्न होते हैं जो हवा के साथ बहकर दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में पहुँच जाते हैं।
    • SAFAR’ के अनुसार, वर्ष 2021 में दिल्ली के प्रदूषण में पराली दहन (Stubble Burning) का योगदान 25% था।
    • पराली दहन वायुमंडल में जहरीले प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), कैंसर कारक पोलिसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) जैसी हानिकारक गैसें शामिल होती हैं।
  • पवन की दिशा: पवन की दिशा दिल्ली के वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय भूमिका निभाती है, विशेष रूप से सर्दियों के महीनों में। मानसून के बाद दिल्ली में पवनों की प्रमुख दिशा मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी होती है। ये पवनें हरियाणा एवं पंजाब में पराली दहन से उत्पन्न धुएँ और धूल को दिल्ली की ओर बहाकर ले आती हैं।
    • राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (National Physical Laboratory) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार सर्दियों के मौसम में दिल्ली की 72% पवन उत्तर-पश्चिम की ओर से आती है।
    • पवन की दिशा में बदलाव से इन प्रदूषकों का दिल्ली शहर की ओर आना रुक जाता है।
    • उदाहरण के लिये, 25 अक्तूबर, 2023 को हवा की गुणवत्ता में मामूली सुधार तब हुआ जब हवा की दिशा उत्तर से उत्तर-पूर्व की ओर बदल गई।

  • तापमान व्युत्क्रमण: तापमान व्युत्क्रमण (Temperature inversion) एक ऐसी परिघटना है जो तब घटित होती है जब हवा का तापमान ऊँचाई या तुंगता के साथ बढ़ता जाता है (सामान्य स्थिति में तुंगता के साथ घटने के बजाय)। इससे ठंडी हवा की परत के ऊपर गर्म हवा की एक परत बन जाती है, जो प्रदूषकों को भूमि सतह के निकट ‘ट्रैप’ या जब्त कर देती है।
    • तापमान व्युत्क्रमण शीतकाल में दिल्ली के प्रदूषण को प्रभावित करता है, जब मौसम ठंडा और शांत होता है। पराली दहन, वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक उत्सर्जन और अन्य स्रोतों से निकलने वाले प्रदूषक निचले वायुमंडल में जमा हो जाते हैं और धुंध (Smog) की एक मोटी परत का निर्माण करते हैं।

  • शुष्क और शांत हवा: सर्दियों में वर्षा की मात्रा और पवन की गति कम होती है, जिसका परिणाम यह होता है कि प्रदूषक ताज़ी हवा से धुलते नहीं हैं या तनु नहीं होते हैं। प्रदूषक तत्व हवा में अधिक समय तक निलंबित बने रहते हैं।

  • वाहन और औद्योगिक उत्सर्जन: दिल्ली में एक बड़ी आबादी पाई जाती है और बड़ी संख्या में वाहनों का उपयोग किया जाता है जो हानिकारक गैसों एवं कणिका पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं। दिल्ली और उसके आसपास के उद्योग भी जीवाश्म ईंधन दहन और हवा में रसायनों के उत्सर्जन के रूप में प्रदूषण में योगदान करते हैं।
    • आईआईटी दिल्ली के एक अध्ययन में पाया गया है कि दिल्ली के PM2.5 स्तर में वाहन उत्सर्जन का योगदान लगभग 25% है।
  • धूल भरी आँधी,आतिशबाजी और घरेलू बायोमास का दहन: ये प्रदूषण के कुछ अन्य स्रोत हैं जो सर्दियों के दौरान बढ़ जाते हैं। धूल भरी आँधियाँ शुष्क क्षेत्रों से धूल के कण बहाकर लाती हैं, दिवाली एवं अन्य अवसरों पर आतिशबाजी धुआँ और धातु कण उत्पन्न करती हैं और ताप उत्पन्न करने या हीटिंग के लिये घरेलू बायोमास के दहन से हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड एवं कणिका पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है।
    • आईआईटी-कानपुर द्वारा वर्ष 2015 में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि सर्दियों में दिल्ली में कणिका पदार्थ का 17-26% भाग बायोमास दहन के कारण उत्पन्न होता है।

