आस्था का महापर्व है हरिद्वार महाकुंभ.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में लगने वाला कुंभ तो अपने आप में एक महापर्व है। यही कारण है कि कुंभ के प्रति सम्मान भाव दिखाते हुए कुंभ को महाकुंभ भी कहा जाता है। इस कुंभ महापर्व के मुख्य स्नान का शुभारंभ सोमवार को सोमवती अमावस्या से हो गया है।

महाकुम्भ भारत का एक प्रमुख धार्मिक तथा आध्यात्मिक उत्सव है जो ज्योतिषियों के अनुसार तब आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है। कुम्भ का अर्थ होता है घड़ा। यह एक पवित्र हिन्दू उत्सव है। यह भारत में के चार प्रमुख स्थानों पर नदियों किनारे आयोजित किया जाता है। ये चार प्रमुख शहर हैं प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन तथा नासिक। हरिद्वार में 2010 में  कुम्भ मेले का आयोजन किया गया था। उससे पहले 1999 में महाकुम्भ का आयोजन यहां किया गया था। मकर संक्राति के दिन अर्थात 14 जनवरी, 2010 को इस मेले का शुभारम्भ हो गया था।

हरिद्वार कुंभ का विशेष योग

हिन्दू धर्म में कुंभ का विशेष महत्व है। पुराणों में उपर्युक्त चारों स्थानों पर महाकुंभ लगने के लिए ग्रहों की विशिष्ट स्थितियां बतायी गयी हैं। हरिद्वार के लिए यह इस प्रकार वर्णित है-

पद्मिनीनायके मेषे, कुम्भराशिगते गुरौ। गंगाद्वारे भवेद्योगः कुम्भनाम्ना तदोत्तमः।।

अर्थात् जब सूर्य मेष राशि में हो, बृहस्पति कुंभ राशि में हो, तब गंगाद्वार (हरिद्वार) में कुंभ नाम का उत्तम योग होता है। उल्लेखनीय है कि बृहस्पति प्रतिवर्ष राशि बदलता है जबकि सूर्य हर महीने राशि बदलता है। 2009 के 19 दिसंबर को यह कुंभ राशि में प्रवेश कर चुका है। सूर्य मेष राशि में 14 अप्रैल 2010 को आया था तब इस महाकुंभ का प्रमुख स्नान था।

महाकुंभ से जुड़ी पौराणिक कथा को भी जानें

हमारे शास्त्रों में महाकुंभ से जुड़ी पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। इस कथा के अनुसार देवताओं तथा दानवों के बीच होने वाले समुद्र मंथन में एक अमृत से भरा घड़ा मिला। इस घड़े के लिए दानवों तथा देवों में संघर्ष होने लगा। इस बीच इंद्र के पुत्र जयंत कलश लेकर भागने लगे और दानव उनका पीछे करते रहें। इस प्रकार बारह दिन तक यह संघर्ष चला। इन बारह दिनों में कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं। पृथ्वी पर यह स्थान हैं हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन तथा नासिक। ऐसी मान्यता है कि इन स्थानों की पवित्र नदियों को अमृत की ये बूंदें प्राप्त हुईं। पंडितों का मानना है कि संघर्ष के वह बारह दिन धरती पर बारह वर्षों के समान है। महाकुंभ नाम अमृत कलश के कारण ही कहा जाता है। बाद में इन अमृत प्राप्त स्थानों के विशाल धार्मिक समारोह को कुंभ के नाम से जाना जाने लगा।

हरिद्वार कुंभ के शाही स्नान

1. पहला शाही स्नान- 11 मार्च यानी शिवरात्रि के दिन किया गया था।

2. दूसरा शाही स्नान- 12 अप्रैल 2021, सोमवार, त्योहार- सोमवती अमावस्या। सोमवती अमावस्या हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा जल का कारक है, जल की प्राप्ति और सोमवती को अमावस्या पर अमृत माना जाता है।

3. तीसरा शाही स्नान– 14 अप्रैल 2021,  बुधवार, त्योहार- मेष संक्रांति और बैसाखी। इस शुभ दिन पर, नदियों का पानी अमृत में बदल जाता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन पवित्र गंगा में एक पवित्र डुबकी कई जीवन के पापों को नष्ट कर सकती है।

4. चौथा शाही स्नान- 27 अप्रैल 2021,  मंगलवार, त्योहार- चैत्र पूर्णिमा। पवित्र गंगा में स्नान करने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है और इसे ‘अमृत योग’ के दिन के रूप में जाना जाता है।

विक्रम संवत् विश्व का सर्वश्रेष्ठ सौर-चांद्र सामंजस्य वाला संवत् है। आज उस गणना को भुलाने के कारण कृषि में जो बाधाएं आ रही है, वे किसी से छिपी नहीं हैं, भले ही उसका सही कारण नही समझने के कारण उसके निदान कुछ और किए जा रहे हैं जो और भी नवीन समस्याओं को जन्म दे रहे हैं। कुल मिलाकर कृषि कार्य भी कालगणना से जुड़ा हुआ मामला है।

भारतीयों ने मासों का नाम यूरोपीयों की तरह मनमाने ढंग से नहीं रखा हालाँकि वेदों तथा उनके ब्राह्मणों में 12 मासों के नाम दिए गए थे। परंतु हमारे ज्योतिषाचार्यों ने उनसे संतोष नहीं किया। वैदिक नामों में भी एक सार्थक मिलती है। उदाहरण के लिए मधु नामक मास में ही वसंत ऋतु होती है। जानते हैं कि वसंत ऋतु का मादकता से कितना संबंध है। इसी प्रकार अन्या नाम भी सार्थक हैं। परंतु बाद में इन मासों का नाम उन नक्षत्रों के नाम रखा गया, जिनसे इनका प्रारंभ होता है। चित्रा नक्षत्र में प्रारंभ होने वाले मास का नाम चैत्र, विशाखा नक्षत्र में प्रारंभ होने वाले मास का नाम वैशाख, क्रम में सभी मासों के नाम निर्धारित किए गए।

किस मास में कितनी तिथियाँ होंगी, यह चंद्रमा और सूर्य की चाल से निर्धारित किया गया और आज किया जाता है, मनमाने ढंग से नहीं। आज यदि कोई जानना चाहे कि फरवरी मास में 28 दिन ही क्यों तो इसका कोई वैज्ञानिक उत्तर किसी के पास नहीं है परंतु किसी संवत्सर के चैत्र मास, कितनी तिथियाँ हैं और क्यों हैं, इसका हरेक पंचांग के जानकार के पास है। इस क्रम को आगे बढ़ाते भारतीय ज्योतिषाचार्यों ने प्रत्येक अहोरात्र को 24 होराओं में बांटा और हरेक का नामकरण भी किया। दिन के पहले होरा के नाम पर उस दिन का नाम किया गया। इस प्रकार सात दिनों के नाम रखे गए। इन्हीं नामों के आधार पर यूरोप में भी सातों दिनों के नाम रखे गए।

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