जीवन के साथ ही आजीविका बचाना भी जरूरी है.

जीवन के साथ ही आजीविका बचाना भी जरूरी है.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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उद्योग संघों के प्रमुख संगठन सीआईआई द्वारा कराए गए सर्वे के नतीजों को देखते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह कहना अपने आप में मायने रखता है कि कोरोना संकट के वर्तमान दौर में जीवन बचाने के लिए सख्ती जरूरी है लेकिन इसके साथ ही वर्तमान हालातों में आजीविका बचाना भी जरूरी हो गया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत के कहने का निहितार्थ यही माना जा सकता है कि कोरोना आपदा में लोगों का जीवन बचाना उनकी प्राथमिकता है और इसके लिए राज्य सरकार द्वारा बेहतर प्रबंधन किया जा रहा है पर कोरोना की दूसरी लहर के चलते देश में जो हालात बनते जा रहे हैं उनसे लोगों में लॉकडाउन और उसके चलते आर्थिक गतिविधियों के ठप्प होने और आजीविका पर संकट मंडराने का डर अधिक सता रहा है।

ऐसे में अशोक गहलोत का व्यक्तव्य किसी संजीवनी से कम नहीं है। हालांकि इसी तरह की मंशा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जता चुके हैं। दरअसल देखा जाये तो महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश सहित दस राज्यों में जिस तेजी से हालात गंभीर होते जा रहे हैं वह चिंता का कारण बनता जा रहा है। कोराना के पहले दौर में देश में इतने भयावह हालात नहीं बने थे जितने तेजी से हालात अब बिगड़ते जा रहे हैं।

एक दिन में एक लाख से भी अधिक कोरोना संक्रमण के मामले आ रहे हैं तो महराष्ट्र और दिल्ली के हालात गंभीर होते जा रहे हैं। अब देश दुनिया के सामने दोहरा संकट आ गया है। एक ओर तो कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकना बड़ा काम है तो जैसे-तैसे पटरी पर लौटी अर्थव्यवस्था को बचाये रखने की जिम्मेदारी आ गई है। महाराष्ट्र से प्रवासियों ने पलायन आंरभ कर दिया है यह और नई चिंता का कारण बनता जा रहा है। हालांकि सरकार ने महाराष्ट्र से बिहार, यूपी के लिए ट्रेन के फेरे बढ़ाने का निर्णय किया है।

सीआईआई के सर्वे में यह स्पष्ट हुआ है कि लॉकडाउन तो क्या यदि आंशिक लॉकडाउन भी लगता है तो उससे अर्थव्यवस्था खासतौर से उद्योग धंधों को बड़ा नुकसान होगा। 56 फीसदी मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानि की कंपनियों के सीईओ का मानना है कि वस्तुओं की आवाजाही प्रभावित होती है तो इससे बड़ा नुकसान होगा। यहां तक कि उत्पादन क्षेत्र में 50 फीसदी तक नुकसान का अंदेशा लगाया जा रहा है।

इसके साथ ही श्रमिकों की समस्या और गंभीर होगी। हालांकि सरकारें अब लॉकडाउन को लेकर गंभीर नहीं हैं और इसका कारण आजीविका को भी बचाए रखना ही है। देश 68 दिन के लॉकडाउन और इसके परिणाम स्वरूप उद्योग धंधों और रोजगार के क्षेत्र में पड़े दुष्परिणामों से भली भांती परिचित हो चुका है। यह हमारे ही नहीं समूची दुनिया की या यों कहे कि अब सार्वभौमिक समस्या हो गई हैं। हालांकि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने मिनी लॉकडाउन लगा दिया गया है। आवश्यक सेवाओं को छोड़कर अन्य पर रोक लगाने और सख्ती के आदेश दे दिए हैं।

