गुरु पूर्णिमा के दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि महोत्सव होता था,क्यों?

गुरु पूर्णिमा के दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि महोत्सव होता था,क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
PETS Holi 2024
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय सनातन हिंदू संस्कृति में आस्था रखने वाले व्यक्तियों के लिए उनके जीवन में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है। परम पूज्य गुरुदेव जीवन में आने वाले विभिन्न संकटों से न केवल उबारते हैं बल्कि इस जीवन को जीने की कला भी सिखाते हैं ताकि इस जीवन को सहज रूप से जिया जा सके। गुरु ही अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की क्षमता रखते हैं।

भारत के मठ, मंदिरों एवं गुरुद्वारों में इसलिए प्रत्येक वर्ष व्यास पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन का विशेष पर्व मनाया जाता है एवं इस शुभ दिन पर गुरुओं की पूजा अर्चना की जाती है ताकि उनका आशीर्वाद सदैव उनके भक्तों पर बना रहे। कई मंदिरों में गुरु पूजन एवं ध्वजा वंदन के समय कई गीत भी गाए जाते है, जैसे “हम गीत सनातन गाएंगे, हम भगवा ध्वज लहराएंगे।”

यदि भारत के गौरवशाली इतिहास पर नजर दौड़ाते हैं तो ध्यान में आता है कि हिंदू सनातन संस्कृति के अंतर्गत कई महानुभावों को गुरु के आशीर्वाद एवं सानिध्य से ही देवत्व की प्राप्ति हुई है। दूसरे शब्दों में, देवत्व प्राप्त करने के लिए इन महानुभावों को गुरु के श्रीचरणों में जाना पड़ा है। इस प्रकार के कई उदाहरणों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। जैसे, भीष्म को “भीष्म” बनाने में ऋषि परशुराम की अहम भूमिका रही थी। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को गढ़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया था।  समर्थ स्वामी रामदास ने शिवाजी महाराज को राष्ट्रवादी राजा बनाया था। स्वामी विवेकानंद ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली थी एवं उनके सानिध्य में ही अपना जीवन प्रारम्भ किया था।

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि शताब्दियों पूर्व, आषाड़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी का इस धरा पर अवतरण हुआ था।महर्षि वेद व्यास ने वैदिक ऋचाओं का संकलन कर इनका चार वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद) के रूप में वर्गीकरण किया था। साथ ही, 18 पुराणों, 18 उप-पुराणों, उपनिषदों, बृह्मसूत्र, महाभारत आदि अतुलनीय ग्रंथों को लेखनबद्ध करने का श्रेय भी महर्षि वेद व्यास को ही दिया जाता है।

महान भारतीय परम्परा के अनुसार शिष्य, अपने गुरु का पूजन करते हैं। अतः गुरु वेद व्यास के शिष्यों ने भी सोचा कि महर्षि वेद व्यास का पूजन किस शुभ दिन पर किया जाय। बहुत गहरे विचार विमर्श के पश्चात समस्त शिष्य सहमत हुए कि क्यों न गुरु वेद व्यास के इस धरा पर अवतरण  दिवस पर ही पूज्य गुरुदेव का पूजन किया जाय। इस प्रकार, गुरु वेद व्यास के शिष्यों ने इसी पुण्यमयी दिवस को अपने गुरु के पूजन का दिन चुना। यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। तब से लेकर आज तक हर शिष्य अपने गुरुदेव का पूजन वंदन इसी शुभ दिवस पर करता है।

ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को योग की दीक्षा देना भी इसी दिन से प्रारम्भ किया था। प्राचीन काल में भारत के गुरुकुलों में गुरु पूर्णिमा को एक विशेष दिवस के रूप में मनाया जाता था। गुरु पूर्णिमा के दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि महोत्सव होता था। गुरूकुल से सम्बंधित दो सबसे मुख्य कार्य गुरु पूर्णिमा के दिन ही सम्पन्न किए जाते थे। एक तो गुरु पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त पर ही नए छात्रों को गुरूकुल में प्रवेश प्रदान किया जाता था। यानी गुरु पूर्णिमा दिवस गुरूकुल में छात्र प्रवेश दिवस के रूप में मनाया जाता था।

गुरु पूर्णिमा न केवल हिंदू धर्मावलम्बियों द्वारा एक पवित्र एवं अतिमहत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में मनाया जाता है बल्कि जैन एवं बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए भी गुरु पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व का माना जाता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!