दिल्ली के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें

  • ‘ग्रीन वॉर रूम’: यह एक नौ सदस्यीय दल है जो वास्तविक समय और दैनिक आधार पर प्रदूषण के विरुद्ध 20 सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाइयों की निगरानी करता है।
  • प्रदूषण विरोधी अभियान: दिल्ली सरकार ने हाल ही में एक प्रमुख प्रदूषण विरोधी अभियान शुरू किया है। ‘युद्ध – प्रदुषण के विरुद्ध’ नामक इस अभियान में वृक्ष प्रत्यारोपण और ऐसी अन्य पहलें शामिल हैं।
  • ‘ग्रीन दिल्ली’ ऐप: यह एक मोबाइल ऐप है जो नागरिकों को कचरा जलाने, औद्योगिक उत्सर्जन या यातायात भीड़ जैसे प्रदूषण के किसी भी मामले की रिपोर्टिंग करने की अनुमति देता है।
  • ‘बायो-डीकंपोजर’: यह पूसा संस्थान द्वारा विकसित एक समाधान है जो किसानों को अपने खेतों में फसल अवशेषों को जलाए बिना विघटित करने में मदद देता है। सरकार दिल्ली के खेतों में इस बायो-डीकंपोजर या जैव-अपघटक का मुफ्त छिड़काव कराती है।
  • वाटर स्प्रिंकलर्स: हवा में धूल और कणिका पदार्थों को कम करने के लिये वाटर स्प्रिंकलर्स, मशीनीकृत रोड स्वीपिंग मशीनों, एंटी-स्मॉग गन और ऊँची इमारतों पर जल छिड़काव सुविधाओं का उपयोग किया जाता है।
  • औद्योगिक प्रदूषण की निगरानी: औद्योगिक स्थलों की निगरानी की जाती है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे स्वच्छ एवं अधिकृत ईंधन का उपयोग करें। सरकार ने उद्योगों तक पाइप के माध्यम से प्राकृतिक गैस (PNG) का विस्तार किया है और दिल्ली में देश का पहला ई-अपशिष्ट इको-पार्क स्थापित किया है।
  • PUC प्रमाणपत्र: वाहनों के लिये प्रदूषण नियंत्रण (Pollution Under Control- PUC)) प्रमाणपत्र लागू किया गया है और गैर-आवश्यक माल ढोने वाले ट्रकों के शहर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया है। सरकार ने सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बढ़ावा देने के लिये 1,000 निजी CNG वाहनों को भी किराए पर लिया है।
  • स्मॉग टावर्सस्मॉग टावरों (Smog Towers) की स्थापना की जा रही है जो हवा को शुद्ध करने के लिये बड़े पंखे और फिल्टर का उपयोग करते हैं। पहला स्मॉग टावर कनॉट प्लेस में स्थापित किया गया है और इसका सकारात्मक प्रभाव नज़र आया है।
  • प्रदूषण हॉटस्पॉट: दिल्ली में 21 प्रदूषण हॉटस्पॉट की पहचान की गई है और इन क्षेत्रों में प्रदूषण के स्रोतों की निगरानी करने और उन्हें कम करने के लिये विशेष टीमों की तैनाती की गई है।

दिल्ली के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • ‘कंजेशन चार्ज’: व्यस्त ट्रैफिक समय (peak hours) के दौरान निजी वाहनों के लिये कंजेशन चार्ज (Congestion Charge) लागू करना यातायात की भीड़ को कम करने और सार्वजनिक परिवहन या कारपूलिंग के उपयोग को प्रोत्साहित करने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। इस शुल्क से उत्पन्न राजस्व को हरित परियोजनाओं में पुनर्निवेश किया जा सकता है या इलेक्ट्रिक वाहनों को सब्सिडी देने के लिये इसका उपयोग किया जा सकता है ताकि आगे पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को और प्रोत्साहित किया जा सके।
    • कंजेशन चार्ज वह शुल्क है जो वाहन चालकों को उन कुछ क्षेत्रों या सड़कों में प्रवेश करने या उनका उपयोग करने के लिये भुगतान करना पड़ता है जहाँ अधिक यातायात भीड़भाड़ की संभावना होती है।
  • औद्योगिक उत्सर्जन के लिये ‘कैप-एंड-ट्रेड’: कैप-एंड-ट्रेड (cap-and-trade system) प्रणाली औद्योगिक उत्सर्जन पर एक सीमा आरोपित करती है और प्रदूषण को कम करने के लिये बाज़ार-संचालित दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है। यह प्रणाली उद्योगों को अपने उत्सर्जन को कम करने और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन का सृजन करती है, जिससे अंततः समग्र प्रदूषण में कमी आती है।
  • प्रदूषण नियंत्रण के लिये ड्रोन का प्रयोग: प्रदूषण हॉटस्पॉट की पहचान करने और उन्हें तितर-बितर करने के लिये ड्रोन का उपयोग करना वायु गुणवत्ता के प्रबंधन के लिये एक सक्रिय दृष्टिकोण है। यह तकनीक पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रदूषकों के तत्काल प्रभाव को कम करने में मदद कर सकती है, साथ ही लक्षित हस्तक्षेप के लिये प्रदूषण के स्रोतों की निगरानी एवं पहचान भी कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये, न्यू इंजीनियरिंग एजुकेशन ट्रांसफॉर्मेशन (NEET) समूह की ड्रोन प्रणाली 15-मीटर रिज़ॉल्यूशन के साथ रियल-टाइम वायु गुणवत्ता डेटा प्रदान करने के लिये डिज़ाइन की गई है जो एक उपयोगकर्ता अनुकूल इंटरफेस के माध्यम से सार्वजनिक पहुँच योग्य है।
  • ‘वर्टिकल गार्डन’: वर्टिकल गार्डन (Vertical Gardens) शहरी क्षेत्रों के लिये सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन और पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी हैं। वे न केवल शहर के दृश्य अपील को बढ़ाते हैं बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके और ऑक्सीजन निर्मुक्त कर हवा को शुद्ध करने में भी मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे शहरी जैव विविधता में योगदान देकर पक्षियों और कीटों के लिये पर्यावास प्रदान कर सकते हैं।
  • निम्न-कार्बन जीवन शैली को पुरस्कृत करना: एक पुरस्कार प्रणाली के माध्यम से नागरिकों को निम्न-कार्बन जीवन शैली अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना एक अभिनव दृष्टिकोण है। सार्वजनिक परिवहन या कारपूलिंग का उपयोग करने जैसे पर्यावरण-अनुकूल व्यवहारों के लिये पॉइंट्स या वाउचर या कर लाभ (tax benefits) जैसे प्रोत्साहन प्रदान करने से लोग अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करते हुए पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक विकल्प चुनने के लिये प्रेरित होंगे।
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