राजस्थान के मुख्यमंत्री ने भी आमजन को सख्ती के संदेश दे दिया है। यह अब जरूरी भी हो गया है, जिस तेजी से दूसरी लहर फैल रही है और उसके कारण हालात गंभीर होते जा रहे हैं। दिल्ली, राजस्थान के कुछ शहरों व देश के अन्य प्रदेशों में रात्रिकालीन कर्फ्यू का दौर जारी है। फ्रांस की तर्ज पर लगाए गए रात्रिकालीन कर्फ्यू और अब फ्रांस की तर्ज पर ही वीकेण्ड कर्फ्यू के विकल्प को आजमाया जा रहा है। हालांकि फ्रांस की संस्कृति और हमारे देश के हालातों में रात दिन का अंतर है। फ्रासं में रात्रि कालीन कर्फ्यू इसलिए भले ही आंशिक रूप में ही सफल माना जा सकता है कि वहां रात्रिकालीन संस्कृति सजीव है।

लोग घर आने के बाद थोड़ा रेस्ट करने के बाद मॉल्स, बार और अन्य स्थानों पर मनोरंजन के लिए जाते हैं और वहां कब मास्क या सोशल डिस्टेंस पीछे छूट जाता है इसका पता ही नहीं चलता। रात्रिकालीन कर्फ्यू से परेशान फ्रांसिसियों द्वारा वीकेण्ड पर समुद्र की ओर पलायन के कारण हालात बिगड़ने की स्थिति को देखते हुए वहां की सरकार को मजबूरी में वीकेण्ड कर्फ्यूका सहारा लेना पड़ा। हालांकि हमारे यहां स्थिति इससे इतर है। ऐसे में आजीविका को बचाना है तो लॉकडाउन के विकल्प से बचना होगा। हालांकि महाराष्ट्र सरकार बेकाबू होते कोरोना संक्रमण की स्थिति में मजबूरी में मिनी लॉकडाउन को विकल्प के रूप में देख रही है। इसके विपरीत राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने साफ संकेत दे दिए हैं कि सरकार सख्ती पर जोर देगी, क्योंकि रोजगार को भी बचाना सरकार का दायित्व हो जाता है। सही भी है। बचाव ही उपचार है यह तो अब सर्वमान्य हो गया है।

बचाव के लिए भी कोई खास नहीं करना। आम आदमी को यह समझना ही होगा कि मास्क लगाना उनके लिए जरूरी है। मास्क लगाकर आप स्वयं की सुरक्षा के साथ ही दूसरों की सुरक्षा भी करते हो। इसी तरह से सोशल डिस्टेंसिंग की पालना जरूरी है। दो गज की दूरी और मास्क लगाने की शतप्रतिशत पालना हो तो कोरोना को आसानी से पस्त किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। अब तो हालात यह हैं कि दुनिया के हर नागरिक को मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंस के महत्व की जानकारी है। अब तो वैक्सीनेशन में भी काफी तेजी आई है। राजस्थान और महाराष्ट्र में एक-एक करोड़ का आंकड़ा पार हो चुका है वैक्सीनेशन का। ईच वन वैक्सीनेट वन का संदेश दिया जा रहा है। लॉकडाउन के स्थान पर अब माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाया जा रहा है जिससे कम लोग प्रभावित हों और गतिविधियां सामान्य रह सकें। पर इस सबसे तभी पार पाया जा सकता है जब लोग कोरोना प्रोटोकाल की सख्ती से पालना करें। मास्क अवश्य लगाएं और दो गज की दूरी बनाए रखें।

देश दुनिया अर्थ व्यवस्था के गंभीर दौर से गुजर रही है। लगभग पूरा साल आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करता रहा है। जहां देश दुनिया में गरीबों की संख्या तेजी से कम हुई थी, कोरोना के कारण उसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई है। देश में गरीबी रेखा के नीचे करीब साढ़े सात करोड़ नए लोग पहुंच गए हैं। मध्यम वर्ग का दायरा घटा है तो गरीब वर्ग का दायरा बढ़ा है। दरअसल कोरोना के कारण उद्योग धंधों के बंद रहने से लोगों की रोजी-रोटी पर संकट आ गया। वर्क फ्रॉम होम की बात कितनी भी की जाए पर जो लोग इस स्थिति से गुजर रहे हैं उनसे पूछोगे तो पता चलेगा कि उनकी तनख्वाह कितनी कम हो गई है। उधर बाजार में महंगाई की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। जीवन दूभर होता जा रहा है। ऐसे में लॉकडाउन के विकल्प से बचना ही होगा। आमजन को स्थिति की गंभीरता को समझना होगा। बचाव ही उपचार है इसे समझना होगा।

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