शिशु स्वास्थ्य को लेकर प्रमंडल स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

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गंभीर बीमारी से ग्रसित बच्चों का बेहतर चिकित्सीय उपचार सुनिश्चित कराना पहला लक्ष्य: डॉ विजय
संस्थागत एवं सुरक्षित प्रसव के बाद आशा के द्वारा किया जाता हैं गृह भ्रमण: आरपीएम
शिशु स्वास्थ्य एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लाना मुख्य उद्देश्य: डॉ तारिक़

श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया, (बिहार):

प्रमंडल के सभी जिलों में शिशु स्वास्थ्य को पहले से बेहतर करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधन इकाई द्वारा एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन शहर के निजी होटल में किया गया। इसकी अध्यक्षता स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्रीय उपनिदेशक डॉ विजय कुमार ने किया। प्रशिक्षण यूनिसेफ के शिशु स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ तारिक़ एवं शिव शेखर आनंद के अलावा क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक (आरपीएम) कैशर इक़बाल ने दिया। इस अवसर पर स्वास्थ्य उपनिदेशक डॉ विजय कुमार, राज्य स्वास्थ्य समिति की ओर से एन यू एच एम के एसपीएम मोहम्मद मसउद आलम, पूर्णिया के सीएस डॉ अभय प्रकाश चौधरी, कटिहार के सीएस डॉ जितेंद्र नाथ सिंह, अररिया के सीएस डॉ विधानचंद्र सिंह एवं किशनगंज के सीएस डॉ कौशल किशोर के अलावा क्षेत्रीय अनुश्रवण मूल्यांकन पदाधिकारी सपना कुमारी, बॉयोमेडिकल इंजीनियर विभूति रंजन, प्रमंडल के सभी जिलों के एसीएमओ, डीपीएम, डीएमएंडई, डीसीएम, डीपीसी, एनआरसी के नोडल अधिकारी, आरपीएमयू के श्याम कुमार एवं शाहनवाज आलम सहित कई अन्य अधिकारी एवं कर्मी उपस्थित थे।

 

गंभीर बीमारी से ग्रसित बच्चों का बेहतर चिकित्सीय उपचार सुनिश्चित कराना पहला लक्ष्य: डॉ विजय
स्वास्थ्य विभाग के उपनिदेशक डॉ विजय कुमार ने कहा कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विभागीय स्तर के सभी अधिकारी एवं कर्मियों द्वारा लगातार प्रयास किया जाता है ताकि पूर्णिया प्रमंडल राज्य में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान पर रहे। प्रमंडल के सभी जिलों में गंभीर बीमारी से ग्रसित बच्चों की बेहतर चिकित्सीय उपचार सुनिश्चित करने के लिए विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू), नवजात गहन देखभाल इकाई (नीकू), छोटे बच्चों के लिए गृह-आधारित देखभाल कार्यक्रम (एचबीवाईसी), गृह आधारित नवजात देखभाल (एचबीएनसी), पोषण एवं पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) एवं एचबीआईसी द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है। राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय सह अस्पताल परिसर स्थित विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू) एवं कटिहार जिला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल परिसर में संचालित पोषण पुनर्वास केंद्र राज्य में बेहतर प्रदर्शन करते हुए पहले पायदान पर पूर्णिया प्रमंडल सहित जिले का नाम रौशन करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

 

-संस्थागत एवं सुरक्षित प्रसव के बाद आशा के द्वारा किया जाता हैं गृह भ्रमण: आरपीएम
क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक कैशर इक़बाल ने बताया कि एचबीएनसी में संस्थागत प्रसव तथा गृह प्रसव के बाद क्रमशः शिशु स्वास्थ्य की देखभाल के लिए आशा के माध्यम से गृह भ्रमण किया जाता है। संस्थागत प्रसव होने की स्थिति में 6 बार एवं घर पर प्रसव होने पर 7 बार गृह भ्रमण किया जाता है। वहीं एचबीवाईसी में 3, 6, 9, 12 एवं 15 माह कुल 05 बार गृह भ्रमण कर शिशुओं के स्वास्थ्य देखभाल के लिए आशा के माध्यम से गृह भ्रमण किया जाता है। जिला अस्पताल में एसएनसीयू, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा प्रसव की सुविधा प्रदान करने वाले स्वास्थ्य संस्थान पर एनबीसीसी तथा अनुमंडलीय अस्पतालों में एनबीएसयू के द्वारा गंभीर लक्षण, कम वजन, समय पूर्व जन्म, बच्चों के स्वास्थ्य की विभिन्न सुविधाएं दी जाती है। ऐसा देखा गया है कि किशनगंज एवं अररिया में एसएनसीयू एवं एनबीएसयू कार्य करने के बावजूद प्रगति तो होती है लेकिन लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता । शिशु मृत्यु दर में आशा एवं एएनएम के द्वारा मौखिक शव परीक्षण किया जाता है। जिसकी समीक्षा के लिए प्रखंड एवं जिला स्तर कमिटी का गठन किया गया है।

 

 

शिशु स्वास्थ्य एवं मातृ मृत्यु दर में कमी लाना मुख्य उद्देश्य: डॉ तारिक़
यूनिसेफ के शिशु स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ तारिक़ ने कहा कि पूरे विश्व में एक साल के अंदर जन्म लेने वाले कुल 2.5 करोड़ बच्चों का लगभग पांचवां हिस्सा भारत में जन्म होता है। मातृ मृत्यु में लगभग 46 प्रतिशत और नवजात शिशुओं की 40 प्रतिशत मृत्यु, प्रसव के दौरान या प्रसव के बाद 24 घंटे के अंदर हो जाती है। नवजात शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों में समय से पहले प्रसव (35 फीसदी), नवजात शिशु को संक्रमण (33 फीसदी), प्रसव के दौरान दम घुटना (20 फीसदी) और जन्मजात विकृतियां (9 फीसदी) हैं। इसके बावजूद प्रसव के दौरान और प्रसव के बाद होने वाली मृत्यु को कुशल प्रसव सहायक और आपातकालीन प्रसूति देखभाल की सुविधाओं से काफी हद तक रोका जा सकता है। शिशु के जन्म लेने के बाद तुरन्त और केवल स्तनपान कराने तथा खसरा एवं टीके से रोकी जा सकने वाली अन्य बीमारियों के टीके लगाने से जीवित रहने की दर तेजी से बढ़ती है।

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